बोधि सत्व कस्तूरिया २०२
नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
आज चिन्तन का विषय यह है कि आधुनिक प्रगतिशील स्वतन्त्र भारत मे हड्ताल और बन्द कितने सार्थक है ? अभी अभी १३ विरोधी राजनैतिक दलों ने भारत बन्द का आवाहन मह्गाई के विरोध मे किया जिससे सरकारी रा्जकोष को अरबो का घाटा हुआ ! यह सत्य है कि मह्गाई १६.७८% तक पहुंच गई है और गरीब से लेकर मध्यम वर्गीय का मासिक बज़ट ४०-५०% तक बढ गया है !परन्तु एक प्रगतिशील स्वतन्त्र राष्ट्र के लिये राजनैतिक दलों का बेगाना व्यवहार (जैसा कि ब्रिटिश सरकार के समय मे करते थे) उन्की छोटी सोच की द्योतक है,जिसमे ट्रेनो,बसो को आग के हवाले करना,राष्ट्रीय सम्पदा को नुक्सान पहुचाना भी शामिल है !जिस देश को हज़ारो करोड का अनपूरित घाटे का बजट प्रतिवर्ष झेलना पड रहा हो ,उसके लिये एक दिन मे करोडो रुपये का नुक्सान पहुचाना कहां की बुधिमत्ता है? सभी राष्ट्रीय पार्टीयो को संसद मे दबाव बनाना चाहिये ,जबकि वहां बहिर्गमन की राजनीति अपनाते हैं ! माननीय भू.पू. विदेश राज्य मन्त्री शशी थरूर का यह कहना "अब हमे अपनी सोच बदलनी चाहिये" ,बिल्कुल सही है! संसद मे बहिष्कार करना और सड्को पर नव युवको को राष्ट्रीय सम्पदा बर्बाद करने के लिये प्रेरित करना कतई बर्दाश्त के काबिल नही है ! गत ३ माह मे महगाई पर अन्कुश लगाने के लिये सभी पार्टी कहती रही लेकिन किसी भी पार्टी ने सरकार पर दाल ,तिल्हन ,चीनी ,आटे के गोदामो पर छापे की कार्यवाही के लिये दबाब नही बनाया,वरना५ छापो पर ५०० होर्डर माल बाहर बाज़ार मे चुपके से छोड देते है और कल्पित कमी स्वतः कन्ट्रोल मे आ जाती है! बन्द और धरना मे चन्द असामाजिक तत्व भीड मे शामिल हो कर लूट -पाट करते है कुछ नये छुट भैये नेता अखबारो, मीडिया के माध्यम से अपनी छवि केन्द्रीय नेताओ तक बनाने के लिये हीरो बनते है और जानते है कि यही सही वक्त है जब फ़ायर ब्रान्ड नेता बनने का मौका मिल सकता है उसके लिये बेशक एकाध मुक्दमा पंजीक्रित हो जावे या दो चार दिन जेल की हवा खानी पडे ! एक दिन के बन्द के दूरगामी प्रभावो से अवगत कराने का दायित्व भी इन्ही नेताओ के ऊपर है जिससे वे पूर्णतया विमुख हैं और गैर ज़िम्मेदार नागरिको की फ़ौज त्तैयार कर रहे है,क्योकि राजनीति की पहली योग्यता गुन्डागर्दी है! आज छोटे नेता राजनीति भी इसी स्तर से करते है कि किसी गुन्डे को थाने से छुड्वाने के लिये पैरवी करते है,ओर प्रशासनिक अधिकारियो के कार्यालय मे उनसे गाली- गलौज़ कर अपना कद ऊंचा करते है! इसीलिये समाज़ मे सीधे और सच्चे लोगो को उपहास का विषय बनना पडता है और गुन्डो का काम तुरन्त हो जाता है! जापान मे विरोध प्रदर्शित करने का अनोखा तरीका अपनाया जा रहा है और उत्पादन दूना कर दिया जाता है, जिससे मालिको और सरकार को क्च्चे माल की सप्लाई की समस्या हो जावे, परन्तु लम्बे समय मे यह नीति सर्कार और बज़्ट मे लाभ दे रही है और वहा की आर्थिक व्यवस्था मज़बूत हो गई है ! आईये हम भी संकल्प ले कि नई पीढी को गुमराह होने से बचायें और ऐसे राजनीतिक लोगो से दूरी बनाये और उनकी भर्त्सना भी करे ! इसे अभियान के रूप मे ज़्यादा से ज़्याद लोगो तक ई-मेल के माध्यम से पहुंचाये !
गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
सोमवार, 26 अप्रैल 2010
ओबामा की मौत की गुजारिश
ओबामा की मौत की गुज़ारिश
"पिटीशन टू रिमूव फ़े्स बु्क ग्रुप् प्रेइगं फ़ार प्रेसीडैन्ट ओबामाज़ डेथ" एक ऐसी वैब साइट है जिसमे मांगी जाती है ओबामा की मौत की दुआ !इस ग्रुप मे अब तक २८००० लोग जुड चुके है ! इस पर लिखा है "प्रिय गाड,आपने पिछले साल्मेरे प्रिय अभिनेता पैट्रिक स्वाफ़्राह ज़ी को उठा लिया, आपने मेरी फ़ेव्रिट अभिनेत्री फ़राह फ़ोव्कैट को भी अपने पास बुला लिया ! हमारे प्रिय और महान गायक माइकल जैकसन को भी अपने पास बुला लिया ! अब आपसे प्रार्थना हैकि अप हमारेप्रिय राष्ट्रपतिबराक ओबामाको भी दिवंगत कर अपने पास बुला लें-आमीन !"कया इस प्रकार की साइट के पीछे किसी विपछी पार्टी का या किसी आतंकवादी संगठन का हाथ है या फ़िर किसी मसखरे की खुराफ़ाती दिमाग की उपज? यह तो अभी पता नही चल पाया है लेकिन यह सुनिश्चित है कि हम इन्टरनैट का दुरुपयोग कर रहेहै! जिस प्रकार ऐट्म का अविष्कार्मनव के उपयोग के लिये हुआ और ज़रा सी चूक से कितना दुरुप्योग हुआ और मानव संघार हुआ ! अतः चिन्तन का विषय है कि क्या हम इस पर अंकुश लगा सकते है ?यदि हा तो कैसे ?क्या इस प्रकार से इन्टेर्नैट को इसकी छमता से अधिक इस्तेमाल कर हम अपअने ही हाथ जल्द से जल्द खुद्कुशी नही कर रहे है?
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा२८२००७
"पिटीशन टू रिमूव फ़े्स बु्क ग्रुप् प्रेइगं फ़ार प्रेसीडैन्ट ओबामाज़ डेथ" एक ऐसी वैब साइट है जिसमे मांगी जाती है ओबामा की मौत की दुआ !इस ग्रुप मे अब तक २८००० लोग जुड चुके है ! इस पर लिखा है "प्रिय गाड,आपने पिछले साल्मेरे प्रिय अभिनेता पैट्रिक स्वाफ़्राह ज़ी को उठा लिया, आपने मेरी फ़ेव्रिट अभिनेत्री फ़राह फ़ोव्कैट को भी अपने पास बुला लिया ! हमारे प्रिय और महान गायक माइकल जैकसन को भी अपने पास बुला लिया ! अब आपसे प्रार्थना हैकि अप हमारेप्रिय राष्ट्रपतिबराक ओबामाको भी दिवंगत कर अपने पास बुला लें-आमीन !"कया इस प्रकार की साइट के पीछे किसी विपछी पार्टी का या किसी आतंकवादी संगठन का हाथ है या फ़िर किसी मसखरे की खुराफ़ाती दिमाग की उपज? यह तो अभी पता नही चल पाया है लेकिन यह सुनिश्चित है कि हम इन्टरनैट का दुरुपयोग कर रहेहै! जिस प्रकार ऐट्म का अविष्कार्मनव के उपयोग के लिये हुआ और ज़रा सी चूक से कितना दुरुप्योग हुआ और मानव संघार हुआ ! अतः चिन्तन का विषय है कि क्या हम इस पर अंकुश लगा सकते है ?यदि हा तो कैसे ?क्या इस प्रकार से इन्टेर्नैट को इसकी छमता से अधिक इस्तेमाल कर हम अपअने ही हाथ जल्द से जल्द खुद्कुशी नही कर रहे है?
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा२८२००७
रविवार, 25 अप्रैल 2010
काली कमाई का सदुपयोग
काली कमाई का सदुपयोग
सुविधा शुल्क, नम्बर दो की कमाई या काली कमाई ,एक ही शब्द भ्रष्टाचारके ही पर्यायवाची है,जिसके अधीन लगभग ९०% भारतवासी अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रहे है चाहे देते है या लेते है!उसी क्रम मे एक नाम आज सुर्खियों मे रहे मैडीकल काउन्सिल आफ़ इन्डिया के अध्यक्छ डा.केतन देसाई जिन्हे किसी मैडीकल कालेज की अनुमति देने के एवज़ मे २ करोड रुप्ये की रिश्वत सहित सी बी आई ने गिरफ़्तार किया और आज इन्कम टैक्स के छापों मे १८०१ करोड कैश १५ क्विन्टल सोना (कीमत २५० करोड रुपये),१२ मर्सडीज़,१२बी एम ड्ब्लू कारे,१२ रोलैक्स घडियां(अनुमानित कीमत ढाई लाख प्रति घडी),दर्जनोशराब की बोतले,१२ मोबाईल कीमत १५ लाख रुपये और उ०प्र०,राज्स्थान,हरयाणा मे महल नुमा भवन आदि आदि!यह तो भारत के लाखो अरबपतियो मे से एकाध है !जो पकडा जाए सो चोर,बाकी सब साहूकार ! इस एक व्यक्ति की समपत्ति यदि किसी आदिवासी या डकैत बहुल छेत्र के विकास मे औद्द्योगिक विकास मे लगा दी जाये तो लोगो को बच्चे बेचने, आत्म हत्या करने या असलाह उठाने से रोका जा सकता है! पर भारत की सरकार की नीतिया अस्पष्ट होने के कारण ऐसा समभव नही है! उन बीहड चम्बल नदी की खारो को ऊसर सुधार योजनामे बलि चढाने बाद यमुना ऐक्सप्रेस्स वे,ग्रेटर नोय्डा वे के नाम पर किसान की सिंचित क्र्षी योग्य भूमि का अधिग्रहण कर उन्की रोज़ी रोटी छीनने मे कोई हिचक नही है?चिन्तन का विषय यह है किभ्रष्ट लोगो की काली कमाई का सदुप्योग मिनिस्टरो के ऐशो- आराम पर खर्च करना क्या उसी क्रम की पुन्राव्रत्ति नही है?क्या उस धन को अति पिछ्डे इलाको मे खर्च करना, जन समस्याओ का तुरत निदान करना गलत है?क्रषी- योग्य भूमि के स्थान पर ऊसर या बीहड मे सड्को का जाल बिछाना,उद्द्योग लगाना सरकार की नीति-नियोजन नही होना चाहिये? ज़रा सोचिये और साथियों को चिन्त्न के लिये विवश कीजिये १
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
सुविधा शुल्क, नम्बर दो की कमाई या काली कमाई ,एक ही शब्द भ्रष्टाचारके ही पर्यायवाची है,जिसके अधीन लगभग ९०% भारतवासी अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रहे है चाहे देते है या लेते है!उसी क्रम मे एक नाम आज सुर्खियों मे रहे मैडीकल काउन्सिल आफ़ इन्डिया के अध्यक्छ डा.केतन देसाई जिन्हे किसी मैडीकल कालेज की अनुमति देने के एवज़ मे २ करोड रुप्ये की रिश्वत सहित सी बी आई ने गिरफ़्तार किया और आज इन्कम टैक्स के छापों मे १८०१ करोड कैश १५ क्विन्टल सोना (कीमत २५० करोड रुपये),१२ मर्सडीज़,१२बी एम ड्ब्लू कारे,१२ रोलैक्स घडियां(अनुमानित कीमत ढाई लाख प्रति घडी),दर्जनोशराब की बोतले,१२ मोबाईल कीमत १५ लाख रुपये और उ०प्र०,राज्स्थान,हरयाणा मे महल नुमा भवन आदि आदि!यह तो भारत के लाखो अरबपतियो मे से एकाध है !जो पकडा जाए सो चोर,बाकी सब साहूकार ! इस एक व्यक्ति की समपत्ति यदि किसी आदिवासी या डकैत बहुल छेत्र के विकास मे औद्द्योगिक विकास मे लगा दी जाये तो लोगो को बच्चे बेचने, आत्म हत्या करने या असलाह उठाने से रोका जा सकता है! पर भारत की सरकार की नीतिया अस्पष्ट होने के कारण ऐसा समभव नही है! उन बीहड चम्बल नदी की खारो को ऊसर सुधार योजनामे बलि चढाने बाद यमुना ऐक्सप्रेस्स वे,ग्रेटर नोय्डा वे के नाम पर किसान की सिंचित क्र्षी योग्य भूमि का अधिग्रहण कर उन्की रोज़ी रोटी छीनने मे कोई हिचक नही है?चिन्तन का विषय यह है किभ्रष्ट लोगो की काली कमाई का सदुप्योग मिनिस्टरो के ऐशो- आराम पर खर्च करना क्या उसी क्रम की पुन्राव्रत्ति नही है?क्या उस धन को अति पिछ्डे इलाको मे खर्च करना, जन समस्याओ का तुरत निदान करना गलत है?क्रषी- योग्य भूमि के स्थान पर ऊसर या बीहड मे सड्को का जाल बिछाना,उद्द्योग लगाना सरकार की नीति-नियोजन नही होना चाहिये? ज़रा सोचिये और साथियों को चिन्त्न के लिये विवश कीजिये १
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
गरीबी और धन का अपवय्य
गरीबी और धन का अपव्य्य
आई पी एल का भूत अब सिर चढ कर बोलने लगा है ! कल संसद मे भी उसने दस्तक दे दी और संयुक्त रूप से विपछ ने आई पी एल प्रकरण मे सरकार के मंत्रियों की संलिप्तता के कारण जेपीसी (ज्वाइन्ट पार्लियामैन्ट क्मैटी) के गठन की मांग की, ताकि शासक दल के मत्रियो और उनके रिश्तेदारो की मनमानी पर से पर्दा उठ सके और दूध का दूध और पानी का पानी हो सके! श्री मती सुष्मा स्वराज ने तो नारा लगा दिया" दाल मे काला ज़रूर है, अभी और भी थरूर है"! अब चिन्ता का विषय है कि क्या काग्रेस इसके लिये राज़ी होगी और यदि हो गई तो फ़िर उसकी रिपोर्ट आने बाद उसमे पाये गये अभियुक्तों को दन्डित करने लायक मनोबल और इच्छाशक्ति भी रखती है ? या फ़िर सदैव की भांति आई पी एल की समाप्ति के बाद यह रिपोर्ट ढ्न्डे बस्ते मे चली जायेगी ! क्या वह व्यक्ति जिसने गत वर्ष ३२ लाख का इन्कमटैक्स भरा और अगले वर्ष ही ३११ करोड का इन्कम टैक्स एड्वान्स भरा संशय के दायरे से बाहर हो जायेगा?वे स्वय्म कह रहे है कि "मैने बी सी सी आई की ५ वर्ष मुफ़्त सेवा की वो मुझे जवाब देने के लिये ५ दिन का समय नही दे सकती !"साथ ही प्राएवेट प्लेन से बार बार डुबाई जाते हैं और उस प्लेन का खर्चा २लाख रुपये प्रति घन्टे की दर से १००० घन्टे का भुगतान आई पी एल ने किया!पैसे की ऐसी बर्बादी उस देश मे जायज़ है जहां २००४ मे गरीबी २७.५% से बढ्कर ३७.२ % यानी १४ वर्षो मे १०% अधिक हो गई और सम्पूर्ण विश्व की गरीबी का १/३ हिस्सा गरीब भारत मे बसते है !फ़िर भी स्वतन्त्रता के ६३ वर्षो के बाद भी देश के उस तबके के लिये देश के जनसेवक कितने जागरूक है ? सभी आंकडे विभिन्न समाचारो के आधार पर आश्रित है यदि इसमे कोई दोष हो तो मै व्यक्तिगत रूप से छ्मा प्रार्थी हूं! फ़िर भी चिन्तन के पाठ्को के लिये मन्थन का विषय है और ईमैल से प्रचारित करने की अपेछा रखता हूं!
बोधि सत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
आई पी एल का भूत अब सिर चढ कर बोलने लगा है ! कल संसद मे भी उसने दस्तक दे दी और संयुक्त रूप से विपछ ने आई पी एल प्रकरण मे सरकार के मंत्रियों की संलिप्तता के कारण जेपीसी (ज्वाइन्ट पार्लियामैन्ट क्मैटी) के गठन की मांग की, ताकि शासक दल के मत्रियो और उनके रिश्तेदारो की मनमानी पर से पर्दा उठ सके और दूध का दूध और पानी का पानी हो सके! श्री मती सुष्मा स्वराज ने तो नारा लगा दिया" दाल मे काला ज़रूर है, अभी और भी थरूर है"! अब चिन्ता का विषय है कि क्या काग्रेस इसके लिये राज़ी होगी और यदि हो गई तो फ़िर उसकी रिपोर्ट आने बाद उसमे पाये गये अभियुक्तों को दन्डित करने लायक मनोबल और इच्छाशक्ति भी रखती है ? या फ़िर सदैव की भांति आई पी एल की समाप्ति के बाद यह रिपोर्ट ढ्न्डे बस्ते मे चली जायेगी ! क्या वह व्यक्ति जिसने गत वर्ष ३२ लाख का इन्कमटैक्स भरा और अगले वर्ष ही ३११ करोड का इन्कम टैक्स एड्वान्स भरा संशय के दायरे से बाहर हो जायेगा?वे स्वय्म कह रहे है कि "मैने बी सी सी आई की ५ वर्ष मुफ़्त सेवा की वो मुझे जवाब देने के लिये ५ दिन का समय नही दे सकती !"साथ ही प्राएवेट प्लेन से बार बार डुबाई जाते हैं और उस प्लेन का खर्चा २लाख रुपये प्रति घन्टे की दर से १००० घन्टे का भुगतान आई पी एल ने किया!पैसे की ऐसी बर्बादी उस देश मे जायज़ है जहां २००४ मे गरीबी २७.५% से बढ्कर ३७.२ % यानी १४ वर्षो मे १०% अधिक हो गई और सम्पूर्ण विश्व की गरीबी का १/३ हिस्सा गरीब भारत मे बसते है !फ़िर भी स्वतन्त्रता के ६३ वर्षो के बाद भी देश के उस तबके के लिये देश के जनसेवक कितने जागरूक है ? सभी आंकडे विभिन्न समाचारो के आधार पर आश्रित है यदि इसमे कोई दोष हो तो मै व्यक्तिगत रूप से छ्मा प्रार्थी हूं! फ़िर भी चिन्तन के पाठ्को के लिये मन्थन का विषय है और ईमैल से प्रचारित करने की अपेछा रखता हूं!
बोधि सत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
गरीबी और धन का अपवय्य
गरीबी और धन का अपव्य्य
आई पी एल का भूत अब सिर चढ कर बोलने लगा है ! कल संसद मे भी उसने दस्तक दे दी और संयुक्त रूप से विपछ ने आई पी एल प्रकरण मे सरकार के मंत्रियों की संलिप्तता के कारण जेपीसी (ज्वाइन्ट पार्लियामैन्ट क्मैटी) के गठन की मांग की, ताकि शासक दल के मत्रियो और उनके रिश्तेदारो की मनमानी पर से पर्दा उठ सके और दूध का दूध और पानी का पानी हो सके! श्री मती सुष्मा स्वराज ने तो नारा लगा दिया" दाल मे काला ज़रूर है, अभी और भी थरूर है"! अब चिन्ता का विषय है कि क्या काग्रेस इसके लिये राज़ी होगी और यदि हो गई तो फ़िर उसकी रिपोर्ट आने बाद उसमे पाये गये अभियुक्तों को दन्डित करने लायक मनोबल और इच्छाशक्ति भी रखती है ? या फ़िर सदैव की भांति आई पी एल की समाप्ति के बाद यह रिपोर्ट ढ्न्डे बस्ते मे चली जायेगी ! क्या वह व्यक्ति जिसने गत वर्ष ३२ लाख का इन्कमटैक्स भरा और अगले वर्ष ही ३११ करोड का इन्कम टैक्स एड्वान्स भरा संशय के दायरे से बाहर हो जायेगा?वे स्वय्म कह रहे है कि "मैने बी सी सी आई की ५ वर्ष मुफ़्त सेवा की वो मुझे जवाब देने के लिये ५ दिन का समय नही दे सकती !"साथ ही प्राएवेट प्लेन से बार बार डुबाई जाते हैं और उस प्लेन का खर्चा २लाख रुपये प्रति घन्टे की दर से १००० घन्टे का भुगतान आई पी एल ने किया!पैसे की ऐसी बर्बादी उस देश मे जायज़ है जहां २००४ मे गरीबी २७.५% से बढ्कर ३७.२ % यानी १४ वर्षो मे १०% अधिक हो गई और सम्पूर्ण विश्व की गरीबी का १/३ हिस्सा गरीब भारत मे बसते है !फ़िर भी स्वतन्त्रता के ६३ वर्षो के बाद भी देश के उस तबके के लिये देश के जनसेवक कितने जागरूक है ? सभी आंकडे विभिन्न समाचारो के आधार पर आश्रित है यदि इसमे कोई दोष हो तो मै व्यक्तिगत रूप से छ्मा प्रार्थी हूं! फ़िर भी चिन्तन के पाठ्को के लिये मन्थन का विषय है और ईमैल से प्रचारित करने की अपेछा रखता हूं!
बोधि सत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
आई पी एल का भूत अब सिर चढ कर बोलने लगा है ! कल संसद मे भी उसने दस्तक दे दी और संयुक्त रूप से विपछ ने आई पी एल प्रकरण मे सरकार के मंत्रियों की संलिप्तता के कारण जेपीसी (ज्वाइन्ट पार्लियामैन्ट क्मैटी) के गठन की मांग की, ताकि शासक दल के मत्रियो और उनके रिश्तेदारो की मनमानी पर से पर्दा उठ सके और दूध का दूध और पानी का पानी हो सके! श्री मती सुष्मा स्वराज ने तो नारा लगा दिया" दाल मे काला ज़रूर है, अभी और भी थरूर है"! अब चिन्ता का विषय है कि क्या काग्रेस इसके लिये राज़ी होगी और यदि हो गई तो फ़िर उसकी रिपोर्ट आने बाद उसमे पाये गये अभियुक्तों को दन्डित करने लायक मनोबल और इच्छाशक्ति भी रखती है ? या फ़िर सदैव की भांति आई पी एल की समाप्ति के बाद यह रिपोर्ट ढ्न्डे बस्ते मे चली जायेगी ! क्या वह व्यक्ति जिसने गत वर्ष ३२ लाख का इन्कमटैक्स भरा और अगले वर्ष ही ३११ करोड का इन्कम टैक्स एड्वान्स भरा संशय के दायरे से बाहर हो जायेगा?वे स्वय्म कह रहे है कि "मैने बी सी सी आई की ५ वर्ष मुफ़्त सेवा की वो मुझे जवाब देने के लिये ५ दिन का समय नही दे सकती !"साथ ही प्राएवेट प्लेन से बार बार डुबाई जाते हैं और उस प्लेन का खर्चा २लाख रुपये प्रति घन्टे की दर से १००० घन्टे का भुगतान आई पी एल ने किया!पैसे की ऐसी बर्बादी उस देश मे जायज़ है जहां २००४ मे गरीबी २७.५% से बढ्कर ३७.२ % यानी १४ वर्षो मे १०% अधिक हो गई और सम्पूर्ण विश्व की गरीबी का १/३ हिस्सा गरीब भारत मे बसते है !फ़िर भी स्वतन्त्रता के ६३ वर्षो के बाद भी देश के उस तबके के लिये देश के जनसेवक कितने जागरूक है ? सभी आंकडे विभिन्न समाचारो के आधार पर आश्रित है यदि इसमे कोई दोष हो तो मै व्यक्तिगत रूप से छ्मा प्रार्थी हूं! फ़िर भी चिन्तन के पाठ्को के लिये मन्थन का विषय है और ईमैल से प्रचारित करने की अपेछा रखता हूं!
बोधि सत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
गुरुवार, 22 अप्रैल 2010
प्रथ्वी दिवस
प्रथ्वी दिवस
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प्रथ्वी का कर्ज़ चुकाने को,
माता का फ़र्ज़ निभाने को,
अपना शीश नवाते है!
नदिया,पर्वत,खेत खलिहानो से हमने जो पाया है उसका कर्ज़ चुकाने का समय आ गया है! इन सभी को चिरस्थाई रखने के लिये हमे केवल अपने आचार विचार मे कुछ सयम रख्नने की आवश्यकता है!
सर्व प्रथम भूगर्भीय- जल संरछण की ,-केवल उतने जल का प्रयोग करे ,जितनी आव्श्यक्ता हो !
पेड-पौधौ के छेत्र को बढाना होगा-कटान रोकना होगा ! क्रत्रिम खाद का प्रयोग समाप्त करना होगा!
पर्यावरण पदूषण रोकना होगा -अपने निज़ी वाहनो के स्थान पर सार्वजनिक वाहनो का प्रयोग करे!
आइये आज संकल्प लें कि घर से बाहर निकलने पर भी इन बातों को ध्यान मे अवश्य रखेंगे१ धन्य्वाद!
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प्रथ्वी का कर्ज़ चुकाने को,
माता का फ़र्ज़ निभाने को,
अपना शीश नवाते है!
नदिया,पर्वत,खेत खलिहानो से हमने जो पाया है उसका कर्ज़ चुकाने का समय आ गया है! इन सभी को चिरस्थाई रखने के लिये हमे केवल अपने आचार विचार मे कुछ सयम रख्नने की आवश्यकता है!
सर्व प्रथम भूगर्भीय- जल संरछण की ,-केवल उतने जल का प्रयोग करे ,जितनी आव्श्यक्ता हो !
पेड-पौधौ के छेत्र को बढाना होगा-कटान रोकना होगा ! क्रत्रिम खाद का प्रयोग समाप्त करना होगा!
पर्यावरण पदूषण रोकना होगा -अपने निज़ी वाहनो के स्थान पर सार्वजनिक वाहनो का प्रयोग करे!
आइये आज संकल्प लें कि घर से बाहर निकलने पर भी इन बातों को ध्यान मे अवश्य रखेंगे१ धन्य्वाद!
रविवार, 18 अप्रैल 2010
विश्वदाय दिवस

प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी विश्वदाय दिवस अर्थात वर्ल्ड हैरीटेज डे मनाया गया! अभी विश्व स्मारकों पर निशुल्क प्रवेश प्रदान किया गया अत भयंकर भीड़ उमड़ी ! परन्तु उस भीड़ में से क्या कभी इस दिवस को मनाने के पीछे छिपे उद्देश्य को जानने का प्रयास किया ?
विश्व के स्मारक हमारी धरोहर है और इनका संरक्षण क्यों आवश्यकीय है ?आज जब मनुष्य अपनी पिछली पीढी से समबन्ध नहीं रखती तो उनके भी पूर्वजों के बनवाए स्मारकों की परवाह क्या करेंगे ?माता-पिटा अपने ही जीवन काल में त्याज्य हो गए है तो उनके माता-पिता और दादा-दादी के सस्मरण कब तक सहेजेगे ? स्मारकों की दुर्दशा, उन पर लव त्रय्गल बनाना ,कोयले और चाक से अश्लील चित्र उकेरना ,अश्लील सम्वाद अंकित करना इसी का परिणाम है ! चितन का विषय यह है की आने वाली पीढी इतनी गैर ज़िम्मेदार क्यों होती जा रही है? क्या हमारे द्वारा उनमे डाले जा रहे सस्कार अपर्याप्त है या हम अच्छे सस्कार देने की योग्यता ही नहीं रखते क्योकि हमने भी अपने बुजुर्गों को वो सम्मान नहीं दिया जिसके वे हकदार थे ?
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुंज सिकंदरा आगरा 282007
सरकार की प्रतिबद्धता
सरकार की प्रतिबद्ध्ता
ललित मोदी और शशि थरूर के बीच का मुद्दा कि कौन दोषी अधिक है कौन कम? इससे कोई फ़र्क मीडिया को नही पड्ता, उन्हे केवल कुछ सनसनीखेज़ खबर बना कर जनता को अपने बुद्धू बक्से के सामने बिठाकर रख्नने से है,परन्तु ६०% गरीब भारतियों पर इस आइ पी एल का प्रभाव अवश्य पड्ना है! चिन्तनीय विषय यह है कि इस इतने बडे आयोजन से एक गरीब प्रजातन्त्र के सबसे बडे वर्ग को क्या लाभ मिल रहा है? जिसमे प्रत्येक आयोजन मे करोडो यूनिट बिजली खर्च हो रही है,जबकि किसानो को फ़सल पर भी ट्यूब वैल के लिये, उद्योगों को उत्पादन हेतु घंटो बिजली की कटौती का सामना करना पड रहा है! सरकार की मौन स्वीक्रति उसके एक ऐसे वर्ग के प्रति उसके प्रेम को प्रदर्शित करती है जो अभिजात्य वर्ग कहलाता है और उसके बिगडैल शह्ज़ादों को अपने पुरखों की नम्बर २ की कमाई को ठिकाने लगाने के लिये क्लब ,पब या आई पी एल की ज़रूरत होती है जहां जुए-सट्टे के माध्यम से रातों रात ५-१० गुना करने की आकांछा छिपी हुई है! यह सर्व विदित है पिछले ३ माह से इस कारोबार से सटोरियॊ ने अरबों रुपये कमा लिये और डुबई -करतार मे बैठे भाईयों के साथ उनके तार और मज़बूत हुए है! जब कोई आतंकवादी घटना होती है तो सरकार पडौसी देश से उसके तार होने की पुष्टि कर कडा विरोध पत्र भेज कर या जिन सगठनो ने उत्तरदायित्व अपने ऊपर लिया उनके प्रत्य्रर्पण की मांग करती है, जिन्हे स्वयं आई पी एल के माध्यम से पाल-पोस कर बडा किया है! अतः इस आयोजन की अनुमति देना ही सरकार की नियति पर प्रश्न्वाचक लगा देती है! दूसरी तरफ़ युवाओं से सर्वप्रिय खेल को ऐसे समय आयोजन की अनुमति देना ,जबकि युवा वर्ग वार्षिक एवं प्रतियोगी परीछाओं मे व्यस्त रहना चाह्ता है,क्या सरकार आने वाली पीढी के भविष्य के प्रति उत्तरदायी नही है?
सरकार योग्य नागरिको का अविर्भाव चाहती है या सटोरियों की जमात? यदि यह चिन्तन सार्थक है तो ई-मेल के माध्यम से सर्व प्रचारित कर इसे अभियान का रूप प्रदान करें! धन्यवाद!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७ मो:९४१२४४३०९३
ललित मोदी और शशि थरूर के बीच का मुद्दा कि कौन दोषी अधिक है कौन कम? इससे कोई फ़र्क मीडिया को नही पड्ता, उन्हे केवल कुछ सनसनीखेज़ खबर बना कर जनता को अपने बुद्धू बक्से के सामने बिठाकर रख्नने से है,परन्तु ६०% गरीब भारतियों पर इस आइ पी एल का प्रभाव अवश्य पड्ना है! चिन्तनीय विषय यह है कि इस इतने बडे आयोजन से एक गरीब प्रजातन्त्र के सबसे बडे वर्ग को क्या लाभ मिल रहा है? जिसमे प्रत्येक आयोजन मे करोडो यूनिट बिजली खर्च हो रही है,जबकि किसानो को फ़सल पर भी ट्यूब वैल के लिये, उद्योगों को उत्पादन हेतु घंटो बिजली की कटौती का सामना करना पड रहा है! सरकार की मौन स्वीक्रति उसके एक ऐसे वर्ग के प्रति उसके प्रेम को प्रदर्शित करती है जो अभिजात्य वर्ग कहलाता है और उसके बिगडैल शह्ज़ादों को अपने पुरखों की नम्बर २ की कमाई को ठिकाने लगाने के लिये क्लब ,पब या आई पी एल की ज़रूरत होती है जहां जुए-सट्टे के माध्यम से रातों रात ५-१० गुना करने की आकांछा छिपी हुई है! यह सर्व विदित है पिछले ३ माह से इस कारोबार से सटोरियॊ ने अरबों रुपये कमा लिये और डुबई -करतार मे बैठे भाईयों के साथ उनके तार और मज़बूत हुए है! जब कोई आतंकवादी घटना होती है तो सरकार पडौसी देश से उसके तार होने की पुष्टि कर कडा विरोध पत्र भेज कर या जिन सगठनो ने उत्तरदायित्व अपने ऊपर लिया उनके प्रत्य्रर्पण की मांग करती है, जिन्हे स्वयं आई पी एल के माध्यम से पाल-पोस कर बडा किया है! अतः इस आयोजन की अनुमति देना ही सरकार की नियति पर प्रश्न्वाचक लगा देती है! दूसरी तरफ़ युवाओं से सर्वप्रिय खेल को ऐसे समय आयोजन की अनुमति देना ,जबकि युवा वर्ग वार्षिक एवं प्रतियोगी परीछाओं मे व्यस्त रहना चाह्ता है,क्या सरकार आने वाली पीढी के भविष्य के प्रति उत्तरदायी नही है?
सरकार योग्य नागरिको का अविर्भाव चाहती है या सटोरियों की जमात? यदि यह चिन्तन सार्थक है तो ई-मेल के माध्यम से सर्व प्रचारित कर इसे अभियान का रूप प्रदान करें! धन्यवाद!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७ मो:९४१२४४३०९३
शनिवार, 17 अप्रैल 2010
सामाजिक परिवर्तन
सामाजिक परिवर्तन या सामाजिक पतन
------------------------------------बोधिसत्व कस्तूरिया
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा
सामाजिक परिवर्तन किसी भी समाज की गतिशीलता का द्योतक है! परन्तु यदि वो किसी अन्य समाज का अन्धा अनुकरण करे, तो निश्चित रूप से समाज धराशायी होने के कगार पर है! आज भारतीय समाज भी कुछ ऐसी विसंगतियों का शिकार हो रहा है! साथ ही दुर्भाग्य है कि देश की सर्वोच्च संस्था उस का अनुमोदन कर रही है! चर्चा और विवाद का विषय यह है कि क्या इस संस्था को अपने नियमित कार्य-कलापों (जिनका अम्बार लगा पडा है) को छोड इन विसंगतियों का भागीदार होने का हक हासिल है और यदि है, तो दिया किसने?
अभी हाल मे एक निर्णय मे सम -लैंगिकों को साथ रहने और विवाह की अनुमति देना तथा अन्य निर्णय मे लिव-इन-रिलेशनशिप(सह-जीवन यापन) को तर्क संगत ठहराना -कहां तक न्याय संगत है?आज समाज टीवी,सिनेमा और मोबाइल समाज मे किस कदर सामाजिक प्रदूषण फ़ैला रहे है, सर्व विदित है!
अतः हमारी सर्वोच्च संस्था का दायित्व भारतीय सांस्क्रतिक समप्दा को अक्छुण्य बना कर रखने का है न कि उस प्रदूषण को बढावा देने का? आज इलैक्ट्रानिक मीडिया निरंकुश है कोई चैनल पंजाबी संस्कति का अपमान करते हुए ब्रा-पैन्टी पहना कर ट्प्पे-गिद्दा दिखा रहा है तो कोई चैनल राजस्थान मे नारी शोषण के नाम पर बांझ स्त्री पर उसके देवर और ज्येष्ट से संमोग कराकर गर्भ धारण कराने को न्यायसंगत दिखा रहा है!
हांलाकि इस विषय पर महिला आयोग ने चैनल को नोटिस दिया है,परन्तु सैंसर बोर्ड सिनेमा से भी अधिक जन मानस तक पहुंचने वाले माध्यम पर अंकुश रखने मे बिलकुल असफ़ल रहा है! दूसरी तरफ़ सेंसर बोर्ड लेट्नाइट वयस्क फ़िल्म दिखाने को व्याकुल है१ मोबाइल व्यापार समबंध के बजाय प्रेम समब्न्धों को मल्टीप्लाई कर रहा है, ग्रह कलह को भी उच्च वरीयता प्रदान कर रहा है! ऐसे समय मे उक्त निर्णणयों का आना उस समाज की अन्धानुकरण है जहां विवाह मात्र एक सामाजिक अनुबन्ध(सोशल कांन्ट्रैक्ट) है,न कि सात जन्मो का बन्धन ! आज उस समाज मे तलाक की दर ५५% है जबकि हमारे देश मे महज़ २%,परन्तु लिव -इन रिलएशन के कारण महिलाओ के उत्पीडन के २५००० मुकदमे लम्बित पडे हैं! महिला आयोग का औचित्य इस निर्णय के बाद समाप्त हो जायेगा तथा भारतीय दण्ड विधान से बहु-विवाह को अपराध की श्रेणी से हटाना पडेगा,अप्राक्रतिक मैथुन वैध हो जायेगा !मेरे कहने का अर्थ् यह है कि सर्वोच्च संस्था को नये मानक स्थापित करने के स्थान पर मौज़ूद विधानो के संदर्भ मे ही व्याख्या करने का अधिकार प्राप्त है और यदि वह इसका उल्लंघन करती है तो जनता की अदालत मे जबाब देय है! यही प्रजातन्त्र की माग है कि हमारी सभ्यता एव संस्क्रति की उधेड-बुन नही की जाय!लिव-इन-रिलेशनशिप को ज़ायज़ ठहराने के बाद विवाह की सामाजिक मान्यता क्या रह जायेगी ? आज माता-पिता,रिश्ते-नातेदार कितने जतन और उत्साह से विवाह करते हैं,और इस बंधन को अपना कर्तव्य भी समझते हैं,जबकि पाश्चात्य समाज़ मे ऐसा नही है फ़िर हम उनका अनुकरण क्यो कर रहे?इसी प्रकार यदि सम्लैगिक रिश्तो को तरज़ीह दी जायेगी ,तो क्या यह प्रक्रति के साथ खिलवाड नही है? प्रक्रति या ईश्वर ने नर और मादा की उतपत्ति ,सभी जीवो को संतति -अर्थात् नई पीढी के उत्पादन हेतु किया गया है और कोई प्राणी इसका उल्ल्घन नही करता है !क्या मानव को विवेक और बुद्धि इसीलिये प्रदान की गई थी कि वो ईश्वर की सत्ता को चुनौती दे डाले और जो कार्य पशु नही करते वो भी कर सके ? समभवतः न्याय मूर्तिजन जो जैसा चल रहा है के आधारपर निर्णय दे रहे है! इस परिचर्चा पर आपके विचार सादर आमंत्रित हैइस परिचर्चा को अभियान बनाने मे आपका सह्योग अपेक्च्छित है! इसके लिये इस परिपत्र को अधिक से अधिक लोगों तक ई-मेल के माध्यम से भेजने का प्रयास करें! धन्यवाद!
------------------------------------बोधिसत्व कस्तूरिया
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा
सामाजिक परिवर्तन किसी भी समाज की गतिशीलता का द्योतक है! परन्तु यदि वो किसी अन्य समाज का अन्धा अनुकरण करे, तो निश्चित रूप से समाज धराशायी होने के कगार पर है! आज भारतीय समाज भी कुछ ऐसी विसंगतियों का शिकार हो रहा है! साथ ही दुर्भाग्य है कि देश की सर्वोच्च संस्था उस का अनुमोदन कर रही है! चर्चा और विवाद का विषय यह है कि क्या इस संस्था को अपने नियमित कार्य-कलापों (जिनका अम्बार लगा पडा है) को छोड इन विसंगतियों का भागीदार होने का हक हासिल है और यदि है, तो दिया किसने?
अभी हाल मे एक निर्णय मे सम -लैंगिकों को साथ रहने और विवाह की अनुमति देना तथा अन्य निर्णय मे लिव-इन-रिलेशनशिप(सह-जीवन यापन) को तर्क संगत ठहराना -कहां तक न्याय संगत है?आज समाज टीवी,सिनेमा और मोबाइल समाज मे किस कदर सामाजिक प्रदूषण फ़ैला रहे है, सर्व विदित है!
अतः हमारी सर्वोच्च संस्था का दायित्व भारतीय सांस्क्रतिक समप्दा को अक्छुण्य बना कर रखने का है न कि उस प्रदूषण को बढावा देने का? आज इलैक्ट्रानिक मीडिया निरंकुश है कोई चैनल पंजाबी संस्कति का अपमान करते हुए ब्रा-पैन्टी पहना कर ट्प्पे-गिद्दा दिखा रहा है तो कोई चैनल राजस्थान मे नारी शोषण के नाम पर बांझ स्त्री पर उसके देवर और ज्येष्ट से संमोग कराकर गर्भ धारण कराने को न्यायसंगत दिखा रहा है!
हांलाकि इस विषय पर महिला आयोग ने चैनल को नोटिस दिया है,परन्तु सैंसर बोर्ड सिनेमा से भी अधिक जन मानस तक पहुंचने वाले माध्यम पर अंकुश रखने मे बिलकुल असफ़ल रहा है! दूसरी तरफ़ सेंसर बोर्ड लेट्नाइट वयस्क फ़िल्म दिखाने को व्याकुल है१ मोबाइल व्यापार समबंध के बजाय प्रेम समब्न्धों को मल्टीप्लाई कर रहा है, ग्रह कलह को भी उच्च वरीयता प्रदान कर रहा है! ऐसे समय मे उक्त निर्णणयों का आना उस समाज की अन्धानुकरण है जहां विवाह मात्र एक सामाजिक अनुबन्ध(सोशल कांन्ट्रैक्ट) है,न कि सात जन्मो का बन्धन ! आज उस समाज मे तलाक की दर ५५% है जबकि हमारे देश मे महज़ २%,परन्तु लिव -इन रिलएशन के कारण महिलाओ के उत्पीडन के २५००० मुकदमे लम्बित पडे हैं! महिला आयोग का औचित्य इस निर्णय के बाद समाप्त हो जायेगा तथा भारतीय दण्ड विधान से बहु-विवाह को अपराध की श्रेणी से हटाना पडेगा,अप्राक्रतिक मैथुन वैध हो जायेगा !मेरे कहने का अर्थ् यह है कि सर्वोच्च संस्था को नये मानक स्थापित करने के स्थान पर मौज़ूद विधानो के संदर्भ मे ही व्याख्या करने का अधिकार प्राप्त है और यदि वह इसका उल्लंघन करती है तो जनता की अदालत मे जबाब देय है! यही प्रजातन्त्र की माग है कि हमारी सभ्यता एव संस्क्रति की उधेड-बुन नही की जाय!लिव-इन-रिलेशनशिप को ज़ायज़ ठहराने के बाद विवाह की सामाजिक मान्यता क्या रह जायेगी ? आज माता-पिता,रिश्ते-नातेदार कितने जतन और उत्साह से विवाह करते हैं,और इस बंधन को अपना कर्तव्य भी समझते हैं,जबकि पाश्चात्य समाज़ मे ऐसा नही है फ़िर हम उनका अनुकरण क्यो कर रहे?इसी प्रकार यदि सम्लैगिक रिश्तो को तरज़ीह दी जायेगी ,तो क्या यह प्रक्रति के साथ खिलवाड नही है? प्रक्रति या ईश्वर ने नर और मादा की उतपत्ति ,सभी जीवो को संतति -अर्थात् नई पीढी के उत्पादन हेतु किया गया है और कोई प्राणी इसका उल्ल्घन नही करता है !क्या मानव को विवेक और बुद्धि इसीलिये प्रदान की गई थी कि वो ईश्वर की सत्ता को चुनौती दे डाले और जो कार्य पशु नही करते वो भी कर सके ? समभवतः न्याय मूर्तिजन जो जैसा चल रहा है के आधारपर निर्णय दे रहे है! इस परिचर्चा पर आपके विचार सादर आमंत्रित हैइस परिचर्चा को अभियान बनाने मे आपका सह्योग अपेक्च्छित है! इसके लिये इस परिपत्र को अधिक से अधिक लोगों तक ई-मेल के माध्यम से भेजने का प्रयास करें! धन्यवाद!
शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010
आस्था
आस्था और धर्म में अंतर है पर धर्म आस्था पर आधारित है ! आस्था कभी एक छन में उत्पन्न हो जाती है और कभी अनेकों वर्षों तक साथ रहने पर भी नहीं होती है ! आस्था का पाठ मानव अपने संस्कारों से सीखता है ! आस्था वास्तव में विश्वास का प्रतिफल है ,या यूं कहे विश्वास की निरंतरता ही आस्था की जननी है ! बच्चे की यह आस्था कि मुझे भूख लगाने पर माँ भोजन देगी, माता द्वारा निरंतर भोजन देने का प्रतिफल है !भगवन में आस्था,गुरू में आस्था भी इसी प्रकार से उत्पन्न होती है !यदि किसी के परामर्श या दबाव में मनुष्य एकाध बार किसी गुरू के paas या मंदिर जाता है और उसकी कोई मनो कामना पूर्ण होती है तो विश्वास जागता है ,फिर उस विश्वास की निरंतरता उसमे आस्था को jagaatee है
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