मैने अन्ना हज़ारे के आन्दोलन के दौरान ब्लाग लिखा कि "अन्ना के समर्थन मे जो लोग है वो खुद भी ऐसे भ्रष्ट तंत्र के अधीन निवास करते है कि कभी न कभी उन्होने भ्रष्ट आचरण का अनुसरण कर अपना काम करवाया होगा ,क्योकि हमाम मे सभी नंगे है" इस पर एक सज्जन ने टिप्पणी दी "कि हमाम का दरवाज़ा क्यो खुला रहे ? अन्ना तो दरवाज़ा बन्द करना चाह रहे है!"
अब जब किरण बेदी जी ने यह स्वीकार कर लिया है कि उन्होने कई आयोजको से उनके कार्यक्रम मे भाग लेने के लिये बिज़निस क्लास का हवाई टिकट वसूला और एक्ज़्क्यूटिव मे यात्रा की और जो अन्तर था उसे किसी एन ज़ी ओ मे जन हित मे लगा दिया ! अत:चिन्तन का विषय यह है कि आखिर भ्रष्टाचार का माप द्ण्ड क्या है?जैसा कि सर्व विदित है "भ्रष्टाचार" शब्द ’भ्रष्ट’ और ’आचरण" दो शब्दो के समन्वय से मिलकर हुआ है ! अत: शाब्दिक अर्थ तो यही है कि ज्योही हम भ्रष्ट आचरण की ओर उन्मुख होते है भ्रष्टाचारी हो जाते है! भ्रष्ट आचरण करने के लिये एक मानसिक निर्णय होता है और "अपराध" वही सम्पूर्ण हो जाता है ! यदि मन के इस निर्णय मे पारदर्शिता होती और आयोजक के संग्यान मे दे दिया जाता कि इस टिकट के अन्तर को इस उद्देश्य पर खर्च किया जावेगा तो यह अपराध की श्रेणी मे नही आता , क्योकि यदि किसी संविदा के पछकार आपस मे सभी क्रत्य के लिये पारदर्शिता रख कर कार्य कर रहे है तो कोई अपराध नही है !परन्तुयदि निर्धारित उद्देश्य से परे कार्य करते हो तो यह कपट व्य्वहार एवं भ्रष्ट आचरण है!
अब किरण जी बेशक यह दलील दे कि वे इतनी बडी -बडी पोस्ट पर रही जहाँ वो लाखो- करोडो कमा सकती थी कि परन्तु वह कुछ हज़ार रुपयो के लिये अपने फ़ायदे नही वरन परमार्थ हेतु किया गया क्रत्य था ! सम्भवत: किरण जी को यह विदित नही है कानून का सिद्धान्त कि"अपराधी -अपराध करने के बाद स्वयं को निर्दोष कहता है !"
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
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