मंगलवार, 8 मार्च 2011

महिला दिवस

महिला दिवस पर नारी जगत को उसकी उपलब्धियों को साधुवाद! चिन्तन का विषय है कि क्या नारी की अपनी सोच मे परिवर्तन हुआ है? सम्भवतः नही! आज भी वह अपने को पति की अर्धान्गिनी का दर्जा नही दे पाई है ! आज भी वह उसका परमेश्वर व वह उसकी दासी कहलाने मे भारतीय मानती है, और जो पुरुष के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलती है उन्हे आवारा बदचलन सिद्ध करने की परिचर्चा मे सारा दिन गुज़ार सकती है! चिन्तन का विषय यह है कि नारी की इस दय्नीय स्थिति के लिये पुरुष से ज़्यादा नारी उत्तर दाई है! यदि वह अपनी कोख मे पल रहे जीव के लिये निर्णय का अधिकार अपने पति,सास या अन्य परिजनो को देती है तो यह उसके विनाश का द्योतक है नतीज़ा यह है कि आज भारत जैसे प्रगतिशील देश मे पुरुष-नारी का अनुपात १००० पर ९२७ रह गया है! सदैव से यह कहा जाता है कि पुरुष प्रधान समाज मे नारी का उत्पीडन और शोषण हुआ है ! परन्तु भारतीय नारी ने पाश्चात्य सभ्यता के अनुकरण के नाम पर यौन निमंत्रण देने वाले वस्त्रो को अंगीकार किया ! जीन्स-टाप से उन्नत उरोज़ और वक्छ्स्थल का प्रदर्शन यदि उन्हे अपने आदर्श फ़िल्मी सितारो की तरह सुन्दर और ग्लैम्राईज़ करते है तो उन्ही की तरह माँ -बहन की श्रेणी से हम बिस्तर करने वाली वैश्या का रूप ही प्रदान करते है! नतीज़ा है बलात्कार और अपहरण की बढती संख्या ! घर मे माँ-बाप बालिका को बालक रूप प्रदान कर अपने को उदारवादी सिद्ध करने का प्रयास करते है ,लेकिन वही वह उनके दुर्भाग्य का श्री गणेश कर देते है ! परिणामतः आज देवी रूप क्न्या भी अपने घर मे ही सुरछित नही है ! महिला दिवस पर मेरा आह्वाहन है कि माँ-बाप इस अन्धे अनुकरण से बाज आयें और क्या शालीन है और क्या अश्लील उसका तुलनात्मक अद्ध्यन करें! बच्चे अबोध होते है उनकी मानसिकता स्वतः बदल जाती है जब माँ-बाप किसी बात को स्वयं पर लागू करते है! माँ साडी जैसे शालीन वस्त्रो को त्याग षोडसी दिखने के लिये सलवार सूट पहनेगी तो बटी को कभी जीन्स या टाप के लिये प्रतिबन्धित नही कर सकती!




बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

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