बुधवार, 7 मई 2014

समाज के विग्रह की राजनीति

सभी राजनैतिक दल यही कहते है कि सरकार चलाने के लिये  गठबन्धन मे कोई अस्प्र्श्य या अछूत नही है ,परन्तु जिस प्रकार से  सभी राजनैतिक दलों ने एक साथ श्री नरेन्द्र मोदी जी को अस्प्रश्य घोषित कर दिया है ,उससे प्रतीत होता है कि जैसे गोधरा काण्ड मे वे स्व्य़ं तलवार लेकर नरसंहार करने पँहुचे थे ! यदि वे इतने उत्तरदायी है तो उसके लिये न्यायालय द्ण्ड देगा साथ ही क्या उन्के अतिरिक्त किसी के शासन काल मे कोई दंगे नही हुये ? ,मुम्बई के दँगे के समय कौन मुख्य्मंत्री था ?, उडीसा के दंगो के समय कौन  मुख्य मंत्री था ?बंगाल के दंगो के समय कौन मुख्य मंत्री था ? किसी को नाम भी याद नही तो फ़िर उनके साथ ही इस प्रकार का सौतेला व्यवहार क्यों ? शायद इसके पीछे सभी राजनैतिक दलों को वोट बैंक मे सेंध लग जाने का खतरा दिखाई पडता है या फ़िर सभी राजनैतिक दलों को मोदीजी का आर०आर० एस० का प्रचारक होने का  इतिहास  डराता है !हिन्दुत्व की  जो परिभाषा आर०आर०एस० ने दी है उसे संकीर्ण मानसिकता की पार्टियों ने अपने लाभ के लिये प्रचारित नही होने दिया, बल्कि उसे धर्म का रंग देकर अल्प संखय्कों का शोषण किया है  ! किसी भी राज्नैतिक दल चाहे काँग्रेस हो , स०पा०,या ब०स०पा० किसी ने भी उनके हित के लिये कार्य किये होते,तो जो पिछडा पन  इस तबके के अन्दर मौज़ूद है ६७ साल की स्वतंत्रता के बाद नही होता ! शिछा, समाजिक पतन, छेत्रीय संकीर्णता उन्के जन-मानस मे इस प्रकार भर दी कि वे आर्थिक रूप से सरकार की तरफ़ आरछण के लिये कातर निगाहो से देखने के लिये बाध्य हो जायें !अब यह भी सोचने का समय  आ गया है कि कया काँग्रेस या समाज् वादी पार्टी उनके आरछाण की हिमायत कर उनका भला करने की नीयत रखती है- शायद नही ! यदि आरछण करने से किसी वर्ग का भला होता तो ७० वर्ष मे अनुसूचित जाति,अनुसूचित जन-जाति भी आज अन्य वर्ग की बराबरी से नौकरी मे होते और सरकार को बैकलाग कोटे की भरती कर नित नये प्रयास नही करने होते ! आरछण केवल एक निश्छित समय तक तो उपयोगी हो सकता था ,परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि अब वही उनकी नियति बन कर रह गया है ! किसी भी सभ्य समाज मे अछूत या अस्य्प्रश्यता कोई मान दण्ड् नही होता बल्कि योग्यता ही आधार होती है अन्यथा वह समाज विश्व के अन्य समाज से पिछड जाता है ! आज भारत अन्य देशों से पिछडा होने का कारण इसका समाजिक विभाजन है , जिसे सभी राजनैतिक दल बरकरार रख कर अपनी वोट बैंक की राजनैतिक रोटिय़ाँ सैंकते रहे ! यदि एक चाय वाला जो कि दलित समाज से आता है अपनी लगन और मेहनत से ऐसी छवि तैय्यार करता है कि आर०आर०एस० जैसा संगठन उसको प्रधान-मंत्री पद पर सुशोभित करना चाहता है ,तो क्या यह समाज के विग्रह की राजनीति है या फ़िर प्रगतिशील समाज की परिकल्पना?

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुँज सिकन्दरा आगरा  २८२००७ 

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