रविवार, 18 अप्रैल 2010

सरकार की प्रतिबद्धता

सरकार की प्रतिबद्ध्ता

ललित मोदी और शशि थरूर के बीच का मुद्दा कि कौन दोषी अधिक है कौन कम? इससे कोई फ़र्क मीडिया को नही पड्ता, उन्हे केवल कुछ सनसनीखेज़ खबर बना कर जनता को अपने बुद्धू बक्से के सामने बिठाकर रख्नने से है,परन्तु ६०% गरीब भारतियों पर इस आइ पी एल का प्रभाव अवश्य पड्ना है! चिन्तनीय विषय यह है कि इस इतने बडे आयोजन से एक गरीब प्रजातन्त्र के सबसे बडे वर्ग को क्या लाभ मिल रहा है? जिसमे प्रत्येक आयोजन मे करोडो यूनिट बिजली खर्च हो रही है,जबकि किसानो को फ़सल पर भी ट्यूब वैल के लिये, उद्योगों को उत्पादन हेतु घंटो बिजली की कटौती का सामना करना पड रहा है! सरकार की मौन स्वीक्रति उसके एक ऐसे वर्ग के प्रति उसके प्रेम को प्रदर्शित करती है जो अभिजात्य वर्ग कहलाता है और उसके बिगडैल शह्ज़ादों को अपने पुरखों की नम्बर २ की कमाई को ठिकाने लगाने के लिये क्लब ,पब या आई पी एल की ज़रूरत होती है जहां जुए-सट्टे के माध्यम से रातों रात ५-१० गुना करने की आकांछा छिपी हुई है! यह सर्व विदित है पिछले ३ माह से इस कारोबार से सटोरियॊ ने अरबों रुपये कमा लिये और डुबई -करतार मे बैठे भाईयों के साथ उनके तार और मज़बूत हुए है! जब कोई आतंकवादी घटना होती है तो सरकार पडौसी देश से उसके तार होने की पुष्टि कर कडा विरोध पत्र भेज कर या जिन सगठनो ने उत्तरदायित्व अपने ऊपर लिया उनके प्रत्य्रर्पण की मांग करती है, जिन्हे स्वयं आई पी एल के माध्यम से पाल-पोस कर बडा किया है! अतः इस आयोजन की अनुमति देना ही सरकार की नियति पर प्रश्न्वाचक लगा देती है! दूसरी तरफ़ युवाओं से सर्वप्रिय खेल को ऐसे समय आयोजन की अनुमति देना ,जबकि युवा वर्ग वार्षिक एवं प्रतियोगी परीछाओं मे व्यस्त रहना चाह्ता है,क्या सरकार आने वाली पीढी के भविष्य के प्रति उत्तरदायी नही है?
सरकार योग्य नागरिको का अविर्भाव चाहती है या सटोरियों की जमात? यदि यह चिन्तन सार्थक है तो ई-मेल के माध्यम से सर्व प्रचारित कर इसे अभियान का रूप प्रदान करें! धन्यवाद!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७ मो:९४१२४४३०९३

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