’उपवास’शब्द की विभक्ति उप+वास अर्थात वासना की उपेछा है ! दूसरे शब्दो मे उपवास का अर्थ भौतिक वस्तुओ का परित्याग है - जैसे भोजन,जल आदि का परित्याग ! परन्तु आज नये संदर्भो मे पारिभाषा को परिमार्जित करना पड रहा है ! ’उपवास’ सुगन्ध का उपवन हो गया है अर्थात सारे उपवन मे आप की सुगन्धि फ़ैले !
उपवास तीन प्रकार के हो गये है ! धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक ! उपवास पुरुष कम और महिलाये ज़्यादा करती है ! इन उपवासो को देखे वर्ष मे कम से कम १०० -१५० अर्थात माह १०-१५तक ! आखिर इन उपवासो का उद्देश्य क्या होता है?पहले इनका उद्देश्य वासना की उपेछा था ,परन्तु अब इनका उद्दे्श्य वासना की प्राप्ति है !शायद आप नही समझे ? वासना की प्राप्ति से मन्त्व्य यह है कि स्लिम और ट्रिम दिखने कीचाह मे यह किये जाते है ताकि ज़ीरो फ़िगर बरक्रार रह सके और अधिक से अधिक पुरुष आपकी ओर आकर्षित होसके और आप्की मर्किट वैल्यु बढती रहे !
सामाजिक उपवास समाज मे व्याप्त कुरीतीयो पर अंकुश लगाने हेतु सामाजिक कार्य कर्ताओ द्वारा किये जाते रहे है !जैसे अभी हाल मे बाबा राम देव ने काले धन को स्विस बैकों से वापिस लाने हेतु अथवा अन्ना हज़ारे जी ने भ्रष्टाचार उन्मुक्ति हेतु किया अथवा गाँधीजी ने हिन्दू मुस्लिम एकता हेतु किया था !
तीसरा "उपवास" राजनैतिक होता है जैसा अभी हाल मे ही गुज़रात मे समपन्न हुये ! एक तरफ़ प्रदेश के मुख्य मत्री महोदय नरेन्द्र मोदी और उनके विरोध मे काँग्रेस के भू०पू० मुख्य मंत्री शंकर सिंघ वाघेला ने किया ! नरेन्द्र मोदी जी का "सदभावना मिशन" गुजरात विश्व्व विद्यालय के एयर कन्डीशन्ड हाल मे किया गया ,जहाँ एक साथ ७००० लोगो के बैठने की व्यवस्था थी ! सभी प्रमुख समाचार पत्रो और टी०वी० चैनल पर प्रसारण पर मात्र १८ करोड का खर्चा आया जो कि एक गरीब राष्ट्र के भावी प्रधान मंत्री के लिये शायद अप्रयाप्त भी हो?
इसीलिये शंकर सिघ्ह वाघेला जी के मुताबिक ७२ घण्टे का उपवास ५४ मे ही निबटा लिया गया ,परन्तु उन्होने दावा किया कि वे इस तरह के फ़्राड के आदी नही है इसलिये पूरे ७२ घण्टे बैठे रहे -शायद निरुद्देश्य? इस प्रकार का उपवास केवल जनतंत्र मे ही होता है क्योंकि-
"जनता का पैसा,जनता की मर्ज़ी के विरुद्ध ,जनता के सामने ही खर्च किया जाता है और जनता देख कर मिसमिसाती रह जाये!"
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