हिंसा का दर्शन या भारतीय दर्शन की हिंसा
बोधिसत्व कस्तूरिया
दन्तेवाडा के बाद मुम्बई जा रही ग्यानेश्वरी एक्स्प्रैस पर धमाका 147लोगो की हत्या और सैकडो लोगोकी जान लेने की साज़िश कर नक्सलवादी गरीबों की समस्या को जन मानस तक पंहुचाने का जो प्रयासकर रहे है नितान्त कायरता पूर्ण कार्य है! उसमे मरने वाले लोगो मे उनके आदिवासी भाई भी रहे होंगे ! यह सही है कि मौज़ूदा अर्थ व्यवस्था के दोषपूर्ण होने के कारण ही गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर हुआ है! एक तरफ़ गरीबी रेखा से नीचे रहने वालो मे १०% का इज़ाफ़ा हुआ है और दूसरी तरफ़ धीरू भाई अम्बानी के मर्णोपरान्त हुए पारिवारिक बिभाज़न के बाद भी मुकेश अम्वानी दुनिया के प्रथम१० रईसों की कतार मे पहुंच गये !परन्तु यह हिंसा का दर्शन गरीबो की मदद मे सहायक कदापि नही हो सकता! यह ध्रुव सत्य है कि इस प्रकार पुलिस,मिलिट्री या जन साधारण को हिंसा का शिकार बनाकर भारतीय दर्शन की हिंसा अवश्य होगी ! क्योकि सरकार जन साधारण को हथियार मुह्हैया करा रही है और विधिवत प्रशिक्छित कर रही है ताकि वे आत्म रक्छा हेतु प्रयोग कर सके जो कि भारतीय दर्शनकदापि नही है !यदि नकसलवादी माओ के सिधान्त "सत्ता का जन्म बैलट से नही बुलेट से होता है" को प्रतिपादित करने की अभिलाशा रखते है तो उन्हे चीन की आर्थिक नीति और उसके कार्य रूप मे परिणत करने वाले तत्वो का विष्लेषण करना होगा , कमोवेश वही स्थिती भारत वर्ष की है! गरीबी को जीतने के लिये रोज़गार के नये अवसरो की तलाश एवं उत्पादन छमता को परिमार्जित करना ही होगा!हिन्दुस्तान के नक्सल्वादियों को यह भी देखना चाहिये कि किस चालाकी से चीन ने माओवाद को किनारे कर समाज़वादी पूंज़ीवाद की तरफ़ कदम बढा दिये कि आज अमरीका स्वतः उस पूज़ीवाद की गिरफ़्त मे फ़स गया है! अमरीका सबसे बडा आयात चीन से कर रहा है ! समाज़ मे स्थापित शाति ही उसके विकास को आगे बढा सकती है न कि हिंसा ! अपने लोगो की हत्या नक्सल्वादियो के लिये घ्रणा,नफ़रत और द्वेश की भावना बढा रही है! जिस देश मे संसाधनो का अभाव हो वहां सड्को को तोड्ना,रेल ट्रैक उडाना ,अपने पैर पर कुलाह्डी मारने तुल्य है! अतः हिन्सा का दर्शन छोड भारतीय ससाधनो के भरपूर दोहन के लिये प्रयास करने चाहिये !

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें