प्यार का पवित्र संस्कार है रक्छाबन्धन ,
स्नेह और दुलार का अभिसार है रक्छाबन्धन !
कर्तव्य-बोध की हुन्कार है रक्छाबन्धन ,
आषीश की अविरल धार है रक्छाबन्धन !!
समय के संवेग मे क्यूं शून्य रक्छाबन्धन ?
पारिवारिक मर्यादाओं का श्रंगार है रक्छाबन्धन !!
किसी अभागे से कभी पूछो क्यूं पिताने ही,
किया है उस प्यार का संघार छीन वह क्रन्दन !!
है तुम्हें उस प्यार की सौगन्ध बदल डालो,
सामाजिक अभिशाप की प्रथा ताकि हो तुम्हारा वन्दन!!
यदि मादा भ्रूण ही धरा से विलुप्त हो जायेंगे,
फ़िर कौन कहेगा कि भईया है आज रक्छाबन्धन !!
बोधिसत्व कस्तूरिया
एड्वोकेट
निदेशक ,कस्तूरिया कैरियर क्न्सलटैन्ट,
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
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