मैने अन्ना हज़ारे के आन्दोलन के दौरान ब्लाग लिखा कि "अन्ना के समर्थन मे जो लोग है वो खुद भी ऐसे भ्रष्ट तंत्र के अधीन निवास करते है कि कभी न कभी उन्होने भ्रष्ट आचरण का अनुसरण कर अपना काम करवाया होगा ,क्योकि हमाम मे सभी नंगे है" इस पर एक सज्जन ने टिप्पणी दी "कि हमाम का दरवाज़ा क्यो खुला रहे ? अन्ना तो दरवाज़ा बन्द करना चाह रहे है!"
अब जब किरण बेदी जी ने यह स्वीकार कर लिया है कि उन्होने कई आयोजको से उनके कार्यक्रम मे भाग लेने के लिये बिज़निस क्लास का हवाई टिकट वसूला और एक्ज़्क्यूटिव मे यात्रा की और जो अन्तर था उसे किसी एन ज़ी ओ मे जन हित मे लगा दिया ! अत:चिन्तन का विषय यह है कि आखिर भ्रष्टाचार का माप द्ण्ड क्या है?जैसा कि सर्व विदित है "भ्रष्टाचार" शब्द ’भ्रष्ट’ और ’आचरण" दो शब्दो के समन्वय से मिलकर हुआ है ! अत: शाब्दिक अर्थ तो यही है कि ज्योही हम भ्रष्ट आचरण की ओर उन्मुख होते है भ्रष्टाचारी हो जाते है! भ्रष्ट आचरण करने के लिये एक मानसिक निर्णय होता है और "अपराध" वही सम्पूर्ण हो जाता है ! यदि मन के इस निर्णय मे पारदर्शिता होती और आयोजक के संग्यान मे दे दिया जाता कि इस टिकट के अन्तर को इस उद्देश्य पर खर्च किया जावेगा तो यह अपराध की श्रेणी मे नही आता , क्योकि यदि किसी संविदा के पछकार आपस मे सभी क्रत्य के लिये पारदर्शिता रख कर कार्य कर रहे है तो कोई अपराध नही है !परन्तुयदि निर्धारित उद्देश्य से परे कार्य करते हो तो यह कपट व्य्वहार एवं भ्रष्ट आचरण है!
अब किरण जी बेशक यह दलील दे कि वे इतनी बडी -बडी पोस्ट पर रही जहाँ वो लाखो- करोडो कमा सकती थी कि परन्तु वह कुछ हज़ार रुपयो के लिये अपने फ़ायदे नही वरन परमार्थ हेतु किया गया क्रत्य था ! सम्भवत: किरण जी को यह विदित नही है कानून का सिद्धान्त कि"अपराधी -अपराध करने के बाद स्वयं को निर्दोष कहता है !"
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011
शुक्रवार, 23 सितंबर 2011
योजना आयोग का देश के साथ क्रूर मज़ाक
योजना आयोग द्वारा हलफ नामे सहित प्रस्तुत यह आकड़े कि कौन गरीबी रेखा से नीचे है और सरकारी सुविधाओं का पात्र हो सकता है? अत्यंत हास्यास्पद चित्रण खीच रहा है ! इस प्रकार की प्रस्तुति से यह निकल कर साफ़ तौर से सामना गया कि भारतवर्ष में अधिकारी गन देश की जनता के साथ,बजट और भारतीय सुविधाओं की परिकल्पनाओ की गलत तस्वीर प्रस्तुत कर विशवास घात कर रहे है ,क्योकि यही आधार होता है देश की आने वाली पञ्च वर्षीय योजनाओं की ! यदि हमारे पास मौजूद आकडे ही गलत है तो अगली नीति का निर्धारण कैसे हो सकता है ? यह एक चितनीय विषय है कि महगाई की बढ़ती हुई दरे भारतीयों की मूलभूत सुविधाओं रोटी ,कपड़ा और मकान को निम्नतम किस स्तर पर गरीबी रेखा से नीचे के मानक पर तय कर रहा है ? शिछा और स्वास्थ के प्रश्न की बात ही नहीं उठती है क्योकि जब तन पर कपड़ा न हो पेट भर भोजन न हो और सर छुपाने के लिए छत नहो तो शिछा और स्वास्थ भी अभिजात्य वर्ग की वस्तुए मानी जायेगी !हम बड़ी-बड़ी समस्याओं पर आन्दोलन करते है और उपवास कर रहे है कि "विदेशो से काला धन वापस लाओ", "भ्रष्टाचार मिटाओ अन्ना हम तुम्हारे साथ है" "पर्यावरण प्रदूषण समाप्त हो " आदि-आदि ! कभी क्या यह आन्दोलन नहीं होना चाहिए कि "प्रजातात्रिक गणराज्य में जो लोग इस तरह से अरबो रुपये तनखाह में लेते है ,सरकारी अधिकारी और नेता जो मनमाने तरीको से भारतीय पूजी का दुरूपयोग बेरोक टोक करते है उन्हें फासी दो !" क्यों कि यही लोग भारतीय पूजी में दीमक की तरह व्याप्त है और विकास की गति को अवरुद्ध कर रहे है ! समयबद्ध तरीके कभी कोइ योजना पूरी नहीं होती है परन्तु दोषी अधिकारियों को न तो छाता जाता है और न ही कोइ दंड का प्रावधान है,धीरे से बज़ट बढ़ा दिया जाता है ! जैसा कि कामन वैल्थ गेम्स में हुआ !
मंगलवार, 20 सितंबर 2011
उपवास
’उपवास’शब्द की विभक्ति उप+वास अर्थात वासना की उपेछा है ! दूसरे शब्दो मे उपवास का अर्थ भौतिक वस्तुओ का परित्याग है - जैसे भोजन,जल आदि का परित्याग ! परन्तु आज नये संदर्भो मे पारिभाषा को परिमार्जित करना पड रहा है ! ’उपवास’ सुगन्ध का उपवन हो गया है अर्थात सारे उपवन मे आप की सुगन्धि फ़ैले !
उपवास तीन प्रकार के हो गये है ! धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक ! उपवास पुरुष कम और महिलाये ज़्यादा करती है ! इन उपवासो को देखे वर्ष मे कम से कम १०० -१५० अर्थात माह १०-१५तक ! आखिर इन उपवासो का उद्देश्य क्या होता है?पहले इनका उद्देश्य वासना की उपेछा था ,परन्तु अब इनका उद्दे्श्य वासना की प्राप्ति है !शायद आप नही समझे ? वासना की प्राप्ति से मन्त्व्य यह है कि स्लिम और ट्रिम दिखने कीचाह मे यह किये जाते है ताकि ज़ीरो फ़िगर बरक्रार रह सके और अधिक से अधिक पुरुष आपकी ओर आकर्षित होसके और आप्की मर्किट वैल्यु बढती रहे !
सामाजिक उपवास समाज मे व्याप्त कुरीतीयो पर अंकुश लगाने हेतु सामाजिक कार्य कर्ताओ द्वारा किये जाते रहे है !जैसे अभी हाल मे बाबा राम देव ने काले धन को स्विस बैकों से वापिस लाने हेतु अथवा अन्ना हज़ारे जी ने भ्रष्टाचार उन्मुक्ति हेतु किया अथवा गाँधीजी ने हिन्दू मुस्लिम एकता हेतु किया था !
तीसरा "उपवास" राजनैतिक होता है जैसा अभी हाल मे ही गुज़रात मे समपन्न हुये ! एक तरफ़ प्रदेश के मुख्य मत्री महोदय नरेन्द्र मोदी और उनके विरोध मे काँग्रेस के भू०पू० मुख्य मंत्री शंकर सिंघ वाघेला ने किया ! नरेन्द्र मोदी जी का "सदभावना मिशन" गुजरात विश्व्व विद्यालय के एयर कन्डीशन्ड हाल मे किया गया ,जहाँ एक साथ ७००० लोगो के बैठने की व्यवस्था थी ! सभी प्रमुख समाचार पत्रो और टी०वी० चैनल पर प्रसारण पर मात्र १८ करोड का खर्चा आया जो कि एक गरीब राष्ट्र के भावी प्रधान मंत्री के लिये शायद अप्रयाप्त भी हो?
इसीलिये शंकर सिघ्ह वाघेला जी के मुताबिक ७२ घण्टे का उपवास ५४ मे ही निबटा लिया गया ,परन्तु उन्होने दावा किया कि वे इस तरह के फ़्राड के आदी नही है इसलिये पूरे ७२ घण्टे बैठे रहे -शायद निरुद्देश्य? इस प्रकार का उपवास केवल जनतंत्र मे ही होता है क्योंकि-
"जनता का पैसा,जनता की मर्ज़ी के विरुद्ध ,जनता के सामने ही खर्च किया जाता है और जनता देख कर मिसमिसाती रह जाये!"
उपवास तीन प्रकार के हो गये है ! धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक ! उपवास पुरुष कम और महिलाये ज़्यादा करती है ! इन उपवासो को देखे वर्ष मे कम से कम १०० -१५० अर्थात माह १०-१५तक ! आखिर इन उपवासो का उद्देश्य क्या होता है?पहले इनका उद्देश्य वासना की उपेछा था ,परन्तु अब इनका उद्दे्श्य वासना की प्राप्ति है !शायद आप नही समझे ? वासना की प्राप्ति से मन्त्व्य यह है कि स्लिम और ट्रिम दिखने कीचाह मे यह किये जाते है ताकि ज़ीरो फ़िगर बरक्रार रह सके और अधिक से अधिक पुरुष आपकी ओर आकर्षित होसके और आप्की मर्किट वैल्यु बढती रहे !
सामाजिक उपवास समाज मे व्याप्त कुरीतीयो पर अंकुश लगाने हेतु सामाजिक कार्य कर्ताओ द्वारा किये जाते रहे है !जैसे अभी हाल मे बाबा राम देव ने काले धन को स्विस बैकों से वापिस लाने हेतु अथवा अन्ना हज़ारे जी ने भ्रष्टाचार उन्मुक्ति हेतु किया अथवा गाँधीजी ने हिन्दू मुस्लिम एकता हेतु किया था !
तीसरा "उपवास" राजनैतिक होता है जैसा अभी हाल मे ही गुज़रात मे समपन्न हुये ! एक तरफ़ प्रदेश के मुख्य मत्री महोदय नरेन्द्र मोदी और उनके विरोध मे काँग्रेस के भू०पू० मुख्य मंत्री शंकर सिंघ वाघेला ने किया ! नरेन्द्र मोदी जी का "सदभावना मिशन" गुजरात विश्व्व विद्यालय के एयर कन्डीशन्ड हाल मे किया गया ,जहाँ एक साथ ७००० लोगो के बैठने की व्यवस्था थी ! सभी प्रमुख समाचार पत्रो और टी०वी० चैनल पर प्रसारण पर मात्र १८ करोड का खर्चा आया जो कि एक गरीब राष्ट्र के भावी प्रधान मंत्री के लिये शायद अप्रयाप्त भी हो?
इसीलिये शंकर सिघ्ह वाघेला जी के मुताबिक ७२ घण्टे का उपवास ५४ मे ही निबटा लिया गया ,परन्तु उन्होने दावा किया कि वे इस तरह के फ़्राड के आदी नही है इसलिये पूरे ७२ घण्टे बैठे रहे -शायद निरुद्देश्य? इस प्रकार का उपवास केवल जनतंत्र मे ही होता है क्योंकि-
"जनता का पैसा,जनता की मर्ज़ी के विरुद्ध ,जनता के सामने ही खर्च किया जाता है और जनता देख कर मिसमिसाती रह जाये!"
गुरुवार, 15 सितंबर 2011
नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गाँधी
अमेरिकी कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी जी को २०१४ के संसदीय चुनावके लिये भा०ज०पा० की ओर से प्रधान मंत्री पद के रूप मे प्रस्तुत करने की संभावना और राहुल गाँधी का काँग्रेस मे उच्चीकरण की संभावना व्यक्त कर देश मे नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गाँधी का मुद्दा खडा कर दिया है ! चिन्तन का विषय यह है कि यदि तुलनात्मक अध्ध्यन किया जाय तो राहुल गाँधी के पछ मे काँग्रेसी बेशक युवा पीढी का नेत्रत्व,नई सोच एवं २१वी सदी का नायक की संञा प्रदान कर दी हो, परन्तु उनकी झोली मे राजनैतिक अनुभव का अभाव सबसे बडी कमी है! किसी विशेष परिवार का वंशज़ होने की व्यवस्था केवल सामन्त वादी समाज मे संभव है न कि समाजवादी प्रजातंत्र मे ! इस प्रकार की व्यवस्थाओ ने ही भारत के प्रजातंत्र को कमज़ोर किया है! यदि किसी पार्टी के भीतर ही प्रजातंत्र नही हो ,तो वह कैसे देश मे उसके स्थापन की परिकल्पना करसकती है ! आज भी किसी वरिष्ठ से वरिष्ठ काँग्रेसी मे हिम्मत नही है कि वह अपने राजनैतिक अनुभव के आधार पर प्रधान मंत्री पद की दावेदारी पेश कर सके !
दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी जैसा कुशल ,योग्य और अनुभवी प्रशासक जिसने न केवल गुजरात बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष मे सफ़ल प्रशासक के नये मान दंड स्थापित कर दिये है! अतः राहुल बनाम नरेन्द्र मोदी की बहस केवल बौद्धिक विकलांगता की परिचायक है !
बोधिसत्व कस्तूरिया
ऎड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी जैसा कुशल ,योग्य और अनुभवी प्रशासक जिसने न केवल गुजरात बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष मे सफ़ल प्रशासक के नये मान दंड स्थापित कर दिये है! अतः राहुल बनाम नरेन्द्र मोदी की बहस केवल बौद्धिक विकलांगता की परिचायक है !
बोधिसत्व कस्तूरिया
ऎड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
गुरुवार, 18 अगस्त 2011
"हमाम मे सभी नंगे है"
"हमाम मे सभी नंगे है"
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आज मेरे मोबाईल पर वरिष्ट पत्रकार डा० महाराज सिंह जी का संदेश मिला,
"कौन कहता है कि हमारे समाज मे समानता नही है! आज भ्र्ष्टाचार करने वाले और भ्र्ष्टाचार मिटाने वाले एक साथ अन्ना की जयकार कर रहे है!"
चिन्तन का विषय यही है कि भ्र्ष्टाचार मिटाने के लिये कोई " मनसा,वाचा,कर्मणा"इस आन्दोलन से जुडा हुआ है अथवा केवल अपने को एक आदर्श भारतीय नागरिक सिद्ध करने के लिये अन्ना की आड मे अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंक रहे है! चाहे वकील हो या व्यापारी अपने संस्थानो मे हड्ताल कर रहे है! क्या ये उस भ्र्ष्ट् तंत्र को अपनी दिन प्रतिदिन की गति विधियों से बढाने मे सहयोग नही करते है? अन्ना का आन्दोलन अब केवल इस तक सीमित है कि प्रधानमंत्री और न्यायाधीष को लोकपाल के अधिकार छेत्र मे भी शामिल किया जाय तथा द्ण्डात्मक अधिकार भी प्रदान किये जाय ! प्रश्न यह है कि क्या इसके लिये इतने बडे आन्दोलन के आव्श्यक्ता थी जब कि लोकपाल विधेयक संसद मे पेश हो चुका है और संशोधन के लिये बहस भी होगी ! यदि यह प्रस्ताव पारित नही होता है तो भी संसद मे वरुण गाँधी वैय्क्तिक बिल पेश करने के लिये संकल्पित है जिसमे अन्ना के सभी बिदु शामिल होंगे !
दूसरा प्रश्न यह है कि क्या भ्र्ष्टाचार सत्युग ,द्वापर मे नही था अथ्वा अन्य देशों मे नही है ?हर युग मे यह व्याप्त रहा है कभी सामाजिक,कभी नैतिक और कभी आर्थिक ! बाली का वध भ्रष्ट तरीके से हुआ, कर्ण कुन्ती के कान से पैदा हुआ, द्रौपदी का चीर हरण नैतिक भ्रष्टाचार के उदाहरण है ! दूसरे वाटर गेट स्कैण्डल अमरीका और जापान का लाक हीड काण्ड आर्थिक भ्रष्टाचार के उदाहरण है ! अर्थात हर युग और समाज मे मानव के साथ भ्र्ष्टाचार का बीज भे पनपता है !हाँ यदि उन्मूलन के लिये अन्ना ने पहल की तो उसका स्वागत करना हर नागरिक का कर्तव्य है ! पर यह उन्मूलन अन्ना के आन्दोलन या लोकपाल बिल पारित हो जाने से नही होगा ,उसके लिये युवाओं के अन्दर अदम्य साहस और इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगीकि वे भ्र्ष्ट लोगो का न केवल बहिष्कार करे बल्कि उन्हे द्ण्डित कराने के लिये पकडने आगे आयें !
एक फ़िल्म आई थी "हम सब चोर है"जिसका उद्देश्य यही था कि हम सब भीतर से तो भ्र्ष्ट है पर जो पकडा जाता है वही कहलाता है ! आज यही स्थिति ह्हो चुकी है कि जन्म पंजीकरण से म्रत्यु प्रमाण पत्र के लिये रिशवत देनी पड रही है अर मैने भी पिताजी का म्रत्यु प्रमाण्पत्र ३ माह की जद्दोजहद और १०० रुपये देने पडे ! अर्थात मै भी भ्रष्ट हूं "हमाम मे सभी नंगे है!"
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
शुक्रवार, 12 अगस्त 2011
रक्छाबन्धन ,
प्यार का पवित्र संस्कार है रक्छाबन्धन ,
स्नेह और दुलार का अभिसार है रक्छाबन्धन !
कर्तव्य-बोध की हुन्कार है रक्छाबन्धन ,
आषीश की अविरल धार है रक्छाबन्धन !!
समय के संवेग मे क्यूं शून्य रक्छाबन्धन ?
पारिवारिक मर्यादाओं का श्रंगार है रक्छाबन्धन !!
किसी अभागे से कभी पूछो क्यूं पिताने ही,
किया है उस प्यार का संघार छीन वह क्रन्दन !!
है तुम्हें उस प्यार की सौगन्ध बदल डालो,
सामाजिक अभिशाप की प्रथा ताकि हो तुम्हारा वन्दन!!
यदि मादा भ्रूण ही धरा से विलुप्त हो जायेंगे,
फ़िर कौन कहेगा कि भईया है आज रक्छाबन्धन !!
बोधिसत्व कस्तूरिया
एड्वोकेट
निदेशक ,कस्तूरिया कैरियर क्न्सलटैन्ट,
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
स्नेह और दुलार का अभिसार है रक्छाबन्धन !
कर्तव्य-बोध की हुन्कार है रक्छाबन्धन ,
आषीश की अविरल धार है रक्छाबन्धन !!
समय के संवेग मे क्यूं शून्य रक्छाबन्धन ?
पारिवारिक मर्यादाओं का श्रंगार है रक्छाबन्धन !!
किसी अभागे से कभी पूछो क्यूं पिताने ही,
किया है उस प्यार का संघार छीन वह क्रन्दन !!
है तुम्हें उस प्यार की सौगन्ध बदल डालो,
सामाजिक अभिशाप की प्रथा ताकि हो तुम्हारा वन्दन!!
यदि मादा भ्रूण ही धरा से विलुप्त हो जायेंगे,
फ़िर कौन कहेगा कि भईया है आज रक्छाबन्धन !!
बोधिसत्व कस्तूरिया
एड्वोकेट
निदेशक ,कस्तूरिया कैरियर क्न्सलटैन्ट,
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
शनिवार, 23 जुलाई 2011
लोकपाल विधेयक
लोकपाल विधेयक को लेकर इतनी तू-तू मै-मै हो रही है कि अन्ना कैम्प ने कपिल सिब्बल के संसदीय छेत्र चाँदनी चौक पर हमला बोल दिया ! यँहा कार्य कर्ता घर और दूकान पर जाकर भ्रष्टाचार के उन्मूलन विधेयक पर अपनी मुहीम चला रहे है कि प्रधान मंत्री कोलोकपाल विधेयक के अन्तर्गत शामिल किया जाय अथवा नही ? क्योंकि उनका सांसद उक्त सिधान्त का घोर विरोध कर रहा है और विधेयक को पारित नही होने दे रहा है ! समझ मे नही आता है कि केवल प्रधान मंत्री पद को उस सीमा मे लाने के लिये अलग से कवायद क्यों की जारही है,क्या केवल शब्द"जन प्रतिनिधि " का समावेश अर्प्याप्त है?उससे पहले चिन्तन का विषय यह है कि क्या भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारतीय दन्ड विधान की धारायें काफ़ी नही हैं? प्रशन उठता है कि विगत ६५ वर्षों मे भ्रष्टाचार इतना क्यं बढ गया ?मेरे विचार से इसके लिये उत्तर दायी है हमारा -आपका मनोबल और नैतिकता जिसका शनैः शनैः ह्रास होता जा रहा है और भौतिक्वादी विचार धारा अध्यात्मिक पर हावी होती जा रही है !पहले साएकिल पर चलने वले ,और किराये के मकान मे रहने वाले को स्म्मान की द्रष्टै से देखा जाता था,परन्तु अब तो जिसके पास चार -पाँच वाहन हो दो-चार मकान हो उसे सम्मान किया जाता है बेशक उसने यह सम्पदा भ्र्ष्ट तरीके से अर्जित की हो!वही धर्माचार्य और नेता की पदवी से सुशोभित होता है!
यह एक सिद्ध!न्त है कि "एक भ्रष्ट व्यक्ति के पीछे उसका लालची परिवार होता है " अर्थात मनुष्य की बढती आवश्यक्तायें और इक्छाये उसे सदैव से पतित बनाती चली आई हैं! परिणाम यह है कि मनुष्य को उन पर अँकुश लगाना अत्यावश्यक हैअन्य्था भ्र्ष्टाचार अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जायेगा ! उसे मिटाने के लिये पर्याप्त कानून् विद्द्यमान है किसी विधेयक की आवश्यकता नही है ,आवश्यकता है उससे लडने के लिये आत्म शक्ति की जिसका हमारे अन्दर सर्वथा अभाव होता जा रहा है ! अपने स्वार्थ वश हम किसी भी तरीके को अपना लेते है अथवा उसके लिये भ्र्ष्ट आदमी का न तो बहिष्कार करते है और न ही प्रतिकार करने हेतु खडे होते है !महाकाव्य काल मे भी राम चरित मानस मे कहा गया"जब -जब होय धर्म की हानी,तब-तब बढे असुर,अधम,अभिमानी !" यछ प्रश्न यह है कि धर्म कया है ?यदि कोई समाज किसी नियम का अनुपालन करता है तो वह न्याय स्म्गत है यदि उसका बहिष्कार करता है या अनीति की श्रेणी मे रखता है तो वह अधर्म है ! आज यदि हम भ्र्ष्ट लोगो को अंगीकार कर रहे है तो यह धर्म है और यदि भ्रष्ट लोगो का बहिष्कार प्रारम्भ करते है तो यह धर्म होगा !आज लोग भविष्य ,पाप,पुण्य से भयाक्रान्त नही है वे आज मे जीने के लिये सही-गलत सभी उपाय स्वीकार कर रहे है ,क्योंकि उनकी आत्म्शक्ति का ह्रास हो चुका है!आज पत्र-पत्रिकाओं मे वे ही दिखते है जो १५-२० वर्षो मे ही ह्ज़ार से सीधे करोड्पति बन गये हो!माध्यम और उसके परिणाम पर चर्चा तब होती है ,जब वह पकडा जाता है, अन्य्था वही हीरो है! सेल्स टैक्स,इनकम टैक्स ,एजूकेशन ,न्याय विभाग,पुलिस विभाग ,पीड्ब्लूडी आदि सभी विभाग युग युगान्तर ए ऊपर्से नीचे तक रिशवत की दम पर ही चलता है हम देते है और वो लेते है ! दोषी कौन है ?हमारा स्वार्थ कि हम अपना काम अस दिन की बजाय एक दिन मे ही करवा ले चाहे कितनी भी रकम खर्च करनी पडे !प्रशासन भी आ~ख मूदे है क्योंकि अधिकारी भी हम और आप का ही अंश हैं !आज सीबीसी के निदेशक ने कहा कि सी बी एस ई के पाठ्य्क्रम मे भ्र्ष्टाचार के विरुद्ध पाठ्य्क्रम तैय्यार हो ताकि अगली नसल उसे अधर्म समझे,भ्र्ष्टाचार स्वतः ही मिट जावेगा !
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट
निदेशक कस्तूरिया कैरियर एन्ड बिज़्निस क्न्सल्टैन्ट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा२८२००७
मो:९४१२४४३०९३
यह एक सिद्ध!न्त है कि "एक भ्रष्ट व्यक्ति के पीछे उसका लालची परिवार होता है " अर्थात मनुष्य की बढती आवश्यक्तायें और इक्छाये उसे सदैव से पतित बनाती चली आई हैं! परिणाम यह है कि मनुष्य को उन पर अँकुश लगाना अत्यावश्यक हैअन्य्था भ्र्ष्टाचार अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जायेगा ! उसे मिटाने के लिये पर्याप्त कानून् विद्द्यमान है किसी विधेयक की आवश्यकता नही है ,आवश्यकता है उससे लडने के लिये आत्म शक्ति की जिसका हमारे अन्दर सर्वथा अभाव होता जा रहा है ! अपने स्वार्थ वश हम किसी भी तरीके को अपना लेते है अथवा उसके लिये भ्र्ष्ट आदमी का न तो बहिष्कार करते है और न ही प्रतिकार करने हेतु खडे होते है !महाकाव्य काल मे भी राम चरित मानस मे कहा गया"जब -जब होय धर्म की हानी,तब-तब बढे असुर,अधम,अभिमानी !" यछ प्रश्न यह है कि धर्म कया है ?यदि कोई समाज किसी नियम का अनुपालन करता है तो वह न्याय स्म्गत है यदि उसका बहिष्कार करता है या अनीति की श्रेणी मे रखता है तो वह अधर्म है ! आज यदि हम भ्र्ष्ट लोगो को अंगीकार कर रहे है तो यह धर्म है और यदि भ्रष्ट लोगो का बहिष्कार प्रारम्भ करते है तो यह धर्म होगा !आज लोग भविष्य ,पाप,पुण्य से भयाक्रान्त नही है वे आज मे जीने के लिये सही-गलत सभी उपाय स्वीकार कर रहे है ,क्योंकि उनकी आत्म्शक्ति का ह्रास हो चुका है!आज पत्र-पत्रिकाओं मे वे ही दिखते है जो १५-२० वर्षो मे ही ह्ज़ार से सीधे करोड्पति बन गये हो!माध्यम और उसके परिणाम पर चर्चा तब होती है ,जब वह पकडा जाता है, अन्य्था वही हीरो है! सेल्स टैक्स,इनकम टैक्स ,एजूकेशन ,न्याय विभाग,पुलिस विभाग ,पीड्ब्लूडी आदि सभी विभाग युग युगान्तर ए ऊपर्से नीचे तक रिशवत की दम पर ही चलता है हम देते है और वो लेते है ! दोषी कौन है ?हमारा स्वार्थ कि हम अपना काम अस दिन की बजाय एक दिन मे ही करवा ले चाहे कितनी भी रकम खर्च करनी पडे !प्रशासन भी आ~ख मूदे है क्योंकि अधिकारी भी हम और आप का ही अंश हैं !आज सीबीसी के निदेशक ने कहा कि सी बी एस ई के पाठ्य्क्रम मे भ्र्ष्टाचार के विरुद्ध पाठ्य्क्रम तैय्यार हो ताकि अगली नसल उसे अधर्म समझे,भ्र्ष्टाचार स्वतः ही मिट जावेगा !
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट
निदेशक कस्तूरिया कैरियर एन्ड बिज़्निस क्न्सल्टैन्ट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा२८२००७
मो:९४१२४४३०९३
रविवार, 10 जुलाई 2011
सता के लाले
आज चिन्तन का विषय है कि मँह्गाई की मार से मर १.२५ अरब जन्ता का दर्द "युव्राज " को नही दिखता ! उन्हे तो दिखता है केवल २०१२ का उत्तर प्रदेश का चुनाव ! इसी तारतम्य मे भट्टा-पा्रर्सौल अलीगढ की किसान पंचायत जहाँ टिकटाआर्थीयों ने लम्बी-लम्बी फ़ौज़ जुटाई और किसान बताया ! यह सच है कि ४०-वय पर उन्हे यह बुद्धि आ गई कि नेहरू परिवार का वंशज़ होने से सत्ता नही मिलेगी ,यह प्रजात्न्त्र है ञहाँ जनता के बीच जाना ही होगा ! कल के हीरो राहुल गाँधी नही ,बल्कि उस साधारण व्यक्ति को कहा जाय जिसने साहस किया और उनसे यह कह दिया कि " माया ने किसान के खेत छीन लिये,और काँग्रेस ने मँहगाई बढा कर किसान के मुँह से निवाला छीन लिया !" तो अतिश्योक्ति नही होगी! बतौर शासक दल पिछले ६५ वर्षों मे काँग्रेस ने भू- अधिग्रहण कानून को संसद से पारित क्यों नही करवाया ?आज युवराज जान गय कि काँग्रेस को "फ़ूट डालो और शासन करो"की ब्रिटिश शैली को बदलना होगा ! जातिवादी समीकरण पर टिकट तो अभी भी बँटेगे ,परन्तु भारत की सबसे बडी बिरादरी किसान है, न कि दलित या मुस्लिम ,जिन्के खिसक जाने से काँग्रेस का अस्तित्व ही खिसक गया !जब तक द्दलित और मुस्लिम ऊनके पाले मे थे अनके पौ बारह थे अब खिसक गये तो सता के लाले हैं!
बोधिसत्व कस्तूरिया (एड्वोकेट)
निदेशक
कस्तूरिया कैरियर एन्ड बिज़निस कंसलटैन्ट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
बोधिसत्व कस्तूरिया (एड्वोकेट)
निदेशक
कस्तूरिया कैरियर एन्ड बिज़निस कंसलटैन्ट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
सोमवार, 23 मई 2011
गुरुवार, 19 मई 2011
"परिवार ही नागरिकता की प्रथम पाठशाला
आगरा जनपद के प्रतिष्ठित विद्यालय के एक छात्र से उसी विद्यालय के सीनियर छात्र कुशाग्र ने डरा -धमका कर एक वर्ष मे लाखों रुपये की वसूली की ! आज भी पुलिस ने उजागर किया कि १४ फ़रवरी माह मे श्रीमती निरुपमा का पर्स जो फ़ूल सैयद चौराहे पर छीन ल;लिया गया था ,वो वो १६-१७ वर्ष के दो लडकों संदीप यादव और कमल कान्त शर्मा इन्द्रापुरम ने छीना था !
चिन्तन का विषय यह है कि पढने -लिखने की उम्र मे इस तरह की वारदात के पीछे अच्छे घरों के लडके ,मौज़-मस्ती अपने खर्चे पूरे करने के लिये करते है ,किसी गरीब या ज़रूरत मन्द-व्यक्ति द्वारा नही ! आखिर इस के मूल मे क्या सामाज़िक कारण है?आज विद्यालय विद्याअधय्यन
का स्थल न हो कर शान -शौकत के प्रदर्शन का केन्द्र बन चुके है ,जहाँ सभी वर्गों के बच्चे पढते है जिनकी आय साथ पढने वालों के बराबर न होते हुये भी उनसे प्रतिस्पर्धा रहती है कि मैं भी इनकी तरह घूमूं -फ़िरू मौज़-मस्ते करूं !शापिंग माल मे कोल्ड द्रिन्क,पीज़ा-बर्गर का सेवन करू मौका लगे तो माल मे पिक्चर देखूं जहाँ टिकट १२५-१५० रु० से कम नही है ! आखिर मध्यम वर्ग या निर्धन वर्ग का छात्र उसी दौड मे शामिल हो गलत तरीके अपनाता है! परिणामतः क्राईम-ग्राफ़ बढता जा रहा है ,प्रश्न यह है कि इसके लिये उत्तर दायी कौन है?
लापरवाह माता -पिता जो बच्चों की अतिविधियों पर ध्यान ही नही देते या अधिक जेब-खर्च देने वाले धनाड्य परिवार के माता-पिता,या फ़िर धनाड्यॊ की चाप्लूसी करने वाले वो लडके जो उनकी बराबरी करते है और खर्चे बढ्ने पर अपराध की ओर अग्रसर हो जाते हैं !इस प्रव्रत्ति को रोकने मे अभिवावको की पहल बहुत ज़रूरी है ! उन्हे अपनी यह मान्सिकता बदलनी होगी कि मँहगे स्कूल मे अपने पाल्यॊ को प्रवेश दिलाकर उनका उत्तरदायित्व समाप्त हो जाता है !उस समय उन्का यह कर्तब्य है कि बच्चों को सम्झाये कि उनकी हैसियत,आमदनी कितनी है और व उसका कितना भाग किस मद मे खर्च करने की छमता रखते है अतः बच्चे उसमे उन्का सहयोग करें ! अपने उत्त्तर दायित्व के निर्वहन के लिये उनसे मित्रवत व्य्वहार कर उनके मित्रों का परिचय एवं हैसियत का अद्ध्य्यन भी करें !साथ ही इस पर पैनी नज़र रखे कि बच्चे के खर्चे सामान्य है, या माँ-दादी वगैरह से चोरी- छुपके
कुछ अधिक तो नही ले रहा है, जो आप देने मे असमर्थ हैं !वरना ऐसा न हो " अब पछ्ताए कया होत है जब चिडियाँ चुग गई खेत!"यह ध्यान रहे कि बच्चे आप्की तरह आकाँछाओं पर अँकुश नही लगा पाते हैं इस कार्य मे उनकी सहायता करना ही आपका असली कर्तव्य है क्यॊकि "परिवार ही नागरिकता की प्रथम पाठशाला है!"
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा
९४१२४४०९३
गुरुवार, 12 मई 2011
"मुझे हिन्दुस्तानी होने पर शर्म आती है
"मुझे हिन्दुस्तानी होने पर शर्म आती है" कह्कर राहुल गाँधी ने शायद गरीब ,अनपढ जनता का दिल जीत लिया हो या शायद काँग्रेस के लिये कुछ वोट जुट लिये हो,पर शायद प्रबुद्ध जनता इन शब्दों को अनेकों मंन्च से अनेकों नेताओं के मुख से सुन चुकी है,अतः हास्यासापद प्रतीत हुआ ! नौएडा का भट्टापार्सौल हो या गढी रामी आगरा की घटना पर पूरा देश इस चिन्तन मे डूबने के लिये बाध्य है कि भारत के संविधान निर्माताओं का भारत को गणतन्त्र घोषित करना मात्र एक औपचारिकता थी या ढकोसला ? स्वतंत्र भारतीय प्रजातंत्र मे जलियाँवाला बाग की पुनराव्रत्ति इस बात की द्योतक है कि तब भी शासक वर्ग अपना कोडा बरसा कर प्रशासन चलाता था और आज भी ! कुछ भी नही बदला है पिछले १०० वर्षों मे ,केवल सत्ता बदली है! भारतीय संविधान मे सम्पत्ति का मौलिक अधिकार प्रदत्त अवश्य है,पर केवल पुस्तको तक , ताकि विश्व मे हम सभ्य- समाज़ की श्रेणी मे शामिल हो जाँय ! स्वतंत्रता के ६४ वर्षो मे भी देश का नागरिक अपनी पुशतैनी ज़मीन, जिसको वो अपनी माँ मानता है, क्योंकि वह उसे धन-धान्य दोनो ही प्रदान करती है ,उस पर भी उसका नही बल्कि सरकार का अधिकार होता है ! सरकार अपनी सहूलियत के हिसाब से उस अधिकार का प्रयोग कर किसी भी काश्तकारी ज़मीन पर से एक्स्प्रेस वे की लाइन खींच देगी ! ५००-८००रु प्रति वर्ग गज़ का मुआवज़ा देकर ज़मीन हथिया ली जाती है फ़िर २००० से २५०० रु प्रति वर्ग गज़ के सौदे बिल्डर्स के साथ कर लेगी,जो उसे थोडा डवलप कर १२००० से १५००० रु प्रति वर्ग गज़ से बेच देगा ,अर्थात फ़ायदा पूंजीपतियों का ही ताकि बेशक हज़ार दस हज़ार किसान बेघर- बार हो जाए लेकिन किसी एक भी पूंज़ीपति का नुकसान न हो, क्योंकि वो ही तो इन राजनैतिक- पार्टियों के दान -दाता हैं ! प्रबुद्ध वर्ग के लिये चिन्तन के प्रमुख मुद्दे है :-
१. क्या समपत्ति का अधिकार निरर्थक है?
२.सरकार को क्या अधिकार है कि वह क्रषि योग्य भूमि को गैर क्रषि कार्य के लिये प्रयोग करे?
३.क्या ब्रिटिश सरकार के पुलिस तंत्र और आज के पुलिस तंत्र मे रत्ती भर भी फ़र्क है?
४ क्या क्रषि मंत्रालय बता सकता है कि क्रषि प्रधान देश की पिछले ६५ वर्षो मे कितनी हैक्टेयर भूमि का दुरुपयोग हुआ है?
५.सरकार इन्फ़्रास्ट्रक्चर के नाम पर कितने घर और गाँव बर्बाद करेगी जिसे कई पुशतॆ बनाने मे लगी है?
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
मंगलवार, 5 अप्रैल 2011
जब जागो तभी सवेरा
आज अन्ना हज़ारे जी ने जो भ्रष्टाचार के विरोध मे राज घाट पर आमरण अनशन शुरू किया है ,उसके लिये इस वयोव्रद्ध काँग्रेसी नेता को कोटिशः प्रणाम ! आज उनकी ही पार्टी टूजीस्पैक्ट्र्म ,कामन वैल्थ् गेम्स घोटाले,महाराष्ट्र सरकार का सोसायटी घोटाला आदि मे लिप्त है, क्योकि सश्क्त लोक तंत्र की दुहाई देने वाली काँग्रेस ,लोक्पाल विधेयक १९६८ ,जिसमे प्रधान-मंत्री को भी शामिल करने बात पर आज तक न सहमत हो पाई,न बिल पास हो सका !जिसकी यह परिणति है सारा देश ,हर विभाग ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार के समुद्र मे टापू की तरह खडा हुआ है! यदि इसके उन्मूलन के लिये पहल करने लायक नही थे,तो कोई बात नही अब अन्ना के अनुयायी तो बन सकते है !"जब जागो तभी सवेरा" के आधार पर यह शपथ ले कि किसी को भी न रिशवत देगे नही लेंगे! केवल समर्थन के लिये भीड मे चलने की प्रव्रत्ति से हट्कर बडे शेर को न मार सकें कम से कम छोटी चींटी तो नही पनपने दें! क्रेवल एस एम एस करना कर्तव्य की इतिश्री नही है,यह तो उसका युद्ध का शंख नाद है! "जागो ग्राहक जागो और जगाओ भ्रष्र्टाचार को देश से दूर भगाओ !"
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन् सिकन्दरा आगरा २९२००७
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन् सिकन्दरा आगरा २९२००७
रविवार, 20 मार्च 2011
होली
होली के पावन पर्व पर चिन्तन के साधको को प्यार भरा प्रणाम !आज अभी अभी मेरे मित्र विजय पाल सिंघ जो डीएवी कालेज के अद्यापक है कहने लगे कि "कितना वाहियाद त्योहार है?" मैने कहा कि मनुष्य के अन्दर कुछ पाशविक प्रव्रत्तियां होती हैं , जिन्हे कभी न कभी मूत्र-विसर्जन की तरह बाहर निकाल देना चाहिये,अन्यथा समाज़ मे उनके कारण विक्रतियाँ पैदा हो जायेंगी! हमारे भाई-बहन,माँ-बेटे जैसे रिश्ते ही कलंकित होते देर नही लगेगी! उन्होने कहा" अब तो ब्राह्मण ही सबसे ज्यादा दारू पीते है!कोई डिग्री कालेज का प्रोफ़ेसर है,दूसरा बिद्युत विभाग का आला अधिकारी तीसरा दरोगा और चौथा पंचायत अधिकारी !सब पीकर ऐसी अश्लील हरकते कर रहे थे कि शर्म से मेरा सर झुक जा रहा था!"
मैने कहा यह तो कल्युग है जहाँ सब उल्टा होता है ! आप तो शुक्र मनाइये कि आप ब्राह्मण नही है! ब्राह्मण् को ब्रह्म का ग्यान नही है इसीलिये यह सब हो रहा है लेकिन मैने कहा मै ब्राह्मण हूं पर नही पीता कारण मै उसे खरीद(एफ़ोर्ड) नही सकता और वो कर सकते है! सभी को रू० ४०००० के आस -पास मासिक वेतन मिल रहा है और ऊपरी सो अलग ! तो दोष ब्राह्मण का नही बल्कि लक्छ्मी का है जिसने न केवल उनकी मति मारी है बल्कि वहाँ से निकलने का अपना रास्ता भी बना लिया है ! कबीर दास जी ने कहा है "माया महा ठगनि हम जानी !"किसी भी ब्राह्मण ने यह नही जानने की कोशिश की कि होलिका जिसका दहन हुआ था वह किसका प्रतीक है? उसे जलाते है पर उसी की जय भी बोलते है ! जलाते है क्योंकि परम्परा है पर यह नही जानते क्यूं जलाई जाती है? होलिका प्रारूप है उस अहंकारी हिरण्य कश्यप की बुराइयों का जिनकी आड मे वह प्रभु की सत्ता को चुनोती देता था ! आज का त्योहार जिन बुराइयो को जलाने का है ,हम उसी के गुलाम हो गये है! आज के दिन भारत वर्ष मे इतनी दारू पी जाती है जितनी कि पेरू जैसे देश का पूरा सालाना बजट होता है!अब चिन्तन कौन करता है ?मै या आप जैसे बेबकूफ़ जिनको ज़्यादा कमाने और गवाने के लायक बुद्धि है ही नही ! धन्य हो कलियुग की !
शनिवार, 12 मार्च 2011
मंगलवार, 8 मार्च 2011
महिला दिवस
महिला दिवस पर नारी जगत को उसकी उपलब्धियों को साधुवाद! चिन्तन का विषय है कि क्या नारी की अपनी सोच मे परिवर्तन हुआ है? सम्भवतः नही! आज भी वह अपने को पति की अर्धान्गिनी का दर्जा नही दे पाई है ! आज भी वह उसका परमेश्वर व वह उसकी दासी कहलाने मे भारतीय मानती है, और जो पुरुष के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलती है उन्हे आवारा बदचलन सिद्ध करने की परिचर्चा मे सारा दिन गुज़ार सकती है! चिन्तन का विषय यह है कि नारी की इस दय्नीय स्थिति के लिये पुरुष से ज़्यादा नारी उत्तर दाई है! यदि वह अपनी कोख मे पल रहे जीव के लिये निर्णय का अधिकार अपने पति,सास या अन्य परिजनो को देती है तो यह उसके विनाश का द्योतक है नतीज़ा यह है कि आज भारत जैसे प्रगतिशील देश मे पुरुष-नारी का अनुपात १००० पर ९२७ रह गया है! सदैव से यह कहा जाता है कि पुरुष प्रधान समाज मे नारी का उत्पीडन और शोषण हुआ है ! परन्तु भारतीय नारी ने पाश्चात्य सभ्यता के अनुकरण के नाम पर यौन निमंत्रण देने वाले वस्त्रो को अंगीकार किया ! जीन्स-टाप से उन्नत उरोज़ और वक्छ्स्थल का प्रदर्शन यदि उन्हे अपने आदर्श फ़िल्मी सितारो की तरह सुन्दर और ग्लैम्राईज़ करते है तो उन्ही की तरह माँ -बहन की श्रेणी से हम बिस्तर करने वाली वैश्या का रूप ही प्रदान करते है! नतीज़ा है बलात्कार और अपहरण की बढती संख्या ! घर मे माँ-बाप बालिका को बालक रूप प्रदान कर अपने को उदारवादी सिद्ध करने का प्रयास करते है ,लेकिन वही वह उनके दुर्भाग्य का श्री गणेश कर देते है ! परिणामतः आज देवी रूप क्न्या भी अपने घर मे ही सुरछित नही है ! महिला दिवस पर मेरा आह्वाहन है कि माँ-बाप इस अन्धे अनुकरण से बाज आयें और क्या शालीन है और क्या अश्लील उसका तुलनात्मक अद्ध्यन करें! बच्चे अबोध होते है उनकी मानसिकता स्वतः बदल जाती है जब माँ-बाप किसी बात को स्वयं पर लागू करते है! माँ साडी जैसे शालीन वस्त्रो को त्याग षोडसी दिखने के लिये सलवार सूट पहनेगी तो बटी को कभी जीन्स या टाप के लिये प्रतिबन्धित नही कर सकती!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
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