जनगणना मे जाति का उल्लेख क्यों ?
आज जनगणना २०१० पारम्भ हो चुकी है ,परन्तु चर्चा इसकी है कि जाति का उल्लेख औचित्य पूर्ण है अथवा नही ? स्वतन्त्रता के ६३ वर्षो के बाद भी कोई दल जतिगत राजनीति से ऊपर नहीं उठ पाया है
धर्म निरपेछ राष्ट्र की कल्पना कैसे की जा सकती है जब प्रवेश,पोस्टिगं,प्रमोशन सभी मे आरक्छ्ण हावी है!इस आरक्छ्ण के कारण् सवर्णो मे विछोभ,विद्वेश,विद्रोह की भावना पनपने लगी है!अंग्रेज़ो ने"डिवाईड एण्ड रूल " की नीति अपना कर हिन्दू और मुस्लिम को बांट कर शासन किया,कांग्रेस ने सवर्ण और दलितो के बीच खाई बनाकर शासन किया,समाजवादियो ने पिछ्डा वर्ग का बिगुल बज़ाकरसत्ता हथियाई!आज स्थिती यह है कि कोई भी दल आरक्छण समाप्त करने का प्रस्ताव संसद मे नही लानाचाहती है!सरकार की कार्य प्रणाली यह है कि जो भी वर्ग आरक्छण के लिये रोड्जाम,रेल पटरी ऊखाड्ने का काम करती ,उसे आरक्छण के लिये प्रदेश सरकार के पाले मे फ़ेक कर अपना पल्लाझाड लेती है,जिसकी ताजा मिसाल राज्स्थान की गुर्ज़रसम्प्रदाय की माग है!यदिप्रदेश सरकार संस्तुति करेगी तो सवर्णो को एक कदम पीछे धकेल दिया जायेगा अर्थात बचे हुए अनारक्छित से ही और दान दे दिया जायेगा,नतीज़तन पिछ्डो को उठाने के लिये दूसरे वर्ग मे कटौती कर दो समाज वर्ग विहीन हो जायेगा!आज सौ योग्य बेशक घर बैठे रहे लेकिन एक पिछ्डे वर्ग का पद अयोग्य होने पर भी बैक्लौग के द्वारा
भरा जा रहा हैजिसकी वज़ह से विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका सछम नही रही और जनता स्वतःप्रशासनिक अधिकारियो को कभी बन्धक बनाती है कभी घेराव की राजनीति हो रहीहै,बदले मे सरकार र्ब्रिटिशर की तरह रोज़ बरबर्तापूर्ण तरीके अख्तियार करती है जो कि सभ्य समाज़ या विकसित रा्ष्ट्र की छवि नही बना रही है! चिन्तन का विष्य यही है कि सरकार दोहरे मापद्ण्ड पर कार्य क्यो कर रही है? आरकछ्ण समाप्त होने की कोई या तो सीमा निरधारित हो अथवा जाति का उल्लेख जनगणना मे किया जाय एवं तदनुसार उनकी आर्थिक स्थति का आंकलन हो कि वे पिछडे है या नही?एक स्वस्थ,सम्रिधशाली राष्ट्र के निर्माण मे आरक्छण बाधक है तो जाति का उल्लेख अनावश्यक है और आरक्छ्ण समाप्ति की अओर कदम बढाना होगा! हम भारतीय है यही हमारा धर्म या जाति है!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
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