गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

हड़ताल और बंद कितने सार्थक ?

बोधि सत्व कस्तूरिया २०२
नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
आज चिन्तन का विषय यह है कि आधुनिक प्रगतिशील स्वतन्त्र भारत मे हड्ताल और बन्द कितने सार्थक है ? अभी अभी १३ विरोधी राजनैतिक दलों ने भारत बन्द का आवाहन मह्गाई के विरोध मे किया जिससे सरकारी रा्जकोष को अरबो का घाटा हुआ ! यह सत्य है कि मह्गाई १६.७८% तक पहुंच गई है और गरीब से लेकर मध्यम वर्गीय का मासिक बज़ट ४०-५०% तक बढ गया है !परन्तु एक प्रगतिशील स्वतन्त्र राष्ट्र के लिये राजनैतिक दलों का बेगाना व्यवहार (जैसा कि ब्रिटिश सरकार के समय मे करते थे) उन्की छोटी सोच की द्योतक है,जिसमे ट्रेनो,बसो को आग के हवाले करना,राष्ट्रीय सम्पदा को नुक्सान पहुचाना भी शामिल है !जिस देश को हज़ारो करोड का अनपूरित घाटे का बजट प्रतिवर्ष झेलना पड रहा हो ,उसके लिये एक दिन मे करोडो रुपये का नुक्सान पहुचाना कहां की बुधिमत्ता है? सभी राष्ट्रीय पार्टीयो को संसद मे दबाव बनाना चाहिये ,जबकि वहां बहिर्गमन की राजनीति अपनाते हैं ! माननीय भू.पू. विदेश राज्य मन्त्री शशी थरूर का यह कहना "अब हमे अपनी सोच बदलनी चाहिये" ,बिल्कुल सही है! संसद मे बहिष्कार करना और सड्को पर नव युवको को राष्ट्रीय सम्पदा बर्बाद करने के लिये प्रेरित करना कतई बर्दाश्त के काबिल नही है ! गत ३ माह मे महगाई पर अन्कुश लगाने के लिये सभी पार्टी कहती रही लेकिन किसी भी पार्टी ने सरकार पर दाल ,तिल्हन ,चीनी ,आटे के गोदामो पर छापे की कार्यवाही के लिये दबाब नही बनाया,वरना५ छापो पर ५०० होर्डर माल बाहर बाज़ार मे चुपके से छोड देते है और कल्पित कमी स्वतः कन्ट्रोल मे आ जाती है! बन्द और धरना मे चन्द असामाजिक तत्व भीड मे शामिल हो कर लूट -पाट करते है कुछ नये छुट भैये नेता अखबारो, मीडिया के माध्यम से अपनी छवि केन्द्रीय नेताओ तक बनाने के लिये हीरो बनते है और जानते है कि यही सही वक्त है जब फ़ायर ब्रान्ड नेता बनने का मौका मिल सकता है उसके लिये बेशक एकाध मुक्दमा पंजीक्रित हो जावे या दो चार दिन जेल की हवा खानी पडे ! एक दिन के बन्द के दूरगामी प्रभावो से अवगत कराने का दायित्व भी इन्ही नेताओ के ऊपर है जिससे वे पूर्णतया विमुख हैं और गैर ज़िम्मेदार नागरिको की फ़ौज त्तैयार कर रहे है,क्योकि राजनीति की पहली योग्यता गुन्डागर्दी है! आज छोटे नेता राजनीति भी इसी स्तर से करते है कि किसी गुन्डे को थाने से छुड्वाने के लिये पैरवी करते है,ओर प्रशासनिक अधिकारियो के कार्यालय मे उनसे गाली- गलौज़ कर अपना कद ऊंचा करते है! इसीलिये समाज़ मे सीधे और सच्चे लोगो को उपहास का विषय बनना पडता है और गुन्डो का काम तुरन्त हो जाता है! जापान मे विरोध प्रदर्शित करने का अनोखा तरीका अपनाया जा रहा है और उत्पादन दूना कर दिया जाता है, जिससे मालिको और सरकार को क्च्चे माल की सप्लाई की समस्या हो जावे, परन्तु लम्बे समय मे यह नीति सर्कार और बज़्ट मे लाभ दे रही है और वहा की आर्थिक व्यवस्था मज़बूत हो गई है ! आईये हम भी संकल्प ले कि नई पीढी को गुमराह होने से बचायें और ऐसे राजनीतिक लोगो से दूरी बनाये और उनकी भर्त्सना भी करे ! इसे अभियान के रूप मे ज़्यादा से ज़्याद लोगो तक ई-मेल के माध्यम से पहुंचाये !

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