बुधवार, 21 मई 2014

मान्द्ण्ड

माननीय नरेन्द्र मोदी जी तो संविधान के मन्दिर को प्रणाम कर नये मान द्ण्ड स्थापित करने चाहते है दूसरी तरफ़ अरविन्द केज़री्वाल क्रिमिनल प्रोसीज़र कोड का उल्लघन कर भारतीयों को अनीति और उद्ण्डता का पढा रहे है ! अब वक्त आ गया है कि पुनः नई सोच से नया दायित्व प्रारम्भ किया जाय कि हर भारतीय को यही सोचना चाहिये कि उसकी कार्य-शाला उसका मन्दिर है उसे उसी भाव और समर्पण से कर्तव्यनिष्टा का पालन करना चाहिये जैसे वह मन्दिर जाता है!  यदि सभी लोग जिस कानून को मानना चाहे माने और जिसे चाहे न माने तो फ़िर समाज का पतन अवशम्भावी है! अतः समय आ गया है कि जिस श्रधा और भक्ति भाव से नमो-नमो किया है उसी भाव से उनकी राह का अनुसरण करिये देश और समाज का उज्ज्वल भविष्य आपका और आने वाली पीढी का इन्त्ज़ार कर रहा है ! हमे अपनी संस्कॄति और संविधान पर गर्व करना चाहिये ! नये मान्द्ण्ड नरेन्द्र मोदी जी की तरह स्थापित कीजिये न कि अरविन्द केज़रीवाल की तरह ! धन्ववाद !
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

शुक्रवार, 16 मई 2014

चुनौती

इस बार के चुनाव मे भा०ज०पा० को सभी धर्म निरपेछ पार्टियों के एक सूत्रीय नारे ’ मोदी हत्यारा है देश गर्त मे चला जायेगा ’ और राहुल गाँधी के जम्मू मे दिये गये ब्यान कि देश मे २२००० नर संहार होगा" के बावज़ूद प्रचण्ड बहुमत से भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देना इस बात को सिद्ध करता है कि अब वो दिन लद गये जब धर्म निर्पेछ का ढोल पीट कर कोई वंश या दल शासन करता रहे ! इस चुनाव मे उन सभी दलों ने मुँह की खाई जो अल्प संख्य्कों का हिमायती बन कर धर्म के नाम पर समाज का विग्रह कर रहे थे ,चाहे वो मुल्ला मुलायम हो या नेहरू-गाँधी परिवार ! अब वंश्वाद की धपली के जगह विकास, सुशाअसन के लिये भारत के सभी धर्म और जातियाँ संघर्ष के लिये तत्त्पर है! हर्ष का विष्य है कि मुलायम ,बहिन मायावती, काँग्रेस तथा जनतादल यूनाइटेड सभी को मुस्लिम समुदाय ने अपने मन माफ़िक वोट दिये ! न मुल्लाजी के कहने पर न शाही इमाम के कहने पर,अर्थात देश के विकास के नाम पोअर जिस दल को ६७ वर्षों से अछूत बनाकर रख दिया गया था वही वास्तविक रूप से धर्म निर्पेछ स्वीकार किया गया ! सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग बधाई के पात्र है कि उन्होने संविधान की आत्मा को जीवित रखने के लिये एक राष्ट्र्वाद की भावना का परिचय उसी प्रकार से दिया जिस प्रकार से युद्ध के समय करते है ! हाँ अब भा०ज०पा० को कम्ज़ोर करने के लिये यह दल धार्मिक उन्माद भड्काने का कार्य ना कर सकें इसकी चुनौती से निपटने के लिये प्रशासन को सख्त् कदम उठाने के तैय्यार रहना पडेगा !
बोधि्सत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुँज सिकन्दरा आगरा २८२००७

बुधवार, 7 मई 2014

सरकार के लिये नई चुनौती

मेरे विचार से  नई सरकार के लिये नई चुनौती मँहगाई से दो-दो हाथ करने की होगी ! इस सन्दर्भ मे अमित शाह और  नितिन गड्करी ने २५% तक मँहगाई कम करने का आश्वासन भी दे डाला है ,जो कि बहुत कठिन कार्य प्रतीत होता है ,लेकिन असम्भव कतई नही है ! हाँ कुछेक कठोर कदम उठाने के लिये सबसे पहले पहले पैट्रोल/डीज़ल के दामो को नीचे लाने के लिये सार्थक कदम उठाने होंगे, क्योंकि यदि इन वस्तुओं के दाम घटते है, तो माल-भाडा सस्ता होने की पहल शुरू होती है! इस्के लिये सरकार को बेशक टैक्स मे कमी करने का प्रयास करना पडेगा ! यध्यपि  राज्य सरकारें इस कदम के लिये आना-कानी करेगी,परन्तु इसका दूरगामी फ़ायदा उन्को भी पँहुचेगा ! दूसरे कोयला उत्पादन के लिये भी शीघ्र निर्णय लैना होगा और आयात बन्द करना होगा ,क्यौकि बिजली के उत्पादन को बढाने के लिये भी सस्ती दरों पर कोयला चाहिये और यदि बिजली का उत्पादन बढता है तो निसन्देह औध्योगिक उत्पादन जो विगत वर्षो मे घट कर ४% तक रह गया है बढ जायेगा ,जिससे रोज्गार के नये अवसर पैदा होगे और बन्द पडी सूत मिल ,चीनी मिल आदि का जो नैट्वर्क ठप्प हो गया है ,मज़दूर भुख्मरी और आत्म हत्या की कगार पर पँहुच गये है,उन्हे जीवन के प्रति पुनः आस्था जागॄत होगी ! तीसरे अब समय आ गया है जबकि भारत जैसे कॄषि प्रधान देश के लिये साइन्टिफ़िक (कम्प्यूटरीकॄत) खेती की सोच बढाई जाये ! कम्यूटर ग्राम सभाओं पर लगाने या नव युवको को मुफ़्त लैप्टाप बाँटने की बजाय उस  धनराशि को विधिवत तरीके से समय से पानी की उप्लब्धता,सूखे से निबटने का संकल्प,बाढ की बिभीषिका से निपटने के लिये साइंस की उप्योगिता बढाने के लिये श्वेत-पत्र जारी कर उस पर दॄढतापूर्वक लागू करने का प्रयास भी करना होगा ! अमेरिका मे कृषि की जोत-बही सरकार के कम्प्यूटरों मे उपल्ब्ध है ,जो किस खेत मे कब पानी की आवश्यक्ता है?,कब खाद की ?,कब निराई की ?, कब फ़सल कटने योग्य हो गई है आदि का निर्देश देने की छमता रखती है और तदनुसार कार्यान्वित भी की जाती है! यही प्रणाली शीघ्रातिशीघ्र अपनानी होगी ! यदि राजनैतिक दलों की चुनाव बाद भी तुष्टीकरण की राजनीति करने की आदत मे परिवर्तन नही होगा तो २०२० वीज़न भी एक सपना रह जायेगा ! वोट बैंक की राज्नीति से ऊपर उठकर सर्व धर्म सम्भाव से पछ-विपछ अध्य्यन कर एक सामाजिक समवर्धन का संकल्प लेकर काम शुरू करे और एक -दूसरे को नीचा दिखाने का नाटक बन्द कर देश को ऊपर उठाने के लिये कॄत संकल्प हों तो निश्चित रूप से मँहगाई तो कम होगी ही, आर्थिक निर्भरता बढेगी , चीन, अमेरिका से आयात पर केवल प्रतिब्न्ध  ही नही लगेगा वरन निर्यात के लिये भी नये-नये दरवाज़े खुलेगे!

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुँज्सिकन्दरा आगरा २८२००७

समाज के विग्रह की राजनीति

सभी राजनैतिक दल यही कहते है कि सरकार चलाने के लिये  गठबन्धन मे कोई अस्प्र्श्य या अछूत नही है ,परन्तु जिस प्रकार से  सभी राजनैतिक दलों ने एक साथ श्री नरेन्द्र मोदी जी को अस्प्रश्य घोषित कर दिया है ,उससे प्रतीत होता है कि जैसे गोधरा काण्ड मे वे स्व्य़ं तलवार लेकर नरसंहार करने पँहुचे थे ! यदि वे इतने उत्तरदायी है तो उसके लिये न्यायालय द्ण्ड देगा साथ ही क्या उन्के अतिरिक्त किसी के शासन काल मे कोई दंगे नही हुये ? ,मुम्बई के दँगे के समय कौन मुख्य्मंत्री था ?, उडीसा के दंगो के समय कौन  मुख्य मंत्री था ?बंगाल के दंगो के समय कौन मुख्य मंत्री था ? किसी को नाम भी याद नही तो फ़िर उनके साथ ही इस प्रकार का सौतेला व्यवहार क्यों ? शायद इसके पीछे सभी राजनैतिक दलों को वोट बैंक मे सेंध लग जाने का खतरा दिखाई पडता है या फ़िर सभी राजनैतिक दलों को मोदीजी का आर०आर० एस० का प्रचारक होने का  इतिहास  डराता है !हिन्दुत्व की  जो परिभाषा आर०आर०एस० ने दी है उसे संकीर्ण मानसिकता की पार्टियों ने अपने लाभ के लिये प्रचारित नही होने दिया, बल्कि उसे धर्म का रंग देकर अल्प संखय्कों का शोषण किया है  ! किसी भी राज्नैतिक दल चाहे काँग्रेस हो , स०पा०,या ब०स०पा० किसी ने भी उनके हित के लिये कार्य किये होते,तो जो पिछडा पन  इस तबके के अन्दर मौज़ूद है ६७ साल की स्वतंत्रता के बाद नही होता ! शिछा, समाजिक पतन, छेत्रीय संकीर्णता उन्के जन-मानस मे इस प्रकार भर दी कि वे आर्थिक रूप से सरकार की तरफ़ आरछण के लिये कातर निगाहो से देखने के लिये बाध्य हो जायें !अब यह भी सोचने का समय  आ गया है कि कया काँग्रेस या समाज् वादी पार्टी उनके आरछाण की हिमायत कर उनका भला करने की नीयत रखती है- शायद नही ! यदि आरछण करने से किसी वर्ग का भला होता तो ७० वर्ष मे अनुसूचित जाति,अनुसूचित जन-जाति भी आज अन्य वर्ग की बराबरी से नौकरी मे होते और सरकार को बैकलाग कोटे की भरती कर नित नये प्रयास नही करने होते ! आरछण केवल एक निश्छित समय तक तो उपयोगी हो सकता था ,परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि अब वही उनकी नियति बन कर रह गया है ! किसी भी सभ्य समाज मे अछूत या अस्य्प्रश्यता कोई मान दण्ड् नही होता बल्कि योग्यता ही आधार होती है अन्यथा वह समाज विश्व के अन्य समाज से पिछड जाता है ! आज भारत अन्य देशों से पिछडा होने का कारण इसका समाजिक विभाजन है , जिसे सभी राजनैतिक दल बरकरार रख कर अपनी वोट बैंक की राजनैतिक रोटिय़ाँ सैंकते रहे ! यदि एक चाय वाला जो कि दलित समाज से आता है अपनी लगन और मेहनत से ऐसी छवि तैय्यार करता है कि आर०आर०एस० जैसा संगठन उसको प्रधान-मंत्री पद पर सुशोभित करना चाहता है ,तो क्या यह समाज के विग्रह की राजनीति है या फ़िर प्रगतिशील समाज की परिकल्पना?

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुँज सिकन्दरा आगरा  २८२००७