शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014

स्वच्छ भारत

देश को २०१९ तक ’स्वच्छ भारत’बनाने के लिये हमे अपनी अगली पीढी को स्वावलम्बी बनाने की आवश्यकता है! आज नई पौध को हम इतना अधिक लाड-प्यार का खाद और पानी दे रहे है कि वह स्वार्थी और अकर्मण्य होती जा रही है! हम बेटा हो या बेटी उसे घर-परिवार,संस्कार की शिछा के बजाय,तथाकथित मार्डन बनने पर ज़ोर दे रहे है! घर मे बेटाहो या बेटी केवल पढो वही टेबल पर पानी ,चाय,दूध पहुँचा रहे है,वो सो कर उठ रहे है,तो उनका बिस्तर ठीक कर रहे है! इन छोटी-छोटी बातों को वो अपना अधिकार समझने लगे है और परावलम्बी होते जा रहे है! यही कारण आगे चलकर उन्के दुख के कारण बन जाते है,क्योकि आजकल लडका-लड्की एक समान के कारण लडकियाँ अपने घर मे जाकर भी उसी प्रकार के व्यवहार की अपेछा बूढे सास-ससुर से करती है,जो कि दाम्पत्य जीवन मे किट-किट् बढा देता है और परिणामतः तलाक की नौबत आ जाती है! अभी हाल मे एक दिन फोटो खिंचवा कर स्वच्छ भारत के सहभागी दार बन गये,लेकिन दूसरे दिन ही दीवाली पर लाखो रुपये के रात भर पटाखे चलाते रहे ,वातावरण मे पोल्यूशन ही नही सड्कों पर गन्द भी फ़ैलाते रहे किसी ने भी सुबह उठ्कर झाडू नही उठाई क्योकि यह काम उनके नही माँ-बाप या ज़मादार अन्कल के है ! क्या इस पीढी से आप स्वच्छ्ता की  अपेछा कर सकते है !एक बार आगरा नगर निगम के मेयर को हमने अपने छेत्र की समस्याओं के लिये आमत्रित किया !जब उन्से कहा कि यहाँ डलाव घर या कूडा दान नही है तो उन्होने बताया यदि लगवा भी दिया जाय तो लोग उस्के अन्दर नही फेकते है,मरे हुये कुत्ते,बिल्ली डाल देते है,जो सडाँध और बीमारी फ़ैलाते है ! फ़िर बताया "मै एक बार कनाडा गया वहँ सडक चलते कोई बच्चा टाफ़ी-चाकलेट खाता है तो उसका रैपर ज़ेब मे रखता है,नकि हम भारतीयो की तरह  मूँगफ़ली खाकर छिलके सडक पर डाल देते है, क्योकि सफ़ाई उनका कर्तव्य न घर मे था न समाज मे है!" घर मे झाडू लगाकर कूडा या तो सडक पर या फ़िर नालियों मे डाल देते है,जहाँ सफ़ाई करना सरकार का दायित्व है! घर मे शौचालय का जहाँ तक प्रश्न है , सरकार ने जिस दुर्बल समाज के लिये भवन या शौचालय दिये है,वे उसमे इस लिये नही जाते क्योकि सीवर टैंक भर जायेगा तो पैसे देकर साफ़ करवाना पडेगा ! मेरा विशवास है कि हमे अभी १०वर्ष इस मानसिकता को दूर करने मे लग जायेंगे या फ़िर इसके कठोर कानून बनाने की आवशयकता है ताकि सडक चलते गन्दगी न करें,घर का कूडा थैलों मे रखे न कि सडक या नालियों मे भर दे जिससे वो चोक होती है! नदियों पर भी यही बात लागू होती है जहाँ साल भर त्यौहारों के बाद कभी मूर्तियाँ विसर्ज़न के कारण कभी मनुष्य विसर्ज़न के कारण!  यहाँ तक कि जिस नदी को माता कहते है वही पर मल त्याग कर शौच क्रिया से निवॄत हो जाते है,जिसके दर्शन कैला माँ के मदिर पर हुये,प्रयागराज मे कुम्भ मेले मे हुये !आखिर मानसिकता बदलने कि लिये भी कानून की आव्श्यकता है क्योकि हम अपनी हठधर्मिता को अपनी आस्था और धर्म का चोला पहना देते है!जब कानून का ड्न्डा पडता है तो सब ठीक हो जाता हैलिकिन उस्के  अनुपालन के लिये इतनी बडी पुलिस व्यव्स्था कहाँ है?और लगा भी दी जाये तो अपनी ज़ेब भरने के लिये सामने ऐक्सीडैन्ठोता है,मार-पीट,गुन्डागर्दे हओती हओ तो वह मूक दर्शक सी निहारती रहती है और इन्त्ज़ार करती है कि थाने से फ़ोर्स आ जाये अथवा अधिकरियॊ के आदेश ,फ़िर तो वो भी भूल जाती है कि देश अब स्वतंत्र है देश के सभी नागरिक सम्मा्नीय है ,जानवर नही!
यछ प्रस्न इस समस्या के शीघ्रातिशीघ्र विकल्प का है तो वह यहे है कि आज से घर मे बच्चो को उनके कर्तव्यों  की शिछा दें क्योकि "नागरिकता की प्रथम पाठ्शाला घर है!" 

मंगलवार, 30 सितंबर 2014

"केम छो मिस्टर प्रेसीडैन्ट ?"

मोदी जी की अमरीका यात्रा वॄतान्त को टी०वी० चैनल पर जिसने देख लिया ,यदि भा०ज०पा० का समर्थक है तो निश्चित रूप से उनका दीवाना हो चुका है और गैर भा०ज०पा० का है तो पगला गया होगा कि आखिर एक आदमी को इतना समर्थन विदेशों मे कैसे मिल सकता है ? अब तो वो सभी भी चुप है जो कहते थे कि बनारस मे मोदी के लिये पैसे देकर भीड इक्ठ्ठी की गई थी, हाँ अब यह शिगूफ़ा छोड दिया है कि न्यू योर्क मे तो गुज़राती अधिक है इसीलिये पहले वहाँ मोदी जी गये,जब कि आज वही दीवानगी वाशिंग्टन मे  भी भारतीय लोगों मे मौज़ूद थी,जब वो भारतीय दूतावास के सामने महात्मा गाँधी की मूर्ति पर श्रद्धा सुमन चढाने गये थे ! अब गैर भा०ज०पा० वालों को इस सर्व मान्य सत्य को झुठलाने की कोई वजह नही है कि यह वो शख्सियत है जो अप्नी जगह खुद बनाता है वर्ना चाय बेचने वाला ओबामा के बाद सोशल साईट्स पर खोजा जाने वाला दुनिया का दूसरा राजनेता नही बन जाता! जिस व्यक्ति की इच्छाशक्ति इतनी दॄढ है कि वो दुनिया के सबने ताकतवर देश के राष्ट्र्पति को ९ साल बाद उसी के देश मे आने के लिये वीज़ा देने के लिये बाध्य करदे! इसीलिये कहते है कि
"खुद को कर बुलन्द इतना कि खुदा खुद तुझसे पूछे- बता तेरी रज़ा कया है?"खुदा ने पूछा मोदी तेरी रज़ा कया है? तो मोदी बोले कि"जिस आदमी ने उन्हे अपने देश मे आने से किसी के कहने पर आने से रोक दियाहै उस आदमी की आँखो मे आँखे डाल कर पूँछू "केम छो मिस्टर प्रेसीडैन्ट?"
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

गुरुवार, 17 जुलाई 2014

जुविनाइल जस्टिस ऐक्ट मे संशोधन

श्रीमती मेनका गाँधी ,महिला एवं बाल विकास मंत्री महोदया ने  बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के मामले मे नाबालिग अपराधी को भी बालिग घोषित करने की जुविनाइल जस्टिस ऐक्ट मे संशोधन की संस्तुति की है !क्या आप जानते है कि इस सोच और संस्तुति के पीछे मूलभूत कया कारण है?नैशनल क्राइम व्यूरो के नवीन्तम आँकडों के अनुसार केवल राजधानी छेत्र मे ही नाबालिगों के द्वारा रेप की घट्नाओं मे अप्र्त्याशित रूप से १५८% की वॄधि इस वर्ष हुई है !वर्ष २०१२  मे दिल्ली मे केवल ६३ मामले प्रकाश मे आये थे,जबकि वर्ष २०१३ मे १६३ एग०आई० आर० दर्ज़ हुई है! जब कि अन्य अपराधों मे ३०% की ही वॄद्धि हुई ! चिन्तन का विषय यह है कि हम आने वाली अगली पीढी को किस प्रकार के संस्कार और संसकॄति सौंप कर जा रहे है? यह पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण का ही नतीज़ा है कि भारतीय वेष-भूषा को त्याग कर लड्के -लडकियाँ फ़िल्म और टी०वी० से प्रेरणा लेकर धोती-साडी , सलवार -कमीज़ पहन कर ’बहन्जी’ कहलाने के स्थान पर जीन्स टाप और बिकनी पहन कर मैडम कहलाने मे फ़ख्र महसूस करती है! यह परिवर्तन हमने पिछले एक दशक मे ही देखा है कि रिकशे-आटो वाले अब किसी को ’बहिन जी, माता जी’ के सम्बोधन के स्थान पर ’ मैडम’का प्रयोग करने लगे है! अर्थात उन्की भी सोच मे कही पच्छिम का प्रभाव परिलछित होने लगा है कि नारी केवल मेरे घर की हई माँ,बहन या बेटी है बाकी सारे शहर मे घूम रही नारी उप्भोग की वस्तु भोग्या है ! यही लोग सिग्रेट शराब को फ़ैशन ही नही अभिजात्य वर्ग का प्रारूप समझते है,जिसका परिणाम है कि जन्म दिन शादी विवाह ही नही ,गणेश या देवी विसर्जन भी इस उप्भोग के बिना अधूरा माना जाने लगा है!रही कसर मोबाईल मे ब्लू फ़िल्मो को डाउन लोड कर देखते-दिखाते है, जिस पर भारत वर्ष मे कोई पाबन्दी अब तक भारत सरकार नही लगा सकी ! देश के कर्ण-धार संसद मे बैठ कर देखते है फ़िर जनता -जनार्दन का तो अधिकार बनता ही है !यदि कोई मंत्री (गोवा) के कह देते है कि कम कपडे पहन कर पब मे जाना हमारी संस्कॄति नही है तो ब्बाल खडा हो जाता है! माननीय ममता शर्मा जी अधय्छा महिला विकास आयोग  ने महिलाओ के कपडो को सही तरीके से पहनने का ब्यान दिया तो सो काल्ड मार्डन महिलायें  कहने लगी कि यह स्वतंत्र भारत वर्ष है न कि तालिबान ! हमारी स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन करने की साजिश रची जा रही है! अलबत्ता सिगरेट या शराब का उपभोग फ़िल्मो मे दिखाई जाता है तो कैपशन चला दिया जाता है कि" सिगरेट -शराब हानिकारक है यह जान लेवा भी हो सकता है!" गाली-गलोज को म्यूट आपशन मे डाल कर सरकार के उत्तरदायित्व की इतिश्री हो जाती है, फ़िर चाहे "बीडी जलैले,जिगर मे  बडी आग है"पास करवा  लीजिये या फ़िर’मै चिकन तन्दूरी",बैड्रूम सीन,स्विम्सूट मे हीरो के साथ गल्बहियाँ डाल लीजिये !अर्थात सरकार भी कोई ठोस कदम उठाना नही चाहती है,केवल दिखावा करती है !आज विड्म्बना यह  है कि माँ-बाप न केवल साथ बैठ कर बच्चो के साथ देखते है,बल्कि इन सैक्सी गानो पर बच्चो को डान्स कराती है! वूगी-वूगी शो मे आयोजको ने माँ से कहा कि ’बच्चो को हाव-भाव दिखाना पडता है अतः इस प्रकार के गाने ४-५ साल के ब्च्चो को नही करवायें"पर अपनी टी०आर०पी० बरकरार रखने के लिये प्रसारित भी कर दिया ! प्रश्न यही है कि उत्तर दायित्व कौन निभाना चाह रहा है?टी०वी० पर बीडी सिगरेट के विघ्यापनो पर तो रोक है पर सनी लियोनी चाकलेट फ़्लेवर का मैन्फ़ोर्स कम्पनी का कन्डोम  बेच सकती है! आज सभ्यता और संस्कृति मे उप्भोक्तावाद के नाम पर मीठा ज़हर घोला जा रहा है ,जो हमारी आने वाली पीढी को यह शिछा दे रही है " बद अच्छा बदनाम बुरा "! मुँह पर कपडा लपेटो किसी भी बाय्फ़ैन्ड के साथ ,जो मोबाईल की पेमेन्ट करता हो अच्छे रेस्ट्राँ मे लन्च-डिनर करा सके बेशक वो उसके बदले आपका उप्भोग कर ले ! फ़िर कन्डोम से लेकर अन वान्टेड ७२ की गोलियाँ खुले आम बिक रही है! सम्भोग का आनन्द लो और ७२ घन्टे मे गोली खा कर मुक्ति पाओ ना मिले तो रेप और बलात्कार का मुकदमा पंजीकृत करा दो ! फ़िर  नैशनल कमीशन फ़ार चाइल्ड राइट्स तो
जुविनाइल जस्टिस ऐक्ट मे संशोधन का विरोध करने उतर ही आया है!
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट,२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

बुधवार, 21 मई 2014

मान्द्ण्ड

माननीय नरेन्द्र मोदी जी तो संविधान के मन्दिर को प्रणाम कर नये मान द्ण्ड स्थापित करने चाहते है दूसरी तरफ़ अरविन्द केज़री्वाल क्रिमिनल प्रोसीज़र कोड का उल्लघन कर भारतीयों को अनीति और उद्ण्डता का पढा रहे है ! अब वक्त आ गया है कि पुनः नई सोच से नया दायित्व प्रारम्भ किया जाय कि हर भारतीय को यही सोचना चाहिये कि उसकी कार्य-शाला उसका मन्दिर है उसे उसी भाव और समर्पण से कर्तव्यनिष्टा का पालन करना चाहिये जैसे वह मन्दिर जाता है!  यदि सभी लोग जिस कानून को मानना चाहे माने और जिसे चाहे न माने तो फ़िर समाज का पतन अवशम्भावी है! अतः समय आ गया है कि जिस श्रधा और भक्ति भाव से नमो-नमो किया है उसी भाव से उनकी राह का अनुसरण करिये देश और समाज का उज्ज्वल भविष्य आपका और आने वाली पीढी का इन्त्ज़ार कर रहा है ! हमे अपनी संस्कॄति और संविधान पर गर्व करना चाहिये ! नये मान्द्ण्ड नरेन्द्र मोदी जी की तरह स्थापित कीजिये न कि अरविन्द केज़रीवाल की तरह ! धन्ववाद !
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

शुक्रवार, 16 मई 2014

चुनौती

इस बार के चुनाव मे भा०ज०पा० को सभी धर्म निरपेछ पार्टियों के एक सूत्रीय नारे ’ मोदी हत्यारा है देश गर्त मे चला जायेगा ’ और राहुल गाँधी के जम्मू मे दिये गये ब्यान कि देश मे २२००० नर संहार होगा" के बावज़ूद प्रचण्ड बहुमत से भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देना इस बात को सिद्ध करता है कि अब वो दिन लद गये जब धर्म निर्पेछ का ढोल पीट कर कोई वंश या दल शासन करता रहे ! इस चुनाव मे उन सभी दलों ने मुँह की खाई जो अल्प संख्य्कों का हिमायती बन कर धर्म के नाम पर समाज का विग्रह कर रहे थे ,चाहे वो मुल्ला मुलायम हो या नेहरू-गाँधी परिवार ! अब वंश्वाद की धपली के जगह विकास, सुशाअसन के लिये भारत के सभी धर्म और जातियाँ संघर्ष के लिये तत्त्पर है! हर्ष का विष्य है कि मुलायम ,बहिन मायावती, काँग्रेस तथा जनतादल यूनाइटेड सभी को मुस्लिम समुदाय ने अपने मन माफ़िक वोट दिये ! न मुल्लाजी के कहने पर न शाही इमाम के कहने पर,अर्थात देश के विकास के नाम पोअर जिस दल को ६७ वर्षों से अछूत बनाकर रख दिया गया था वही वास्तविक रूप से धर्म निर्पेछ स्वीकार किया गया ! सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग बधाई के पात्र है कि उन्होने संविधान की आत्मा को जीवित रखने के लिये एक राष्ट्र्वाद की भावना का परिचय उसी प्रकार से दिया जिस प्रकार से युद्ध के समय करते है ! हाँ अब भा०ज०पा० को कम्ज़ोर करने के लिये यह दल धार्मिक उन्माद भड्काने का कार्य ना कर सकें इसकी चुनौती से निपटने के लिये प्रशासन को सख्त् कदम उठाने के तैय्यार रहना पडेगा !
बोधि्सत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुँज सिकन्दरा आगरा २८२००७

बुधवार, 7 मई 2014

सरकार के लिये नई चुनौती

मेरे विचार से  नई सरकार के लिये नई चुनौती मँहगाई से दो-दो हाथ करने की होगी ! इस सन्दर्भ मे अमित शाह और  नितिन गड्करी ने २५% तक मँहगाई कम करने का आश्वासन भी दे डाला है ,जो कि बहुत कठिन कार्य प्रतीत होता है ,लेकिन असम्भव कतई नही है ! हाँ कुछेक कठोर कदम उठाने के लिये सबसे पहले पहले पैट्रोल/डीज़ल के दामो को नीचे लाने के लिये सार्थक कदम उठाने होंगे, क्योंकि यदि इन वस्तुओं के दाम घटते है, तो माल-भाडा सस्ता होने की पहल शुरू होती है! इस्के लिये सरकार को बेशक टैक्स मे कमी करने का प्रयास करना पडेगा ! यध्यपि  राज्य सरकारें इस कदम के लिये आना-कानी करेगी,परन्तु इसका दूरगामी फ़ायदा उन्को भी पँहुचेगा ! दूसरे कोयला उत्पादन के लिये भी शीघ्र निर्णय लैना होगा और आयात बन्द करना होगा ,क्यौकि बिजली के उत्पादन को बढाने के लिये भी सस्ती दरों पर कोयला चाहिये और यदि बिजली का उत्पादन बढता है तो निसन्देह औध्योगिक उत्पादन जो विगत वर्षो मे घट कर ४% तक रह गया है बढ जायेगा ,जिससे रोज्गार के नये अवसर पैदा होगे और बन्द पडी सूत मिल ,चीनी मिल आदि का जो नैट्वर्क ठप्प हो गया है ,मज़दूर भुख्मरी और आत्म हत्या की कगार पर पँहुच गये है,उन्हे जीवन के प्रति पुनः आस्था जागॄत होगी ! तीसरे अब समय आ गया है जबकि भारत जैसे कॄषि प्रधान देश के लिये साइन्टिफ़िक (कम्प्यूटरीकॄत) खेती की सोच बढाई जाये ! कम्यूटर ग्राम सभाओं पर लगाने या नव युवको को मुफ़्त लैप्टाप बाँटने की बजाय उस  धनराशि को विधिवत तरीके से समय से पानी की उप्लब्धता,सूखे से निबटने का संकल्प,बाढ की बिभीषिका से निपटने के लिये साइंस की उप्योगिता बढाने के लिये श्वेत-पत्र जारी कर उस पर दॄढतापूर्वक लागू करने का प्रयास भी करना होगा ! अमेरिका मे कृषि की जोत-बही सरकार के कम्प्यूटरों मे उपल्ब्ध है ,जो किस खेत मे कब पानी की आवश्यक्ता है?,कब खाद की ?,कब निराई की ?, कब फ़सल कटने योग्य हो गई है आदि का निर्देश देने की छमता रखती है और तदनुसार कार्यान्वित भी की जाती है! यही प्रणाली शीघ्रातिशीघ्र अपनानी होगी ! यदि राजनैतिक दलों की चुनाव बाद भी तुष्टीकरण की राजनीति करने की आदत मे परिवर्तन नही होगा तो २०२० वीज़न भी एक सपना रह जायेगा ! वोट बैंक की राज्नीति से ऊपर उठकर सर्व धर्म सम्भाव से पछ-विपछ अध्य्यन कर एक सामाजिक समवर्धन का संकल्प लेकर काम शुरू करे और एक -दूसरे को नीचा दिखाने का नाटक बन्द कर देश को ऊपर उठाने के लिये कॄत संकल्प हों तो निश्चित रूप से मँहगाई तो कम होगी ही, आर्थिक निर्भरता बढेगी , चीन, अमेरिका से आयात पर केवल प्रतिब्न्ध  ही नही लगेगा वरन निर्यात के लिये भी नये-नये दरवाज़े खुलेगे!

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुँज्सिकन्दरा आगरा २८२००७

समाज के विग्रह की राजनीति

सभी राजनैतिक दल यही कहते है कि सरकार चलाने के लिये  गठबन्धन मे कोई अस्प्र्श्य या अछूत नही है ,परन्तु जिस प्रकार से  सभी राजनैतिक दलों ने एक साथ श्री नरेन्द्र मोदी जी को अस्प्रश्य घोषित कर दिया है ,उससे प्रतीत होता है कि जैसे गोधरा काण्ड मे वे स्व्य़ं तलवार लेकर नरसंहार करने पँहुचे थे ! यदि वे इतने उत्तरदायी है तो उसके लिये न्यायालय द्ण्ड देगा साथ ही क्या उन्के अतिरिक्त किसी के शासन काल मे कोई दंगे नही हुये ? ,मुम्बई के दँगे के समय कौन मुख्य्मंत्री था ?, उडीसा के दंगो के समय कौन  मुख्य मंत्री था ?बंगाल के दंगो के समय कौन मुख्य मंत्री था ? किसी को नाम भी याद नही तो फ़िर उनके साथ ही इस प्रकार का सौतेला व्यवहार क्यों ? शायद इसके पीछे सभी राजनैतिक दलों को वोट बैंक मे सेंध लग जाने का खतरा दिखाई पडता है या फ़िर सभी राजनैतिक दलों को मोदीजी का आर०आर० एस० का प्रचारक होने का  इतिहास  डराता है !हिन्दुत्व की  जो परिभाषा आर०आर०एस० ने दी है उसे संकीर्ण मानसिकता की पार्टियों ने अपने लाभ के लिये प्रचारित नही होने दिया, बल्कि उसे धर्म का रंग देकर अल्प संखय्कों का शोषण किया है  ! किसी भी राज्नैतिक दल चाहे काँग्रेस हो , स०पा०,या ब०स०पा० किसी ने भी उनके हित के लिये कार्य किये होते,तो जो पिछडा पन  इस तबके के अन्दर मौज़ूद है ६७ साल की स्वतंत्रता के बाद नही होता ! शिछा, समाजिक पतन, छेत्रीय संकीर्णता उन्के जन-मानस मे इस प्रकार भर दी कि वे आर्थिक रूप से सरकार की तरफ़ आरछण के लिये कातर निगाहो से देखने के लिये बाध्य हो जायें !अब यह भी सोचने का समय  आ गया है कि कया काँग्रेस या समाज् वादी पार्टी उनके आरछाण की हिमायत कर उनका भला करने की नीयत रखती है- शायद नही ! यदि आरछण करने से किसी वर्ग का भला होता तो ७० वर्ष मे अनुसूचित जाति,अनुसूचित जन-जाति भी आज अन्य वर्ग की बराबरी से नौकरी मे होते और सरकार को बैकलाग कोटे की भरती कर नित नये प्रयास नही करने होते ! आरछण केवल एक निश्छित समय तक तो उपयोगी हो सकता था ,परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि अब वही उनकी नियति बन कर रह गया है ! किसी भी सभ्य समाज मे अछूत या अस्य्प्रश्यता कोई मान दण्ड् नही होता बल्कि योग्यता ही आधार होती है अन्यथा वह समाज विश्व के अन्य समाज से पिछड जाता है ! आज भारत अन्य देशों से पिछडा होने का कारण इसका समाजिक विभाजन है , जिसे सभी राजनैतिक दल बरकरार रख कर अपनी वोट बैंक की राजनैतिक रोटिय़ाँ सैंकते रहे ! यदि एक चाय वाला जो कि दलित समाज से आता है अपनी लगन और मेहनत से ऐसी छवि तैय्यार करता है कि आर०आर०एस० जैसा संगठन उसको प्रधान-मंत्री पद पर सुशोभित करना चाहता है ,तो क्या यह समाज के विग्रह की राजनीति है या फ़िर प्रगतिशील समाज की परिकल्पना?

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुँज सिकन्दरा आगरा  २८२००७ 

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

भारत की गौरव गाथा

श्री मती सोनिया जी ने संसद के चुनाव हेतु अपना नामांकन दिनाक २ अप्रैल अपरान्ह १-१५ पर राय बरेली से दाखिल किया! उन्होने अपनी कुल समपत्ति ९.२८ करोड घोषित की है,जिसमे २.८१ करोड चल समपत्ति तथा ६.४७ करोड की अचल सम्पत्ति (पैत्रक इटली मे) २००९ मे उनके द्वारा घोषित समपत्ति मात्र १.३७ करोड थी ! अर्थात ५ वर्षों मे बढकर सात गुना हो गई ! क्या काँग्रेस पार्टी अपने हर प्रचार मे "हर हाथ शक्ति हर हाथ तरक्की"का नारा जिस तब्के को दिखा कर कर रही है उस्की भी आमदनी भी ५वर्षों मे सात गुना कर चुकी है ! यदि नही तो उसे पुनः सता मे लाने के लिये वह वोट क्यों दे? संसैक्स के बढने से फ़ाय्दा कार्पोरेट सैक्टर के दिग्गज -टाटा,बिरला अम्बानी का होता है ! घरेलू सकल उत्पाद बढता है तो देश के २५ अरब पति घरानो का परन्तु जब औसत निकाला जाता है तो १.२५ अरब भारत वासियों से भाग देकर औसत भारतीय की आमदनी बढा दी जाती है ! कया यह गरीब -भोली-भाली जनता के साथ विश्वासघात नही है कि जिस धन पर उसका अधिकार भी नही है उसका उसे भागीदार बनाया जाता है?इस यछ प्रश्न का जवाब ना तो वित्त मंत्रालय के पास है ना अर्थशास्त्री मन्मोहन सिंह् जी और ना पी०चिदमबरम् जी मान्नीय वित्त्मंत्री जी के पास ! इसका कारण यह है कि यह भारत की गौरव गाथा दिल्ली के एयर्कन्डीश्न्ड दफ़्तरॊ मे बैठ कर बनाते है न कि किसान या दिहाडी मज़्दूर के साथ जो दिन भर पसीन बहाने के बाद बमुश्किल १५०-२०० रु० प्रतिदिन कमाता है!
बोधिसत्व कस्तूरिया २९२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

मंगलवार, 4 मार्च 2014

औसत आमदनी



सहारा के मालिक सुब्रत राय ने ३६ साल पहले १५०० रु० से कारोबार शुरू किया और धोखा धडी कर १५००००० करोड की सम्पदा अर्जित की आसाराम बापू, राम देव बाबा,सत्य साई बाबा,मुकेश ,अनिल अम्बानी ने करोडों की सम्पत्ति अर्ज़ित कर ली पर ३०-३५ साल बाद भी एक किसान ,एक ईमान्दार बाबू क्या इतना कर सकते है?फ़िर सरकार इन नासूरों को क्यों पनपने देती है? क्या आप जानते कि जब इन्की काली क्माई, गरीब की सच्ची क्माई जोड कर सरकार एक भारतीय की औसत कमाई दिखाती है तो उसका असर उसकी कार्य कुशलता प्रदर्शित करता है !जब कि इसका दूसरा पछ सरकार की प्रशासनिक छमता पर प्रश्न चिन्ह लगा देता है !चिन्तन का विष्य यह है कि औसत आमदनी निकालने का यह फ़ार्मूला कितना बेमानी और गलत है!देश के १२७ अरब पति हमारे इस भ्रम को पालते है कि हम सम्रद्ध हो चुके है !
बोधिसत्व कस्तूरिया २९२ नीरव निकुज सिकन्दरा आगरा २८२००७

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

दिल्ली अभी दूर है!

तीसरे मोर्चे की नई परिकल्पना ने मुन्गेरी लाल (मुलायम सिह) के सपनो को ग्रहण लगा दिया है! कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रकाश करात जो कुछ दिन पहले तक मुलायम सिह जी को भावी प्रधान मंत्री की संभावनाओ के साथ तीसरे मोर्चे का नेतॄत्व सौपने को राजी थे ,अचानक तमिल नाडु के मुख्य मंत्री माननीया जय ललिता जी की गोद मे जा बैठे,और वाम मोर्चे की कमान सौपते हुये, गठ्बन्धन कर लिया कि प्रधान मंत्री पद की दावे दारी उनकी रहेगी! "अम्मा"की पार्टी भे यह कह रही है कि जब देव गौडा और पी०वी०नरसिम्हा राव दछिण से प्रधान मंत्री बन सकते है तो सबसे बडे दछिण के प्रान्त की मुख्य मंत्री देश की प्रधान मंत्री क्यो नही बन सकती? एक और समीकरण भी माननीय मुलायम सिह जी की आकाछाओं पर पानी फ़ेरता दिख रहा है!यह कि ब०स०पा० और तॄण्मूल काँग्रेस् भी अडंगा डालेंगी ! स०पा० और ब०स०पा० की दुश्मनी जग जाहिर हो चुकी है और राष्ट्र्पति के चुनाव मे ममता जी को जिस प्रकार मुलायम ने धोका दिया, अभी वो भी उसे भुला नही पाई
हैं,दूसरे जिस गठ्बन्धन (वाम मोर्चे) के विरोध से वो स्व्यं सत्ता मे आई है ,उससे कन्धा मिलाकर कैसे चलेंगी? इधर यह भे सत्य है कि इन पार्टीयों के असतित्व को भी राष्ट्रीय-राजनैतिक परिपेछ्य मे नकारा नही जा सकता है ! चिन्तन का विषय यह भी है कि यदि कम्यूनिस्ट पार्टी के विरोध के फ़लस्वरूप यदि ममता और मुलायम की जुगल्बन्दी हो भी जाये,तो भी "दिल्ली अभी दूर है!"तात्पर्य यह है कि बैचरिक मतभेद के वावज़ूद गठबन्धन की राजनीतिके बिना कोई पार्टी उप्लब्ध बहुमत प्राप्त नही कर अकती है! छेत्रीय-छत्रपों के इरादे कम और महत्वाकाछायें अधिक होने के कारण वे एक दूसरे की टाँग खीचते रह जायेंगे और राष्ट्रीय पार्टी चाहे काँग्रेस या भारतीय जनता पार्टी ही कुछ छत्रपों को पाल पोस कर सत्ता हथिया लेंगें !
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
मो:९४१२४४३०९३