बुधवार, 22 दिसंबर 2010

मेरा भारत महान

आज चिन्तन का विषय यह है कि विगत एक माह मे भारत की साख विदेशों मे बढ गई है या भारत पर विदेशियों का आर्थिक दबाब बढ गयाहै? विश्व के पाँच सुपर पावर देश अमरीका, रूस, ज़र्मनी, फ़्राँस और चीन के राष्ट्राध्यछ अथवा प्रधान -मत्री का आगमन और अनेकों सम्झौते इस बात के द्योतक हैं कि इन सभी देशों की निगाह भारत की सुद्रढ अर्थ-व्यवस्था से ज़्यादा यहाँ के बाज़ार के दोहन की है !यह देश का प्रधान-मंत्री है फ़िर भी देश की अर्थ-व्यव्स्था ताक पर रख आयात करने के समझौते पर हस्ताछर हुये हैं,बदले मे सैनिक साज़ो-सामान की खरीद अथवा इन्फ़्रास्ट्र्क्चर हेतु करार किये गये हैं,जिनमे भी भारत को केवल खर्च करना पडेगा या उधारी और ब्याज चुकाना पडेगा ! प्रश्न यह है कि ऐसा करन्र के पीछे भारतीय प्रधान-मंत्री की क्या मज़बूरी थी ,जो उनके साथ बिना भारतीय हितो को देखे करार पर ह्स्ताछर करने पडे ? केवल अन्तर-राष्ट्रीय साख बनाने के लिये ताकि भारतवर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरछा समिति का स्थाई सदस्य बनने के लिये विश्व समर्थन प्राप्त कर सके ,जब कि वह इसमे भी ५०% ही सफ़ल हो सका ! लेकिन जिस देश का २७६८१२ करोड का घाटे का बज़ट (२००९-१०) हो ! जिस देश का प्रत्येक नवजात शिशु लगभग १५०० रु का कर्ज़ लेकर पैदा हो रहा हो इस प्रकार के करार सही है ?क्या यह मँहगाई की सुरसा जो कि देश की ६०% गरीब जनता को खाये जा रही है उसके लिये और अधिक भोज्य तैयार करने जैसा नही है ?क्योंकि पिछले एक वर्ष मे पैट्रोल के दाम मे १२ रु० की खाद्यान मे १५-२०% की व्रधि तथा डीज़ल मे २रु० की एवं घरेलू गैस मे ५० रु० की अपेछित व्रधि निश्चित है ! अर्थात सभी खाद्य सामग्री, आटा,दाल-चावल के भाडे के माध्यम से मँहगाई अवशय्म्भावी है! इन मुद्दों पर से जनता का ध्यान हटा कर सरकार "मेरा भारत महान " सिद्ध करने की चाल चल रही है ! ऐसा न हो कि "फ़ील गुड"के चक्कर मे प्याज़ फ़िर से सरकार को लुढ्का दे और सारे समझौते धरे के धरे रह जायें !

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

तेल का खेल

कल रात १२ बजे से पैट्रोल की कीमत मे २.९६ रु. का इज़ाफ़ा सरकार ने घोषित कर दिया और लागू भी हो गया ! विगत ६ माह मे ७.६० पैसे की व्रद्धि हुई ,जो कि पिछले तीन सालो मे हुई ब्रद्धि से ज़्यादा है!
यह व्रद्धी करने के पीछे सरकार ने तेल क्म्पनियों के घाटे की पूर्ति को कारण बताया! डीज़ल के साथ गैस पर निर्णय मन्त्रि-परिषद की २२ तारीख की बैठक मे होगा जिसमे गैस पर ३०रु. की व्रद्धि की अपेछा की जा रही है!चिन्तन का विषय यह है कि बेतहाशा मूल्य-व्रद्धि पर अंकुश लगते ही सरकार ने यह चोट दी है जिसका प्रभाव सभी जिन्सों के ऊपर पडेगा और परिणामत: मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग फ़िर पिसेगा! उच्च वर्ग के आय के अनेको स्रोत होते है -कुछ प्रत्यछ और कुछ अप्रत्यछ जिसे नम्बर दो की कमाई कहा जाता है इस अघोषित आय का कुच भाग सरकारी तंत्र को देकर जान छूट जाती है और फ़िर यह पैसा शादी -विवाह ,जन्मोत्सव,किटी-पार्टी बडे होटलो मे ऐश,हवाई-यात्राओ पर खर्च, स्वयं अथवा परिवारीजनो द्वाराइसी लिए  किया जाता है कि ताकि वे सम्भ्रान्त एवं अभिजात्य वर्ग के अलग से परिलछित हों !
भ्रष्टाचार की जडें इतनी मज़बूत हैं एक मत्री जिसके लिये संसद का शीत- कालीन सत्र और एक करोड चालीस लाख का खर्च ,भेंट चढ गया अपर्याप्त है! कारपोरेट सैक्टर के दिग्ग्ज़ रतन टाटाअपने मुँह से मलाई पोंछ कर कितना कह ले कि वे भ्रष्ट नही है ,यह सर्व मान्य तथ्य है कि व्यापारियो से राजनीत और राजनीति से सरकार चलती है और दोनो के लिये पैसा चाहिये वो भी गाढी-कमाई का नही बल्कि नम्बर दो का !कार्पोरेट्जगत को लाभ पहुँचाने के लिये ही संसद का सत्र समाप्त होते ही मंत्रि-परिषद की बैठक कर पैट्रोल की कीमत तुरन्त प्रभाव से बढा दी गई ताकि जिन्के पास स्टाक मे जितना भी माल भरा हो रातों-रात वो लाखो-करोडो के वारे-न्यारे कर सकें,बेशक गरीब को सुबह साइकिल से कारखाने और दफ़्तर जाना पडॆ! वाह रे प्रजातंत्र-जनता का शासन, जनता के द्वारा,जनता के लिये?

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

सोमवार, 6 दिसंबर 2010

संसद १७ दिन से ठप्प

आज चिंतन का विषय है कि संसद १७ दिन से ठप्प पडी है वो भी एक ऐसे विषय पर जिसके लिए पछ-विपच दोनों ही उत्तर दाई है ! कांग्रेस में पी वी नर्सिंघाराव  से लेकर सुरेश कलमादी और   सहयोगी दल के ऐ  राजा, बी जे पी के येदुरप्पा सभी हमाम में नंगे है पर नेताओं को एक-दूसरे को नगा करने की होड़ लगी है और संसद को अखाड़ा बना रखा है ,जिससे अरबों रुपयों का देश को नुक्सान हो चुका है !सरकारी भ्रष्टाचार पर जांच और कार्यवाई के लिए बनाई गई सबसे बड़ी ऐजेसी सैंट्रल विजिलेंस कमिशन के मुखिया ने तो मानों सभी के मुंह पर ताला लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट तक की टिप्पणियो और निर्देशों के बावजूद कई आरोंपो से घिरे सीवीसी थॉमस ने इस्तीफा तक देने से इंकार करके साबित कर दिया है कि जिसकी लाठी उसी की भैंस। सीवीसी और येदुरप्पा के अलावा देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद के पूरे सत्र मे सत्ता के नशे मे मस्त कांग्रेस ने पूरे विपक्ष और देकी जनता को जो पैगाम दिया है उससे तो यही लगता है कि मूल्यों की हत्या करना अब कोई बड़ी बात नहीं। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि एक आरोप से बचने के लिए सबसे आसान तरीका है उल्टा दूसरा आरोप शिकायत कर्ता पर ही मढ़ दो। ना जांच ना कार्यवाई बाहरसे बाहर ही समझौता। देश की वर्तमान स्थिति को देख कर यही लगता है कि हर राजनीतिक दलों ने जनता को क़ाबू करने के लिए आपस मे ही समझौता कर लिया है। और ख़बरों के सौदागर मानो वही कुछ दिखाते है जो खुद उनके हित में हो।

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

जीवन एक मकान किराये का,

जीवन एक मकान किराये का,


फ़िर यामे रहिबे को सुख कहे का! जीवन एक.....

कौन दिना नोटिस आ जावे,

कोऊ न जाने, फ़िरहूं घूमे इतराये सा! जीवन एक....

या जीवन मे आना है एक मानी,

नही किया कुछ, बेकार फ़िरै बौराये सा !जीवन एक.....

तन मिट्टी का,याही मे मिल जावेगा,

चौथेपन मे जागे से,का मिल पायेगा ! जीवन एक.....

धन-दौलत ,दुमहले, यहीं छुट जावेगा,

मानव-धर्म का भरम तभी टुट जायेगा !जीवन एक.......

या जीवन जब कछु नही कर पावेगा,

दूजी यौनी मे फ़िर,का तोप चलावेगा ! जीवन एक......

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

सोमवार, 8 नवंबर 2010

Obama lands in India, pays 26/11 tribute in Mumbai at start of Asia tour

बराक ओबामा राष्ट्रपति कम सेल्समैन

बराक ओबामा भारत मे अमेरिका के राष्ट्रपति कम सेल्समैन अधिक नज़र आए ! चिन्ता का विषय यह है कि जिस भारत सरकार ने उनके ३ दिवसीय प्रवास पर ७ अरब खर्च किये ,उस भारत सरकार से ७ अरब के रक्छा समझौते और एयरपोर्ट समझौते से अपनी गिरती साख बचाने के लिये अपने देश वासियों के लिये २६००० नौकरियों की जुगत लगा ली है,परन्तु क्या इन समझौतों की गरीब देश वासियों के लिये कोई आवश्यक आवश्यकता थी? यह समझ नही आता कि भारतीय सरकार आखिर देश की अन्तराष्ट्रीय साख बनाने के लिये ,कब तक ६५% गरीब जनता पर कर्ज़ का बोझ चढाती रहेगी ? अनावश्यक खर्चो का बोझ बज़ट पर घाटे का बोझ बढाता है और गरीब अधिक गरीब होता जाता है ! भारत आँख लगाये था कि ओबामा दान -पात्र मे कुछ अवश्य डालेंगे,परन्तु उन्होने उलटा भारत पर नया बोझ डाल दिया और सम्झाया कि लडाकू विमानो के इंजन खरीदने से भारत की सामरिक शक्ति मे इज़ाफ़ा होगा ! सुझाव और वाक-पटुता के माहिर बराक ने एक तीर से दो शिकार किये एक अपने देश मे २००८ से अपनी गिरती साख बचाने हेतु २६००० नौकरी की व्यव्स्था, दूसरी ओर एशिया मे चीन की बढती हुई साख पर अँकुश लगाने का प्रयास भी किया है या यूँ कहें कि एशिया मे तनाव का सूत्रपात !

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा -२८२००७

सोमवार, 18 अक्टूबर 2010

आज कामन वैल्थ पर केन्द्र सरकार ने भ्रष्टाचार की जांच हेतु आयोग गठित कर दिया ! चिन्तन का विषय यह नही है कि कहां और किसने घपला किया ,अपितु ६३० करोड का कामन वैल्थ ७००० करोड क्यों और कैसे हुआ? इसका आर्थिक बोझ गरीब जनता पर पडेगा ,परन्तु उन लोगो का क्या कोई कुछ बिगाड सकता है जिनकी लापरवाही और अर्कण्यमता के कारण यह देरी हुई और राष्ट्रीय कोष को इतनी अतुलनीय छति हुई ! यदि सभी परियोजनाओ पर समयबद्ध कार्य होता तो इतनी धन-राशि जनहित के कार्यो पर खर्च की जा सकती थी! भारतीय स्वयं को राष्ट्र्भक्त सिद्ध करने के लिये रैली, प्रदर्शन सब कर सकते हैं, परन्तु ऐसे धनोपार्जन के मौके हाथ से कभी नही जाने देते ,ताकि वे रातो- रात लखपति-करोड पति बन जायं ! करोड पति बनने का मूल मन्त्र है कि कोई कार्य समय से नही करो ,यदि समय से कओगे तो चढोत कौन चढायेगा ? कमाने की यह प्रक्रिया इतनी सरल है कि फ़ाईल को दबा कर रखो,और तब तक दबाये रखो जब तक उस पर वज़न न रख दिया जावे !

किसी ने इन्ही लोगो के लिये कहा है :-

"बिन मांगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख "

कोर्ट-कचहरी,सार्वजनिक निर्माण विभाग,सेल्स-टैक्स,इनकम-टैक्स,समाज कल्याण विभाग के अलावा सभी विभागो के स्थानान्तरण,प्रमोशन इस मूल-मंत्र पर सफ़लतापूर्वक चल रहे है,और भारत सरकार के राजकीय कोष से अधिक अपने कोष मे धनार्जन कर रहे है ! जय हो विलम्बता माई की !

शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

,"गांधीजी कितने प्रासंगिक हैं?

इस भौतिक वादी युग मे आज चिन्तन का विषय है कि जब घर -घर हिंसा और प्रतिकार का साम्राज्य फ़ैल रहा है ,"गांधीजी कितने प्रासंगिक हैं? खेद का विषय है कि गांधीजी के देश मे घरेलू हिंसा के बढते हुए विवाद इस बात के द्योतक हैं कि मनुष्य सामाजिक प्राणी होते हुए भी समाज की उपेछा कर रहा है ! उसे सामाजिक नियमो का उल्लंघन करने मे कोई डर नही लगता है !अर्थ प्रधान समाज मे दहेज़ की बलि-वेदी पर र्सैकडों नारियों का जीवन और परिवार बर्बाद हो रहे है! गांधीजी नारी को पूज्यनीय स्थान प्रदान करना चाहते थे इस लिये उनके विचारों की प्रासंगिकता बढ गई है!

हिंसा का अर्थ हाथ -पैर या द्न्डे से मार-पीट ही नही है, बल्कि बस मे चढ्ते हुए लडकियो से अपशब्दों का स्तेमाल,कार्यालयो मे सह कर्मणियो पर फ़ब्ती कसना भी भावनात्मक हिंसा की श्रॆणी मे आता है! परिवार मे बढती हुई शारीरिक हिंसा के विरोध मे स्वर ऊंचे हुए हैं,फ़िर भी एक भय का वातावरण कि सामाजिक बदनामी न हो मुश्किल से २०% शिकायत ही दर्ज़ होती है ! नारी को प्रतिरोध के लिये अबला से सबला बनने की गांधी जी की कल्पना को साकार करना ही उनको सच्ची श्र्द्धांजलि होगी ! अभी हाल मे घर मे बच्चो को मारने-पीट्ने पर भी माता -पिता पर प्रतिबन्ध लगाकर सरकार ने गांधीजी के विचारों को एक सम्बल प्रदान किया है !विद्यालयों मे अध्यापक-अध्यापिकाओं पर अंकुश लगाना, तकनीकी विद्यालयो और यूनीवर्सिटी मे रैगिंग विरोधी कानूनो का कडाई से पालन करवा कर सरकार ने हिंसा के विरुद्ध अपनी कटिबद्धता को प्रदर्शित किया है !
सरकार द्वारा कानून के ज़ोर से हिंसा का विरोध उतना कारगर नही होगा जितना कि गांधी दर्शन को "मनसा वाचा कर्मणा" अपने मे समाहित करना होगा !
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुंज सिकंदरा आगरा २८२००७ मो :9412443093

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

राजनीति मे युवको के योगदान की आवश्यकता

आज राजनीति को इतनी हेय द्रष्टि से देखा जाता है कि कि युवा वर्ग इसमे अपनी भागीदारी के प्रति अत्यन्त उदासीन हो गया है! भारतीय प्रशासन युवाओं की भागीदारी के लिये प्रतिबद्ध है कि सरकार ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम मे संशोधन कर मताधिकार की आयु २१ वर्ष से घटा कर १८ वर्ष कर दी है ! परन्तु खेद का विषय कि युवा वर्गचुनाव के दिन को मौज़-मस्ती मे पिक्चर देखने ,पिकनिक मनाने मे गुज़ारता है और मताधिकार का प्रयोग नही करता है,परिणाम मत प्रतिशत ३५-४० से अधिक नही बढता ! यह स्थिति विषेश रूप से शहरी छेत्र मे है ! प्रसन्नता का विषय यहहै कि ग्रामीण छेत्र मे युवक मताधिकार को एक पर्व के रूप मे देखता है और अपनी प्रतिभागिता को सुनिश्चित रखता है! परन्तु वहां एक युवा एक नही चार -चार गलत नाम से मताधिकार का प्रयोग कर ना केवल मताधिकार का दुरुपयोग करता है,बल्कि प्रजातंत्र का उपहास करता है ! प्रजातंत्र की नीव एक व्यक्ति एक वोट पर आधारित है !यदि समाज का अशिछित अथवा गुंड्डा वर्ग इस प्रकार मताधिकार करता है तो उसका प्रतिकार भी युवा वर्ग चौकसी कर सकता है !राजनीति मे प्रत्येक दल अपना चुनावी घोषणा-पत्र प्रकाशित करता है जो कि उस दल की भावी कार्य योजना का प्रतिबिम्ब होता है ! अशिछित वर्ग बिना उसे जाने ही मताधिकार का प्रयोग धन अथवा बल के प्रभाव मे आकर करता है,ऐसी परिस्थिति मे युवा वर्ग का दायित्व है कि अशिछित वर्ग को मौखिक रूप से उस घोषणा-पत्र का मनतव्य समझाये! यदि इस दायित्व से युवा वर्ग अपने को विमुख रखता है तो निश्चित रूप से अच्छे राष्ट्र या सरकार की कल्पना बेमानी है ! युवाओं को राजनीति मे आने की आवश्यकता इस लिये भी अधिक है कि विगत वर्षो मे राजनीति का अपराधी करण हुआ है,जो कि प्रजातंत्र के लिये घातक है ! धन या बल पर यदि सरकार का निर्माण होगा तो उस समाज मे क्राइम-ग्राफ़ ऊंचा रहेगा और सर्कार मूक दर्शक की तरह उसको अनदेखा करती रहेगी ! राजनीति को धनाड्यो की दासी बनने से रोकने के लिये भी युवाओ को सस्ते और पारदर्शी चुनाव की पहल करनी होगी !धनाडय वर्ग वोट का भी व्यापारीकरन करता है और मन्चाही सरकार चुनने के बाद घूसखोरी ,जमाखोरी को बधावा प्रदान करता है,जिसका प्रभाव प्रमुख रूप से सर्वहारा वर्ग पर ही पडता है,जो कि समाजवाद को घुन की तरह चाट जाता है ! युवा वर्ग की भागीदारी ही इस समस्या का अन्त कर सकती है ! जिस देश मे गरीबी रेखा से नीचे ३३% जनता रहती हो वहाँ चन्द रुपयों या दारू के लिये मतदाता का बिक जाना सामान्य सी बात है,परन्तु ऐसी स्थिति समाज का नीव को खोखला बना देती है! यदि युवा वर्ग आगे आकर धर्म,नीति और आस्था का वास्ता देकर उन्हे प्रेरित करें तो अच्छे समाज और राष्ट्र का निर्माण संभव है! अतः प्रजातंत्र को चिरस्थाई बनाने के लिये युवाओ का राजनीति मे आगमन आवश्यकीय एवं स्वागत योग्य है !

बोधि सत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

शनिवार, 25 सितंबर 2010

बाढ़ और सरकार

बाढ़ की विभीषिका से सम्पूर्ण उत्तर भारत काल के गाल में ग्रसित है !उधर बिभिन्न बांध धडाधड लाखों क्यूसेक पानी बिना जनहानि,धन-हानि,फसल हानि की चिंता किये हुए तबाही कर रहे हैं !  हमारी सरकार मूक दर्शक की भांति केवल पानी के प्रवाह,जन हानि और फसल हानि के आंकडे हमें  गिनवा रही है और हम राम भरोसे अगले
मंज़र का इंतज़ार कर रहे हैं !स्वतन्त्रता  के ६६ वर्षों के बाद अपने को अपनी बर्बादी अपनो के हाथों देख दुःख कम और अकर्मण्यता पर घराना और विछोभ अधिक हो रहा है !क्या यह चिंतन का विषय नहीं है कि जब सरकार बड़े -बड़े बांध बनाती है तो साथ ही ऐसी विषम परिस्थितियों के लिए कोई दूरगामी उपाय भी सोच कर कदम उठा लेती,
ताकि इतनी बड़ी जन-हानि और  धन-हानि प्रतिवर्ष नहीं होती !लेकिन सरकार राम भरोसे बैठी है कि कोई चमत्कार
 स्वत: होगा और इस प्रकार की बरबादी रोकने के लिए जापान ,अमेरिका ,रूस या फिर यूं.एन.ओ. से कोई मदद का प्रोजेक्ट लेकर आयेगा खुद पैसा लगाएगा या दान कर जाएगा ! आखिर हम स्वावलंबी बनाने के बारे में क्यों नहीं सोचते ?क्या सरकार  को  बांध बनाने साथ ही नदियों की गहराई बढाने का कार्यक्रम नहीं चलना चाहिए ?उलटे सरकार ने नदियों  से बालू खनन पर प्रतिबन्ध क्यों लगा रखा  है?

मंगलवार, 31 अगस्त 2010

sarhad par cheen

अमेरिकी समाचार पत्र न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के 7,000 से 11,000 तक सैनिक पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगित और बाल्टिस्तान क्षेत्र में मौजूद हैं। चिंतन का विषय  यह है कि भारतीय सरकार तुष्टि करण की राजनीति से ऊपर उठकर कब देश की अस्मिता और संप्रभुता के बारे में सोचेगी ?चीन के आर्थिक आक्रमण को कुटीर उद्योग  झेल रहा है !हर चीनी सस्ता उत्पाद जूते,चप्पल,खिलोने,से लेकर इलैक्त्रौनिक्स तक वो अपनी पकड़ बना चुका है और भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़   स्माल स्केल पर प्रहार कर चुका है ! हमें पता है कि उसने हिंद महासागर में सैनिक अड्डे भी कायम कर लिए है और भारत हर ओर से असुरक्चित है !परन्तु इस विषय में कोइ भी राजनैतिक दल सरकार  से श्वेत -पत्र सदन में पेश करने  की मांग क्यों नहीं कर रही है? इसे अभियान बनाकर हमे जन जाग्रति करनी होगी !
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुंजं सिकंदरा आगरा 282007

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

maananeeyoM kee balle balle

आज़ चिन्तन का विषय है कि जिस देश का किसान भूख से व्याकुल है, कर्ज़ के तले दब कर आत्म हत्या को विवश हो चुका है,विकास क्रे नाम पर विस्थापित किया जा रहा है और अपने अस्तित्व की अन्तिम  लडाई लडने को सडक पर उतर आया है, वहां माननीय सासद दीर्घा अपने मासिक वेतन की बढोत्तरी के लिये कितनी शान्ती से १६ हज़ार को बढाकर ५०ह्ज़ार कर लेती है !क्या इस मंह्गाई की सुरसा के दांत केवल माननीयों की गर्दन को ही दबोच रही है जो उनका वेतन ३ गुना से भी अधिक बढाने  का कदम उठाना पडा? इस महंगाई हेतु माननीय क्रषि मंत्री शरद पवार किसी भी ठोस कदम उठाने के लिये तेय्यार नही है और उस दिन का इन्त्ज़ार कर रहे हैं जब यह स्वतः बिना किसी ठोस कदम के समाप्त हो जायेगी ! किसी भी छेत्र मे ब्लेक्मार्केट-होर्डर पर कोई छापे की कार्यवाही नही हो रही है ,वर्ना दस छापे से हज़ार खुद- बखुद माल बाज़ार मे छोड्ने को मज़बूर हो जाते और कुछ न कुछ मंहगाई अवश्य प्रभावित होती ,पर माननीयो के चुनाव के सबसे बडे दानवीरो पर हाथ कौन डाले? एफ़ सी आई के गोदामो मे अनाज़ पडा सड  रहा है पर वो गरीबों को मुफ़्त नही बांटा जा सकता अन्य्था उनकी आर्थिक स्थिति मे इतना बडा परिवरतन आ जाता कि गरीबी के समी करण बदल जाते ! पिछले १६ वर्षो मे गरीबी १०%की दर से बढ रही है और पूजीपति माननीयो की श्रेणी मे आते जा रहे है ! कषि प्रधान देश मे कि्सान की दुर्दशा के लिये कौन ज़िम्मेवार है?
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा२८२००७

शनिवार, 14 अगस्त 2010

yog aur prakratik chikitsa

योग एवं प्राक्रतिक चिकित्सा
बोधिसत्व कस्तूरिया२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा
आज चिन्तन का विषय यह है कि क्या हम एलोपैथिक दवाईयों के गुलाम बन चुके हैं?आयुर्वेदिक,होम्योपैथिक और प्राक्रतिक चिकित्सा को छोड "तुरत दान महा कल्याण" के चक्कर मे बिभिन्न कैमीकल्स का गोदाम बनते जा रहे हैं! पारवारिक विघटन के कारण लोगों दादा _दादी के नुस्खे का लोगो को पता ही नही है!
आज यदि किसी को थोडा सा कब्ज़ हो जाता है तो वो चोकर,मिस्सी की रोटी या भुने चने की जगह कैस्टोफ़िन या कोई पेर्गटिव ले आते हैं! द्स्त होने पर ऎसब्गोल की भुसी और दही,मूग की दाल की खिचडी ,दही केला लेने के बजाय् तुरन्त मेट्रोज़ेल,ज़ैन्फ़्लोक्स आदि लेने दौड जाते है!ज़ुकाम मे तुलसी,अदरक,काली मिर्च का काढा पीने के बज़ायसीधे कोल्डारिन,विक्स ऐक्शन५००ले लेते है,बिना यह जाने कि् विदेशों मे प्रतिबंधित पैरासीटामौल की मात्रा कितनी है? क्या लम्बे समय तक इस्का सेवन हमारी किड्नी ,लीवर आदि को नुकसान तो नही पहंचा रही है?इन सभी का सीधा कारण है कि हम रेडी टु फ़ास्ट फ़ूड की तरह बिना साईड एफ़ैक्ट जाने "रेडी टु फ़ास्ट रिलीफ़ मैडीसन" लेने के अभ्य्स्त हो चुके हैं!नतीज़्तन हम लीवर,किड्नी की पथरी,कैंसर,टूयूमर जैसी से बीमारियों से भारी संख्या मे पीडित हो रहे है! हाईबीपी,शुगर,और ह्रदय रोग से पीडित हर घर मे मौज़ूद है! परन्तु हम अपने जीवन की शैली मे जो परिवर्तन कर चुके है उसमे कोई समझौता नही करना चाहते है! बच्चे देर रात तक कम्प्यूटर,टीवी देखते है,सुबह देर ८-९ बज़े तक सोते है ,पौष्टिक नाश्ता दलिया,पोहे आदि की बज़ाय चाऊमीन,मैक्रौनी खाते है! यदि इस दिन्चर्या मे सुधार कर ले और योग तथा पाक्रतिक चिकित्सा को अपना ले तो इस बीमारियों से स्व्तः मुक्ति प्राप्त हो जायेगी!महिलाये घर के काम- काज़ को छोड घंटो टीवी सीरियल देखती है और काम करती हैकाम वाली बाई तो स्वास्थ उन्का अच्छा होगा या माल्किन का ?वो तो हाईपर- टैन्शन,मोटापा,थाईराईड से ग्रस्त हो रही है!खेद का विषय यही है कि इन बीमारियों से बच्चे भी ग्रसित हो रहे है!
यदि निम्न बातों को जीवन शैली का अंग बना ले तो बीमारिया स्वतः दूर रहेगी:-
१. घर मे नौकरानियो से मुक्त रखे,अर्थात अपना घरेलू कार्य स्वयं तथा बच्चो के सहयोग से करें!
२.थोडी दूरी के लिये पैदल चले ,वाहन प्रयोग कम करें!
३.योग और प्राक्रतिक चिकित्सा को अपनी दिन चर्या का अभिन्न अंग बनाये!
४.दिन भर मे १० लीटर तक पानी पिये और ३ कि०मी० तक पैदल चले!
५ एलोपेथिक केवल जटिल बीमारियो और चोट आदि मे ही प्रयोग करे!

गुरुवार, 10 जून 2010

अपराधियों को राजनैतिक सरक्कां

भोपाल गैस त्रासदी
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज
सिकन्दरा,आगरा २८२००७
२० हज़ार्लोगो की मौत के दोषियो का अन्तिम निर्णय१९ जजो की खण्डपीठ्ने २६ वर्षो के बाद दिया जिसमे ८ दोषियो को सिर्फ़ २ साल की कैद और ५ लाख का ज़ुर्माना घोषित किया ! परन्तु यूनियन कार्बाईड के तत्कालीन चेय्ररमैन वारेन एन्डरसन की रिहाई इस बात को सिद्ध कर रही है कि तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री अर्जुन सिघं जी की भूमिका कितनी संदिग्ध है? चिन्तन का विषय यही है कि इतने बडे काण्ड के प्रमुख अपराधी को कैसे ४ दिन मे ज़मानत मिली और कैसे स्वयं ज़िला अधिकारी उनको एयर पोर्ट तक जीप मे बिठा कर छोडने आए और दिल्ली के बजाय स्पेशल प्लेन से वह इन्ग्लैन्ड भाग सका?
जनता दल के अध्यक्छ डा० सुब्रम्ण्यम स्वामी ने आरोप लगाया है कि अर्जुन सिघं की एन् जी ओ को ३ करोड रुपयो का अनुदान यूनीयन कार्बाईड ने किस लिये दिया गया था? अर्जुन सिघं की चुप्पी मौन स्वी्कारोक्ति प्रतीत होती है कि इतने बडे अपराधी को उनका संरछ्ण प्राप्त था, जिसकी वज़ह से वह ज़मानत पर छूट्ने के बाद फ़रार हो गया और वो भी प्रशासनिक मदद से! आखिर अपराधियो को राज्नैतिक संरछण कब तक मिलता रहेगा? कब तक साधारण जनता जनतत्र मे भी राजतत्र की तरह शोषण का शिकार होती रहेगी? आज स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि झारखन्ड के १९ मत्री अपराधी है?

बुधवार, 2 जून 2010

जनगणना में जाति का उल्लेख क्यों ?

जनगणना मे जाति का उल्लेख क्यों ?
आज जनगणना २०१० पारम्भ हो चुकी है ,परन्तु चर्चा इसकी है कि जाति का उल्लेख औचित्य पूर्ण है अथवा नही ? स्वतन्त्रता के ६३ वर्षो के बाद भी कोई दल जतिगत राजनीति से ऊपर नहीं उठ पाया है
धर्म निरपेछ राष्ट्र की कल्पना कैसे की जा सकती है जब प्रवेश,पोस्टिगं,प्रमोशन सभी मे आरक्छ्ण हावी है!इस आरक्छ्ण के कारण् सवर्णो मे विछोभ,विद्वेश,विद्रोह की भावना पनपने लगी है!अंग्रेज़ो ने"डिवाईड एण्ड रूल " की नीति अपना कर हिन्दू और मुस्लिम को बांट कर शासन किया,कांग्रेस ने सवर्ण और दलितो के बीच खाई बनाकर शासन किया,समाजवादियो ने पिछ्डा वर्ग का बिगुल बज़ाकरसत्ता हथियाई!आज स्थिती यह है कि कोई भी दल आरक्छण समाप्त करने का प्रस्ताव संसद मे नही लानाचाहती है!सरकार की कार्य प्रणाली यह है कि जो भी वर्ग आरक्छण के लिये रोड्जाम,रेल पटरी ऊखाड्ने का काम करती ,उसे आरक्छण के लिये प्रदेश सरकार के पाले मे फ़ेक कर अपना पल्लाझाड लेती है,जिसकी ताजा मिसाल राज्स्थान की गुर्ज़रसम्प्रदाय की माग है!यदिप्रदेश सरकार संस्तुति करेगी तो सवर्णो को एक कदम पीछे धकेल दिया जायेगा अर्थात बचे हुए अनारक्छित से ही और दान दे दिया जायेगा,नतीज़तन पिछ्डो को उठाने के लिये दूसरे वर्ग मे कटौती कर दो समाज वर्ग विहीन हो जायेगा!आज सौ योग्य बेशक घर बैठे रहे लेकिन एक पिछ्डे वर्ग का पद अयोग्य होने पर भी बैक्लौग के द्वारा
भरा जा रहा हैजिसकी वज़ह से विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका सछम नही रही और जनता स्वतःप्रशासनिक अधिकारियो को कभी बन्धक बनाती है कभी घेराव की राजनीति हो रहीहै,बदले मे सरकार र्ब्रिटिशर की तरह रोज़ बरबर्तापूर्ण तरीके अख्तियार करती है जो कि सभ्य समाज़ या विकसित रा्ष्ट्र की छवि नही बना रही है! चिन्तन का विष्य यही है कि सरकार दोहरे मापद्ण्ड पर कार्य क्यो कर रही है? आरकछ्ण समाप्त होने की कोई या तो सीमा निरधारित हो अथवा जाति का उल्लेख जनगणना मे किया जाय एवं तदनुसार उनकी आर्थिक स्थति का आंकलन हो कि वे पिछडे है या नही?एक स्वस्थ,सम्रिधशाली राष्ट्र के निर्माण मे आरक्छण बाधक है तो जाति का उल्लेख अनावश्यक है और आरक्छ्ण समाप्ति की अओर कदम बढाना होगा! हम भारतीय है यही हमारा धर्म या जाति है!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

रविवार, 30 मई 2010

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हिंसा का दर्शन या भारतीय दर्शन की हिंसा

बोधिसत्व कस्तूरिया

दन्तेवाडा के बाद मुम्बई जा रही ग्यानेश्वरी एक्स्प्रैस पर धमाका 147लोगो की हत्या और सैकडो लोगोकी जान लेने की साज़िश कर नक्सलवादी गरीबों की समस्या को जन मानस तक पंहुचाने का जो प्रयासकर रहे है नितान्त कायरता पूर्ण कार्य है! उसमे मरने वाले लोगो मे उनके आदिवासी भाई भी रहे होंगे ! यह सही है कि मौज़ूदा अर्थ व्यवस्था के दोषपूर्ण होने के कारण ही गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर हुआ है! एक तरफ़ गरीबी रेखा से नीचे रहने वालो मे १०% का इज़ाफ़ा हुआ है और दूसरी तरफ़ धीरू भाई अम्बानी के मर्णोपरान्त हुए पारिवारिक बिभाज़न के बाद भी मुकेश अम्वानी दुनिया के प्रथम१० रईसों की कतार मे पहुंच गये !परन्तु यह हिंसा का दर्शन गरीबो की मदद मे सहायक कदापि नही हो सकता! यह ध्रुव सत्य है कि इस प्रकार पुलिस,मिलिट्री या जन साधारण को हिंसा का शिकार बनाकर भारतीय दर्शन की हिंसा अवश्य होगी ! क्योकि सरकार जन साधारण को हथियार मुह्हैया करा रही है और विधिवत प्रशिक्छित कर रही है ताकि वे आत्म रक्छा हेतु प्रयोग कर सके जो कि भारतीय दर्शनकदापि नही है !यदि नकसलवादी माओ के सिधान्त "सत्ता का जन्म बैलट से नही बुलेट से होता है" को प्रतिपादित करने की अभिलाशा रखते है तो उन्हे चीन की आर्थिक नीति और उसके कार्य रूप मे परिणत करने वाले तत्वो का विष्लेषण करना होगा , कमोवेश वही स्थिती भारत वर्ष की है! गरीबी को जीतने के लिये रोज़गार के नये अवसरो की तलाश एवं उत्पादन छमता को परिमार्जित करना ही होगा!हिन्दुस्तान के नक्सल्वादियों को यह भी देखना चाहिये कि किस चालाकी से चीन ने माओवाद को किनारे कर समाज़वादी पूंज़ीवाद की तरफ़ कदम बढा दिये कि आज अमरीका स्वतः उस पूज़ीवाद की गिरफ़्त मे फ़स गया है! अमरीका सबसे बडा आयात चीन से कर रहा है ! समाज़ मे स्थापित शाति ही उसके विकास को आगे बढा सकती है न कि हिंसा ! अपने लोगो की हत्या नक्सल्वादियो के लिये घ्रणा,नफ़रत और द्वेश की भावना बढा रही है! जिस देश मे संसाधनो का अभाव हो वहां सड्को को तोड्ना,रेल ट्रैक उडाना ,अपने पैर पर कुलाह्डी मारने तुल्य है! अतः हिन्सा का दर्शन छोड भारतीय ससाधनो के भरपूर दोहन के लिये प्रयास करने चाहिये !

गुरुवार, 6 मई 2010

मृत्यु दंड

आज जब कि अजमल कसाब को ४ अभियोगों में मृत्यु-दंड व ६ में आजन्म कारावास की सज़ा सुना दी गयी है चिंतन का विषय यह है कि एक दहशत गर्द को मृत्यु-दंड न्याय संगत है ,जिससे वो एक मिनट में इस लोक से दूर चला जाएगा! पर उसने जिन लोगो के परिवारीजनों की न्रशंस ह्त्या की है क्या उनको कोइ संतुष्टी प्राप्त होगी ? किसी भी ऐसे अपराधी के लिए मृत्यु दंड शायद अपर्याप्त दंड है ! तिल तिल कर मरना शायद ज़्यादा उपयुक्त होता है?अफ़सोस भारत वर्ष में अंग भंग का प्रावधान नहीं है ! इस्लाम में इस प्रकार देश-द्रोह के लिए यही प्रावधान है ! सभ्य समाज के नियम में तो मृत्यु दंड का भी प्रावधान नहीं होता है फिर भारत में आज तक क्यों बदलाव नहीं लाया गया ?शायद हम अभी भी पूर्ण सभ्य नहीं हो पाए ?

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

हड़ताल और बंद कितने सार्थक ?

बोधि सत्व कस्तूरिया २०२
नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
आज चिन्तन का विषय यह है कि आधुनिक प्रगतिशील स्वतन्त्र भारत मे हड्ताल और बन्द कितने सार्थक है ? अभी अभी १३ विरोधी राजनैतिक दलों ने भारत बन्द का आवाहन मह्गाई के विरोध मे किया जिससे सरकारी रा्जकोष को अरबो का घाटा हुआ ! यह सत्य है कि मह्गाई १६.७८% तक पहुंच गई है और गरीब से लेकर मध्यम वर्गीय का मासिक बज़ट ४०-५०% तक बढ गया है !परन्तु एक प्रगतिशील स्वतन्त्र राष्ट्र के लिये राजनैतिक दलों का बेगाना व्यवहार (जैसा कि ब्रिटिश सरकार के समय मे करते थे) उन्की छोटी सोच की द्योतक है,जिसमे ट्रेनो,बसो को आग के हवाले करना,राष्ट्रीय सम्पदा को नुक्सान पहुचाना भी शामिल है !जिस देश को हज़ारो करोड का अनपूरित घाटे का बजट प्रतिवर्ष झेलना पड रहा हो ,उसके लिये एक दिन मे करोडो रुपये का नुक्सान पहुचाना कहां की बुधिमत्ता है? सभी राष्ट्रीय पार्टीयो को संसद मे दबाव बनाना चाहिये ,जबकि वहां बहिर्गमन की राजनीति अपनाते हैं ! माननीय भू.पू. विदेश राज्य मन्त्री शशी थरूर का यह कहना "अब हमे अपनी सोच बदलनी चाहिये" ,बिल्कुल सही है! संसद मे बहिष्कार करना और सड्को पर नव युवको को राष्ट्रीय सम्पदा बर्बाद करने के लिये प्रेरित करना कतई बर्दाश्त के काबिल नही है ! गत ३ माह मे महगाई पर अन्कुश लगाने के लिये सभी पार्टी कहती रही लेकिन किसी भी पार्टी ने सरकार पर दाल ,तिल्हन ,चीनी ,आटे के गोदामो पर छापे की कार्यवाही के लिये दबाब नही बनाया,वरना५ छापो पर ५०० होर्डर माल बाहर बाज़ार मे चुपके से छोड देते है और कल्पित कमी स्वतः कन्ट्रोल मे आ जाती है! बन्द और धरना मे चन्द असामाजिक तत्व भीड मे शामिल हो कर लूट -पाट करते है कुछ नये छुट भैये नेता अखबारो, मीडिया के माध्यम से अपनी छवि केन्द्रीय नेताओ तक बनाने के लिये हीरो बनते है और जानते है कि यही सही वक्त है जब फ़ायर ब्रान्ड नेता बनने का मौका मिल सकता है उसके लिये बेशक एकाध मुक्दमा पंजीक्रित हो जावे या दो चार दिन जेल की हवा खानी पडे ! एक दिन के बन्द के दूरगामी प्रभावो से अवगत कराने का दायित्व भी इन्ही नेताओ के ऊपर है जिससे वे पूर्णतया विमुख हैं और गैर ज़िम्मेदार नागरिको की फ़ौज त्तैयार कर रहे है,क्योकि राजनीति की पहली योग्यता गुन्डागर्दी है! आज छोटे नेता राजनीति भी इसी स्तर से करते है कि किसी गुन्डे को थाने से छुड्वाने के लिये पैरवी करते है,ओर प्रशासनिक अधिकारियो के कार्यालय मे उनसे गाली- गलौज़ कर अपना कद ऊंचा करते है! इसीलिये समाज़ मे सीधे और सच्चे लोगो को उपहास का विषय बनना पडता है और गुन्डो का काम तुरन्त हो जाता है! जापान मे विरोध प्रदर्शित करने का अनोखा तरीका अपनाया जा रहा है और उत्पादन दूना कर दिया जाता है, जिससे मालिको और सरकार को क्च्चे माल की सप्लाई की समस्या हो जावे, परन्तु लम्बे समय मे यह नीति सर्कार और बज़्ट मे लाभ दे रही है और वहा की आर्थिक व्यवस्था मज़बूत हो गई है ! आईये हम भी संकल्प ले कि नई पीढी को गुमराह होने से बचायें और ऐसे राजनीतिक लोगो से दूरी बनाये और उनकी भर्त्सना भी करे ! इसे अभियान के रूप मे ज़्यादा से ज़्याद लोगो तक ई-मेल के माध्यम से पहुंचाये !

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

ओबामा की मौत की गुजारिश

ओबामा की मौत की गुज़ारिश

"पिटीशन टू रिमूव फ़े्स बु्क ग्रुप् प्रेइगं फ़ार प्रेसीडैन्ट ओबामाज़ डेथ" एक ऐसी वैब साइट है जिसमे मांगी जाती है ओबामा की मौत की दुआ !इस ग्रुप मे अब तक २८००० लोग जुड चुके है ! इस पर लिखा है "प्रिय गाड,आपने पिछले साल्मेरे प्रिय अभिनेता पैट्रिक स्वाफ़्राह ज़ी को उठा लिया, आपने मेरी फ़ेव्रिट अभिनेत्री फ़राह फ़ोव्कैट को भी अपने पास बुला लिया ! हमारे प्रिय और महान गायक माइकल जैकसन को भी अपने पास बुला लिया ! अब आपसे प्रार्थना हैकि अप हमारेप्रिय राष्ट्रपतिबराक ओबामाको भी दिवंगत कर अपने पास बुला लें-आमीन !"कया इस प्रकार की साइट के पीछे किसी विपछी पार्टी का या किसी आतंकवादी संगठन का हाथ है या फ़िर किसी मसखरे की खुराफ़ाती दिमाग की उपज? यह तो अभी पता नही चल पाया है लेकिन यह सुनिश्चित है कि हम इन्टरनैट का दुरुपयोग कर रहेहै! जिस प्रकार ऐट्म का अविष्कार्मनव के उपयोग के लिये हुआ और ज़रा सी चूक से कितना दुरुप्योग हुआ और मानव संघार हुआ ! अतः चिन्तन का विषय है कि क्या हम इस पर अंकुश लगा सकते है ?यदि हा तो कैसे ?क्या इस प्रकार से इन्टेर्नैट को इसकी छमता से अधिक इस्तेमाल कर हम अपअने ही हाथ जल्द से जल्द खुद्कुशी नही कर रहे है?
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा२८२००७

रविवार, 25 अप्रैल 2010

काली कमाई का सदुपयोग

काली कमाई का सदुपयोग
सुविधा शुल्क, नम्बर दो की कमाई या काली कमाई ,एक ही शब्द भ्रष्टाचारके ही पर्यायवाची है,जिसके अधीन लगभग ९०% भारतवासी अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रहे है चाहे देते है या लेते है!उसी क्रम मे एक नाम आज सुर्खियों मे रहे मैडीकल काउन्सिल आफ़ इन्डिया के अध्यक्छ डा.केतन देसाई जिन्हे किसी मैडीकल कालेज की अनुमति देने के एवज़ मे २ करोड रुप्ये की रिश्वत सहित सी बी आई ने गिरफ़्तार किया और आज इन्कम टैक्स के छापों मे १८०१ करोड कैश १५ क्विन्टल सोना (कीमत २५० करोड रुपये),१२ मर्सडीज़,१२बी एम ड्ब्लू कारे,१२ रोलैक्स घडियां(अनुमानित कीमत ढाई लाख प्रति घडी),दर्जनोशराब की बोतले,१२ मोबाईल कीमत १५ लाख रुपये और उ०प्र०,राज्स्थान,हरयाणा मे महल नुमा भवन आदि आदि!यह तो भारत के लाखो अरबपतियो मे से एकाध है !जो पकडा जाए सो चोर,बाकी सब साहूकार ! इस एक व्यक्ति की समपत्ति यदि किसी आदिवासी या डकैत बहुल छेत्र के विकास मे औद्द्योगिक विकास मे लगा दी जाये तो लोगो को बच्चे बेचने, आत्म हत्या करने या असलाह उठाने से रोका जा सकता है! पर भारत की सरकार की नीतिया अस्पष्ट होने के कारण ऐसा समभव नही है! उन बीहड चम्बल नदी की खारो को ऊसर सुधार योजनामे बलि चढाने बाद यमुना ऐक्सप्रेस्स वे,ग्रेटर नोय्डा वे के नाम पर किसान की सिंचित क्र्षी योग्य भूमि का अधिग्रहण कर उन्की रोज़ी रोटी छीनने मे कोई हिचक नही है?चिन्तन का विषय यह है किभ्रष्ट लोगो की काली कमाई का सदुप्योग मिनिस्टरो के ऐशो- आराम पर खर्च करना क्या उसी क्रम की पुन्राव्रत्ति नही है?क्या उस धन को अति पिछ्डे इलाको मे खर्च करना, जन समस्याओ का तुरत निदान करना गलत है?क्रषी- योग्य भूमि के स्थान पर ऊसर या बीहड मे सड्को का जाल बिछाना,उद्द्योग लगाना सरकार की नीति-नियोजन नही होना चाहिये? ज़रा सोचिये और साथियों को चिन्त्न के लिये विवश कीजिये १
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

गरीबी और धन का अपवय्य

गरीबी और धन का अपव्य्य
आई पी एल का भूत अब सिर चढ कर बोलने लगा है ! कल संसद मे भी उसने दस्तक दे दी और संयुक्त रूप से विपछ ने आई पी एल प्रकरण मे सरकार के मंत्रियों की संलिप्तता के कारण जेपीसी (ज्वाइन्ट पार्लियामैन्ट क्मैटी) के गठन की मांग की, ताकि शासक दल के मत्रियो और उनके रिश्तेदारो की मनमानी पर से पर्दा उठ सके और दूध का दूध और पानी का पानी हो सके! श्री मती सुष्मा स्वराज ने तो नारा लगा दिया" दाल मे काला ज़रूर है, अभी और भी थरूर है"! अब चिन्ता का विषय है कि क्या काग्रेस इसके लिये राज़ी होगी और यदि हो गई तो फ़िर उसकी रिपोर्ट आने बाद उसमे पाये गये अभियुक्तों को दन्डित करने लायक मनोबल और इच्छाशक्ति भी रखती है ? या फ़िर सदैव की भांति आई पी एल की समाप्ति के बाद यह रिपोर्ट ढ्न्डे बस्ते मे चली जायेगी ! क्या वह व्यक्ति जिसने गत वर्ष ३२ लाख का इन्कमटैक्स भरा और अगले वर्ष ही ३११ करोड का इन्कम टैक्स एड्वान्स भरा संशय के दायरे से बाहर हो जायेगा?वे स्वय्म कह रहे है कि "मैने बी सी सी आई की ५ वर्ष मुफ़्त सेवा की वो मुझे जवाब देने के लिये ५ दिन का समय नही दे सकती !"साथ ही प्राएवेट प्लेन से बार बार डुबाई जाते हैं और उस प्लेन का खर्चा २लाख रुपये प्रति घन्टे की दर से १००० घन्टे का भुगतान आई पी एल ने किया!पैसे की ऐसी बर्बादी उस देश मे जायज़ है जहां २००४ मे गरीबी २७.५% से बढ्कर ३७.२ % यानी १४ वर्षो मे १०% अधिक हो गई और सम्पूर्ण विश्व की गरीबी का १/३ हिस्सा गरीब भारत मे बसते है !फ़िर भी स्वतन्त्रता के ६३ वर्षो के बाद भी देश के उस तबके के लिये देश के जनसेवक कितने जागरूक है ? सभी आंकडे विभिन्न समाचारो के आधार पर आश्रित है यदि इसमे कोई दोष हो तो मै व्यक्तिगत रूप से छ्मा प्रार्थी हूं! फ़िर भी चिन्तन के पाठ्को के लिये मन्थन का विषय है और ईमैल से प्रचारित करने की अपेछा रखता हूं!
बोधि सत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

गरीबी और धन का अपवय्य

गरीबी और धन का अपव्य्य
आई पी एल का भूत अब सिर चढ कर बोलने लगा है ! कल संसद मे भी उसने दस्तक दे दी और संयुक्त रूप से विपछ ने आई पी एल प्रकरण मे सरकार के मंत्रियों की संलिप्तता के कारण जेपीसी (ज्वाइन्ट पार्लियामैन्ट क्मैटी) के गठन की मांग की, ताकि शासक दल के मत्रियो और उनके रिश्तेदारो की मनमानी पर से पर्दा उठ सके और दूध का दूध और पानी का पानी हो सके! श्री मती सुष्मा स्वराज ने तो नारा लगा दिया" दाल मे काला ज़रूर है, अभी और भी थरूर है"! अब चिन्ता का विषय है कि क्या काग्रेस इसके लिये राज़ी होगी और यदि हो गई तो फ़िर उसकी रिपोर्ट आने बाद उसमे पाये गये अभियुक्तों को दन्डित करने लायक मनोबल और इच्छाशक्ति भी रखती है ? या फ़िर सदैव की भांति आई पी एल की समाप्ति के बाद यह रिपोर्ट ढ्न्डे बस्ते मे चली जायेगी ! क्या वह व्यक्ति जिसने गत वर्ष ३२ लाख का इन्कमटैक्स भरा और अगले वर्ष ही ३११ करोड का इन्कम टैक्स एड्वान्स भरा संशय के दायरे से बाहर हो जायेगा?वे स्वय्म कह रहे है कि "मैने बी सी सी आई की ५ वर्ष मुफ़्त सेवा की वो मुझे जवाब देने के लिये ५ दिन का समय नही दे सकती !"साथ ही प्राएवेट प्लेन से बार बार डुबाई जाते हैं और उस प्लेन का खर्चा २लाख रुपये प्रति घन्टे की दर से १००० घन्टे का भुगतान आई पी एल ने किया!पैसे की ऐसी बर्बादी उस देश मे जायज़ है जहां २००४ मे गरीबी २७.५% से बढ्कर ३७.२ % यानी १४ वर्षो मे १०% अधिक हो गई और सम्पूर्ण विश्व की गरीबी का १/३ हिस्सा गरीब भारत मे बसते है !फ़िर भी स्वतन्त्रता के ६३ वर्षो के बाद भी देश के उस तबके के लिये देश के जनसेवक कितने जागरूक है ? सभी आंकडे विभिन्न समाचारो के आधार पर आश्रित है यदि इसमे कोई दोष हो तो मै व्यक्तिगत रूप से छ्मा प्रार्थी हूं! फ़िर भी चिन्तन के पाठ्को के लिये मन्थन का विषय है और ईमैल से प्रचारित करने की अपेछा रखता हूं!
बोधि सत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

प्रथ्वी दिवस

प्रथ्वी दिवस
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प्रथ्वी का कर्ज़ चुकाने को,
माता का फ़र्ज़ निभाने को,
अपना शीश नवाते है!
नदिया,पर्वत,खेत खलिहानो से हमने जो पाया है उसका कर्ज़ चुकाने का समय आ गया है! इन सभी को चिरस्थाई रखने के लिये हमे केवल अपने आचार विचार मे कुछ सयम रख्नने की आवश्यकता है!
सर्व प्रथम भूगर्भीय- जल संरछण की ,-केवल उतने जल का प्रयोग करे ,जितनी आव्श्यक्ता हो !
पेड-पौधौ के छेत्र को बढाना होगा-कटान रोकना होगा ! क्रत्रिम खाद का प्रयोग समाप्त करना होगा!
पर्यावरण पदूषण रोकना होगा -अपने निज़ी वाहनो के स्थान पर सार्वजनिक वाहनो का प्रयोग करे!
आइये आज संकल्प लें कि घर से बाहर निकलने पर भी इन बातों को ध्यान मे अवश्य रखेंगे१ धन्य्वाद!

रविवार, 18 अप्रैल 2010

विश्वदाय दिवस


प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी विश्वदाय दिवस अर्थात वर्ल्ड हैरीटेज डे मनाया गया! अभी विश्व स्मारकों पर निशुल्क प्रवेश प्रदान किया गया अत भयंकर भीड़ उमड़ी ! परन्तु उस भीड़ में से क्या कभी इस दिवस को मनाने के पीछे छिपे उद्देश्य को जानने का प्रयास किया ?

विश्व के स्मारक हमारी धरोहर है और इनका संरक्षण क्यों आवश्यकीय है ?आज जब मनुष्य अपनी पिछली पीढी से समबन्ध नहीं रखती तो उनके भी पूर्वजों के बनवाए स्मारकों की परवाह क्या करेंगे ?माता-पिटा अपने ही जीवन काल में त्याज्य हो गए है तो उनके माता-पिता और दादा-दादी के सस्मरण कब तक सहेजेगे ? स्मारकों की दुर्दशा, उन पर लव त्रय्गल बनाना ,कोयले और चाक से अश्लील चित्र उकेरना ,अश्लील सम्वाद अंकित करना इसी का परिणाम है ! चितन का विषय यह है की आने वाली पीढी इतनी गैर ज़िम्मेदार क्यों होती जा रही है? क्या हमारे द्वारा उनमे डाले जा रहे सस्कार अपर्याप्त है या हम अच्छे सस्कार देने की योग्यता ही नहीं रखते क्योकि हमने भी अपने बुजुर्गों को वो सम्मान नहीं दिया जिसके वे हकदार थे ?

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुंज सिकंदरा आगरा 282007

सरकार की प्रतिबद्धता

सरकार की प्रतिबद्ध्ता

ललित मोदी और शशि थरूर के बीच का मुद्दा कि कौन दोषी अधिक है कौन कम? इससे कोई फ़र्क मीडिया को नही पड्ता, उन्हे केवल कुछ सनसनीखेज़ खबर बना कर जनता को अपने बुद्धू बक्से के सामने बिठाकर रख्नने से है,परन्तु ६०% गरीब भारतियों पर इस आइ पी एल का प्रभाव अवश्य पड्ना है! चिन्तनीय विषय यह है कि इस इतने बडे आयोजन से एक गरीब प्रजातन्त्र के सबसे बडे वर्ग को क्या लाभ मिल रहा है? जिसमे प्रत्येक आयोजन मे करोडो यूनिट बिजली खर्च हो रही है,जबकि किसानो को फ़सल पर भी ट्यूब वैल के लिये, उद्योगों को उत्पादन हेतु घंटो बिजली की कटौती का सामना करना पड रहा है! सरकार की मौन स्वीक्रति उसके एक ऐसे वर्ग के प्रति उसके प्रेम को प्रदर्शित करती है जो अभिजात्य वर्ग कहलाता है और उसके बिगडैल शह्ज़ादों को अपने पुरखों की नम्बर २ की कमाई को ठिकाने लगाने के लिये क्लब ,पब या आई पी एल की ज़रूरत होती है जहां जुए-सट्टे के माध्यम से रातों रात ५-१० गुना करने की आकांछा छिपी हुई है! यह सर्व विदित है पिछले ३ माह से इस कारोबार से सटोरियॊ ने अरबों रुपये कमा लिये और डुबई -करतार मे बैठे भाईयों के साथ उनके तार और मज़बूत हुए है! जब कोई आतंकवादी घटना होती है तो सरकार पडौसी देश से उसके तार होने की पुष्टि कर कडा विरोध पत्र भेज कर या जिन सगठनो ने उत्तरदायित्व अपने ऊपर लिया उनके प्रत्य्रर्पण की मांग करती है, जिन्हे स्वयं आई पी एल के माध्यम से पाल-पोस कर बडा किया है! अतः इस आयोजन की अनुमति देना ही सरकार की नियति पर प्रश्न्वाचक लगा देती है! दूसरी तरफ़ युवाओं से सर्वप्रिय खेल को ऐसे समय आयोजन की अनुमति देना ,जबकि युवा वर्ग वार्षिक एवं प्रतियोगी परीछाओं मे व्यस्त रहना चाह्ता है,क्या सरकार आने वाली पीढी के भविष्य के प्रति उत्तरदायी नही है?
सरकार योग्य नागरिको का अविर्भाव चाहती है या सटोरियों की जमात? यदि यह चिन्तन सार्थक है तो ई-मेल के माध्यम से सर्व प्रचारित कर इसे अभियान का रूप प्रदान करें! धन्यवाद!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७ मो:९४१२४४३०९३

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

सामाजिक परिवर्तन

सामाजिक परिवर्तन या सामाजिक पतन
------------------------------------बोधिसत्व कस्तूरिया
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा
सामाजिक परिवर्तन किसी भी समाज की गतिशीलता का द्योतक है! परन्तु यदि वो किसी अन्य समाज का अन्धा अनुकरण करे, तो निश्चित रूप से समाज धराशायी होने के कगार पर है! आज भारतीय समाज भी कुछ ऐसी विसंगतियों का शिकार हो रहा है! साथ ही दुर्भाग्य है कि देश की सर्वोच्च संस्था उस का अनुमोदन कर रही है! चर्चा और विवाद का विषय यह है कि क्या इस संस्था को अपने नियमित कार्य-कलापों (जिनका अम्बार लगा पडा है) को छोड इन विसंगतियों का भागीदार होने का हक हासिल है और यदि है, तो दिया किसने?
अभी हाल मे एक निर्णय मे सम -लैंगिकों को साथ रहने और विवाह की अनुमति देना तथा अन्य निर्णय मे लिव-इन-रिलेशनशिप(सह-जीवन यापन) को तर्क संगत ठहराना -कहां तक न्याय संगत है?आज समाज टीवी,सिनेमा और मोबाइल समाज मे किस कदर सामाजिक प्रदूषण फ़ैला रहे है, सर्व विदित है!
अतः हमारी सर्वोच्च संस्था का दायित्व भारतीय सांस्क्रतिक समप्दा को अक्छुण्य बना कर रखने का है न कि उस प्रदूषण को बढावा देने का? आज इलैक्ट्रानिक मीडिया निरंकुश है कोई चैनल पंजाबी संस्कति का अपमान करते हुए ब्रा-पैन्टी पहना कर ट्प्पे-गिद्दा दिखा रहा है तो कोई चैनल राजस्थान मे नारी शोषण के नाम पर बांझ स्त्री पर उसके देवर और ज्येष्ट से संमोग कराकर गर्भ धारण कराने को न्यायसंगत दिखा रहा है!
हांलाकि इस विषय पर महिला आयोग ने चैनल को नोटिस दिया है,परन्तु सैंसर बोर्ड सिनेमा से भी अधिक जन मानस तक पहुंचने वाले माध्यम पर अंकुश रखने मे बिलकुल असफ़ल रहा है! दूसरी तरफ़ सेंसर बोर्ड लेट्नाइट वयस्क फ़िल्म दिखाने को व्याकुल है१ मोबाइल व्यापार समबंध के बजाय प्रेम समब्न्धों को मल्टीप्लाई कर रहा है, ग्रह कलह को भी उच्च वरीयता प्रदान कर रहा है! ऐसे समय मे उक्त निर्णणयों का आना उस समाज की अन्धानुकरण है जहां विवाह मात्र एक सामाजिक अनुबन्ध(सोशल कांन्ट्रैक्ट) है,न कि सात जन्मो का बन्धन ! आज उस समाज मे तलाक की दर ५५% है जबकि हमारे देश मे महज़ २%,परन्तु लिव -इन रिलएशन के कारण महिलाओ के उत्पीडन के २५००० मुकदमे लम्बित पडे हैं! महिला आयोग का औचित्य इस निर्णय के बाद समाप्त हो जायेगा तथा भारतीय दण्ड विधान से बहु-विवाह को अपराध की श्रेणी से हटाना पडेगा,अप्राक्रतिक मैथुन वैध हो जायेगा !मेरे कहने का अर्थ् यह है कि सर्वोच्च संस्था को नये मानक स्थापित करने के स्थान पर मौज़ूद विधानो के संदर्भ मे ही व्याख्या करने का अधिकार प्राप्त है और यदि वह इसका उल्लंघन करती है तो जनता की अदालत मे जबाब देय है! यही प्रजातन्त्र की माग है कि हमारी सभ्यता एव संस्क्रति की उधेड-बुन नही की जाय!लिव-इन-रिलेशनशिप को ज़ायज़ ठहराने के बाद विवाह की सामाजिक मान्यता क्या रह जायेगी ? आज माता-पिता,रिश्ते-नातेदार कितने जतन और उत्साह से विवाह करते हैं,और इस बंधन को अपना कर्तव्य भी समझते हैं,जबकि पाश्चात्य समाज़ मे ऐसा नही है फ़िर हम उनका अनुकरण क्यो कर रहे?इसी प्रकार यदि सम्लैगिक रिश्तो को तरज़ीह दी जायेगी ,तो क्या यह प्रक्रति के साथ खिलवाड नही है? प्रक्रति या ईश्वर ने नर और मादा की उतपत्ति ,सभी जीवो को संतति -अर्थात् नई पीढी के उत्पादन हेतु किया गया है और कोई प्राणी इसका उल्ल्घन नही करता है !क्या मानव को विवेक और बुद्धि इसीलिये प्रदान की गई थी कि वो ईश्वर की सत्ता को चुनौती दे डाले और जो कार्य पशु नही करते वो भी कर सके ? समभवतः न्याय मूर्तिजन जो जैसा चल रहा है के आधारपर निर्णय दे रहे है! इस परिचर्चा पर आपके विचार सादर आमंत्रित हैइस परिचर्चा को अभियान बनाने मे आपका सह्योग अपेक्च्छित है! इसके लिये इस परिपत्र को अधिक से अधिक लोगों तक ई-मेल के माध्यम से भेजने का प्रयास करें! धन्यवाद!

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

आस्था

आस्था और धर्म में अंतर है पर धर्म आस्था पर आधारित है ! आस्था कभी एक छन में उत्पन्न हो जाती है और कभी अनेकों वर्षों तक साथ रहने पर भी नहीं होती है ! आस्था का पाठ मानव अपने संस्कारों से सीखता है ! आस्था वास्तव में विश्वास का प्रतिफल है ,या यूं कहे विश्वास की निरंतरता ही आस्था की जननी है ! बच्चे की यह आस्था कि मुझे भूख लगाने पर माँ भोजन देगी, माता द्वारा निरंतर भोजन देने का प्रतिफल है !भगवन में आस्था,गुरू में आस्था भी इसी प्रकार से उत्पन्न होती है !यदि किसी के परामर्श या दबाव में मनुष्य एकाध बार किसी गुरू के paas या मंदिर जाता है और उसकी कोई मनो कामना पूर्ण होती है तो विश्वास जागता है ,फिर उस विश्वास की निरंतरता उसमे आस्था को jagaatee है