शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014

स्वच्छ भारत

देश को २०१९ तक ’स्वच्छ भारत’बनाने के लिये हमे अपनी अगली पीढी को स्वावलम्बी बनाने की आवश्यकता है! आज नई पौध को हम इतना अधिक लाड-प्यार का खाद और पानी दे रहे है कि वह स्वार्थी और अकर्मण्य होती जा रही है! हम बेटा हो या बेटी उसे घर-परिवार,संस्कार की शिछा के बजाय,तथाकथित मार्डन बनने पर ज़ोर दे रहे है! घर मे बेटाहो या बेटी केवल पढो वही टेबल पर पानी ,चाय,दूध पहुँचा रहे है,वो सो कर उठ रहे है,तो उनका बिस्तर ठीक कर रहे है! इन छोटी-छोटी बातों को वो अपना अधिकार समझने लगे है और परावलम्बी होते जा रहे है! यही कारण आगे चलकर उन्के दुख के कारण बन जाते है,क्योकि आजकल लडका-लड्की एक समान के कारण लडकियाँ अपने घर मे जाकर भी उसी प्रकार के व्यवहार की अपेछा बूढे सास-ससुर से करती है,जो कि दाम्पत्य जीवन मे किट-किट् बढा देता है और परिणामतः तलाक की नौबत आ जाती है! अभी हाल मे एक दिन फोटो खिंचवा कर स्वच्छ भारत के सहभागी दार बन गये,लेकिन दूसरे दिन ही दीवाली पर लाखो रुपये के रात भर पटाखे चलाते रहे ,वातावरण मे पोल्यूशन ही नही सड्कों पर गन्द भी फ़ैलाते रहे किसी ने भी सुबह उठ्कर झाडू नही उठाई क्योकि यह काम उनके नही माँ-बाप या ज़मादार अन्कल के है ! क्या इस पीढी से आप स्वच्छ्ता की  अपेछा कर सकते है !एक बार आगरा नगर निगम के मेयर को हमने अपने छेत्र की समस्याओं के लिये आमत्रित किया !जब उन्से कहा कि यहाँ डलाव घर या कूडा दान नही है तो उन्होने बताया यदि लगवा भी दिया जाय तो लोग उस्के अन्दर नही फेकते है,मरे हुये कुत्ते,बिल्ली डाल देते है,जो सडाँध और बीमारी फ़ैलाते है ! फ़िर बताया "मै एक बार कनाडा गया वहँ सडक चलते कोई बच्चा टाफ़ी-चाकलेट खाता है तो उसका रैपर ज़ेब मे रखता है,नकि हम भारतीयो की तरह  मूँगफ़ली खाकर छिलके सडक पर डाल देते है, क्योकि सफ़ाई उनका कर्तव्य न घर मे था न समाज मे है!" घर मे झाडू लगाकर कूडा या तो सडक पर या फ़िर नालियों मे डाल देते है,जहाँ सफ़ाई करना सरकार का दायित्व है! घर मे शौचालय का जहाँ तक प्रश्न है , सरकार ने जिस दुर्बल समाज के लिये भवन या शौचालय दिये है,वे उसमे इस लिये नही जाते क्योकि सीवर टैंक भर जायेगा तो पैसे देकर साफ़ करवाना पडेगा ! मेरा विशवास है कि हमे अभी १०वर्ष इस मानसिकता को दूर करने मे लग जायेंगे या फ़िर इसके कठोर कानून बनाने की आवशयकता है ताकि सडक चलते गन्दगी न करें,घर का कूडा थैलों मे रखे न कि सडक या नालियों मे भर दे जिससे वो चोक होती है! नदियों पर भी यही बात लागू होती है जहाँ साल भर त्यौहारों के बाद कभी मूर्तियाँ विसर्ज़न के कारण कभी मनुष्य विसर्ज़न के कारण!  यहाँ तक कि जिस नदी को माता कहते है वही पर मल त्याग कर शौच क्रिया से निवॄत हो जाते है,जिसके दर्शन कैला माँ के मदिर पर हुये,प्रयागराज मे कुम्भ मेले मे हुये !आखिर मानसिकता बदलने कि लिये भी कानून की आव्श्यकता है क्योकि हम अपनी हठधर्मिता को अपनी आस्था और धर्म का चोला पहना देते है!जब कानून का ड्न्डा पडता है तो सब ठीक हो जाता हैलिकिन उस्के  अनुपालन के लिये इतनी बडी पुलिस व्यव्स्था कहाँ है?और लगा भी दी जाये तो अपनी ज़ेब भरने के लिये सामने ऐक्सीडैन्ठोता है,मार-पीट,गुन्डागर्दे हओती हओ तो वह मूक दर्शक सी निहारती रहती है और इन्त्ज़ार करती है कि थाने से फ़ोर्स आ जाये अथवा अधिकरियॊ के आदेश ,फ़िर तो वो भी भूल जाती है कि देश अब स्वतंत्र है देश के सभी नागरिक सम्मा्नीय है ,जानवर नही!
यछ प्रस्न इस समस्या के शीघ्रातिशीघ्र विकल्प का है तो वह यहे है कि आज से घर मे बच्चो को उनके कर्तव्यों  की शिछा दें क्योकि "नागरिकता की प्रथम पाठ्शाला घर है!" 

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