गुरुवार, 6 मई 2010
मृत्यु दंड
आज जब कि अजमल कसाब को ४ अभियोगों में मृत्यु-दंड व ६ में आजन्म कारावास की सज़ा सुना दी गयी है चिंतन का विषय यह है कि एक दहशत गर्द को मृत्यु-दंड न्याय संगत है ,जिससे वो एक मिनट में इस लोक से दूर चला जाएगा! पर उसने जिन लोगो के परिवारीजनों की न्रशंस ह्त्या की है क्या उनको कोइ संतुष्टी प्राप्त होगी ? किसी भी ऐसे अपराधी के लिए मृत्यु दंड शायद अपर्याप्त दंड है ! तिल तिल कर मरना शायद ज़्यादा उपयुक्त होता है?अफ़सोस भारत वर्ष में अंग भंग का प्रावधान नहीं है ! इस्लाम में इस प्रकार देश-द्रोह के लिए यही प्रावधान है ! सभ्य समाज के नियम में तो मृत्यु दंड का भी प्रावधान नहीं होता है फिर भारत में आज तक क्यों बदलाव नहीं लाया गया ?शायद हम अभी भी पूर्ण सभ्य नहीं हो पाए ?
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