शनिवार, 7 दिसंबर 2013

परिवेश और संस्कॄति

समय के साथ परिवेश और संस्कॄति भी बदल रही है इसका आभास अब भारतीय सभ्यता मे भी दॄष्टिगोचर होने लगा है ! साठ के दशक मे औटो रिक्शा नही होते थे ,मानव चालित रिक्शॊं का प्रचलन था,टैम्पो नही होते थे इक्का-ताँगा होते थे जिन्हे घोडे चलाते थे ! चलाने वाले मानव भी भोले -भाले, जिनके संस्कारों मे मान्वीयता और शालीनता झलकती थी,जो माताजी-बहनजी और चाचा के सम्बोधन से आत्मीयता का परिचय देते थे ! परन्तु आज युग बदला और मानव के तौर तरीके भी बदल गये ! माँ-बहन तो मडैम और चाचा, अंकल हो गये !उसी तरह उनकी मानसिकता भी बदल गई ,हर लड्की -औरत मे उनको अपनी  मैडम दिखने लगी !अस्पताल मे अब कोई सिस्टर नही सब मैडम हैं,विद्यालय की अध्यापिकायें भी बहिन जी शब्द से गुरेज़ करने लगी हैं और मैडम मे शान समझती है,परन्तु इस शब्द के पीछे का भावार्थ उनकी बुद्धि से परे है! हाँ यह अवश्य है कि बढते हुये महिला अपराधों  के पीछे इसी मानसिकता का बोलबाला है !
यदि हम महिला सश्क्तीकरण के परिवेश मे देखे तो स्थिति अधिक भयावह है ! अब पति न तो "एजी" और पत्नी "सुनती हो"नही रह गई है अब नाम से सम्बोधन भी ’दिनेश के पापा’ और ’गीता की मम्मी’ नही अनिल और टीना डार्लिग हो गया है ,पता ही नही चलता पति को बुला रही है या बेटे को ! माताओ मे साडी भी साठ के दशक की महिलाओं तक सीमित रह गई है!आज बेटी चुस्त टाप- ज़ीन्स से अपने माँ-बाप के सामने अपने वछ्स्थल और उन्नत उरोज़ नही दिखलाती तो मार्डन नही कहलाती और माँ भी सलवार सूट से कम मे अपने को बैक्वर्ड समझती है इस लिये बेटी को बेटा बनाने की आड मे खुद भी बहन जी से, औरों के लिये मैडम बनने मे अपने को धन्य समझती है , चाहे बाद मे वे ही लोग उससे मैडम जैसा व्यवहार क्यों न कर दें!

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्द्रा आगरा २९२००७

सोमवार, 30 सितंबर 2013

खाद्द्य सुरछा अधिनियम

काँगेस सरकार ने खाद्द्य सुरछा अधिनियम पारित करवा लिया,परन्तु इस्के अनुपालन मे उसकी राजनैतिक इच्छा शक्ति का सर्वथा अभाव अवश्य आडे आयेगा! विगत १० वर्षों मे खाना-पीना ढाई गुनातक मँहगा हो गया है ,परन्तु सरकार खाद्दान्न वितरण प्रणाली के लिये कोई ठोस कदम नही उठा पाई ! आज भी हर वर्ष लाखों टन अनाज गोदामो के अभाव मे सड जाता है क्य़ोंकि एफ़०सी०आई० के पास भण्डारण हेतु पर्याप्त व्यवस्था है ही नही ! स्थितियाँ इतनी विषम हो गई कि सुप्रीम कोर्ट को आदेशित करना पडा कि सरकार खाने लायक अनाज को गरीबों मे निःशुल्क बाँट दे ,परन्तु सरकार ने अन्सुनी कर उसे सस्ते दामो पर शराब के कारखाने दारों को बेच दिया! दूसरी तरफ़ राशन के दूकान दारो की मनमानी यह देखिये जब चाहे दूकान खोलें ,जिसे चाहें दें और जब चाहें बन्दी कर दें ताकि सारा का सारा आटा मिल-मालिकों को ऊँचे भाव पर बेच सकें!इसके साथ ही मुनाफ़ा खोर काला-बाज़ारियों को भी खुली छूट है ,कि जितना चाहें उतना गोदामो मे भर लें और मँहगा कर के बेचें,पर कोई छापा नही पडता ! आज भी देश मे लाखों टन खाधान्न सटोरियों ने दबा रखा है और अब तो नौबत प्याज़ तक गोदामो मे भरा पडा है और सरकार हाथ बाँधे मूक दर्शक की तरह टुकुर-टुकुर उसे मँहगा होते देख रही है !महाराष्ट्र बिहार ,उडीसा मे किसान कर्ज़ के दबाब मे खुद्कुशी कर रहा है,और दूसरी तरफ़ आढतिये, बिचौलिये और सटोरिये माल दब कर कल्पित मँहगाई बनाते जा रहे है ! मज़बूरन किसान का बेटा खेतो को बेच शहर की ओर नौकरी के लिये भाग रहा है, जिससे बडे शहरों मे ज़मीन के भाव अनाप-शनाप बढ रहे है मानव दवाब बढ रहा है जिससे अपराधों की संख्या मे इज़ाफ़ा हो रहा है! शहरी करण मे कॄषि-योग्य उपजाऊ भूमि सिक्स लेन ,एट लेन २०-२५ मंज़िले मकान/ फ़्लैटों मे नष्ट हो रही है ! आखिर सवा अरब से अधिक आबादी के लिये जब कॄषि योग्य भूमि ही उपलब्ध नही होगी तो खाध सुरछा की गारन्टी योजना धरी की धरी रह जायेगी!
बोधिसत्व कस्तूरिया 
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

"उत्तराखन्ड की आपदा"!

पर्यावरण को प्रदूषित करने,और सामाजिक वानिकी की उपेछा करने का परिणाम है "उत्तराखन्ड की आपदा"! हम अपनी प्रक्रति को को खोते जारहे हैं ,जो कभी दैव तुल्य मानी जाती थी ,जिसकी ना केवल हम उपासना करते थे बल्कि उन्को संरछण प्रदान करते थे,चाहे पेड हों,नदी या पर्वत श्रंखला,परन्तु बदलती संस्क्रति एवं आधुनिकी करण ने वो मा्पद्ण्ड बदल के रख दिये है! एक दिन प्रयावरण दिवस मनाया ,एक दिन ग्लोबल वार्मिंग दिवस मनाया,स्कूली बच्चों को हरे पीले कपडे पहनाकर जुलूस निकाला,शपथ ली कि "अपनी धरती को माँ की तरह धरोहर के रूप मे संजोकर, संवार कर रखेंगें"! कुछ फ़ोटो समाचार पत्रों मे छपे,कुछ लेख पत्रिकाओं मे छपे ,कुछ नाटक चैनल पर दिखा दिये और इतिश्री !दूसरे दिन ही उस शपथ को भुला-बिसरा देते हैं,क्योंकि यह संस्क्रति का परिवर्तन है,या फ़िर परिवर्तित संस्क्रति ,कि हम चिन्तन-मनन और अनुसरण की शैली को भुलाकर प्रदर्शन को महत्व देने लगे हैं ! जबकि चिन्तन-मनन पश्चाताप और शुद्धी करण को जाग्रत कर मानवीय भूलो मे सुधार और समस्या का समाधान ढूँढने का प्रयास करता है ! संवेदनाओ का समूल नाश हो चुका है इसीलिये माननीय मंत्री हों या विधायक केवल अपने छेत्र की पहरेदारी कर वोट बटोरने की राजनीति करने के लिये छेत्रीयता के लिये नंगा-नाच कर रहे है ओर चैनल वाले उस पर परिचर्चा करवा रहे है !इस त्रासदी से निबटने के लिये सारा देश सह्योग के लिये दौड पडा है ,लेकिन वितरण प्रणाली मे खामियों के कारण राशन -पानी,कपडे -लत्ते पीडितों तक आज भी नही पँहुच पा रहे है !अपना बर्चस्व और एकाधिपत्य समाप्त न हो जाय इसीलिए उत्तराखण्ड सरकार न तो स्व्यं िसके लिये अधिकारियॊ का संगठन तैय्यार कर पाई है और ना ही स्वयंसेवी संस्थाओं को वितरण का कार्य सौंप रही है नतीजतन खाद्द सामग्री रिलीफ़ कैम्प के स्थान पर हरिद्वार और जोशीमठ मे पडी हुई सड रही है और आपदा प्रब्न्धन का कोई नामोनिशान ही नही है ,जैसके लिये स्ड्कों के अभाव्मे हैलीकाप्टर ही एक माधय्म है ,जिस्को चाहे रैस्क्यू आपरेशन मे लगा लीजिये या फ़िर वितरण कार्य मे ! सेना का कार्य अवश्य सराहनीय रहा और वे बधाईए के पात्र है ,जब्कि स्थानीय प्रशासन और पुलिस की कअर्य शैली अत्यन्त अमानवीय ! चिन्तन का विषय यह है कि क्या इस त्रासदी के बाद किसी दीर्घ कालीन कार्य योजना की आवश्यकता कया केवल पहाडी छेत्र मे ही है या फ़िर मैदानी छेत्र मे भी है, जहाँ हज़ार्त लाखों हैक्टेयर उपजाऊ कॄषि-भूमि को विकास के नाम पर फ़ोर लेन, सिक्स लेन एट लेन की भेंट चढाया जा रहा है और कॄषक को मुआवज़ा देकर अंगेजों की तरह चिढाया जा रहा है कि भूमि पर काश्त्कार का नही सरकार का अधिकार है जो जब चाहे उस्की रोजी-रोटी ओ जनहित के नाम पर ,विकास के नाम पर छीन सकती है,और मन मानी मुआवज़ा देकर लूट सकती है !क्या उपजाऊ कॄषि-भूमि के अधिग्रहण के बदले उसके दस गुनी ऊसर भूमि को उपजाऊ बनाने की योजना है ?क्योंकि जन संख्या के बढते घनत्व को देखते हुये आने वाले वर्षों मे अधिक खाद्दान्न की आवश्यकता होगी और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी !क्या इन्फ़्रास्ट्र्क्चर बढाने के नाम पर जो सड्कों के किनारे लगे लाखों पेडों की बलि चढाई जा रही है,उसके लिये कया यह आवश्य्कीय नही है कि जितने पेड कटै ,उसके दस गुना अधिक पेड स्थानीय ठेकेदार या स्थानीय सरकार  लगा दे तब कार्य प्रारम्भ होगा क्योंकि आधे तो वैसे ही रख-रखाव के अभाव मे समाप्त हो जाते है !इसी प्रकार नदियॊ के किनारे बनने वाले मकान दुकान ,होटल आश्रम ,गैस्ट हाउस आदि प्रतिबन्धित हो, जिससे इस प्रकार की धन एवं जन हानि की पुनरावॄत्ति न हो !
बोधिसत्व कस्तूरिया 
एड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

मंगलवार, 18 जून 2013

चीन- आर्थिक और सामरिक आक्रमण

चीन ने साम्राज्यवादी विचार धारा के अन्तर्गत १९६२ मे भारत पर हमला किया था , हज़ारो सैनिकों का बलिदान सैकडों हैक्टेयर भूमि आज भी उनके कब्ज़े मे है परन्तु हम आज भी  "हिन्दी-चीनी भाई-भाई" के प्रेम ज़ाल मे फ़ँसे हुये है और उन्की हर हिमाकत को नज़र अन्दाज़ करते चले आ रहे है! अआज से १० वर्ष पूर्व  चीन ,भारत पर आर्थिक आक्रमण कर चुका है जिसकी परिणति है कि हमारी अर्थ -व्यवस्था धीरे-धीरे पंगु होती चली जा रही है,कुटीर उद्द्योग से लेकर मध्यम वर्गीय उद्द्योगों - इलैक्ट्रीकल उपकरण से लेकर खिलौना उद्द्योग तक समाप्त प्राय हो चुका है ! भारत के आयात चीन से रुकने का नाम नही ले रहे है और निर्यात मे ३०% की गिरावट आ चुकी है नतीज़ा सस्ते और कम टिकाऊ सामान से बाज़ार अटा पडा है और भारतीय उद्द्योग मे उत्पादन मे १०% की गिरावट दर्ज़ हो चुकी है !
दूसरी तर्फ़ चीन की सामरिक शक्ति बढते जा रही है ,उसके हौसले इतने बढ गये है कि उसने न केवल कश्मीर (पाक अधीन्स्थ) मे सैन्य दल तैनात कर दिये है सड्कों का निर्माण कर लिया है !एक तरफ़ वह भारत की सीमा मे १९ कि०मी० भीतर घुस आया और भारतीय प्रधान मंत्री मन मौन सिंह उसे स्थानीय मामला बता कर टाल रहे है बल्कि चीनी प्रधान मंत्री का  भारत की सर ज़मी पर इस्तक्बाल भी कर रहे हैं, नतीजतन उन्होने भारतीय एल०ओ०सी०पार कर अपनी चौकियाँ भी स्थापित कर ली है!
इसके अतिरिक्त भारत की जडे अन्दर से भी खोख्ली करने के लिये और नक्सल्वाद की जडे जमाने के लिये कोल्कता से लेकर आन्ध्र प्रदेश तक ट्रेनिग , असलाह व धन भी चीन ही मुहय्या करा रहा है , जिसकी परिणति मे अभी झारख्न्ड की घटना है कि इतना भंयकर गुर्रिल्ला आक्र्मण कि पुलिस और प्रशासन के साथ ही कांगेस के नेता गण भी मारे गये !फ़िर  भी माननीय प्रधान मंत्री जी, श्री जवाहर लाल नेहरू भू०पू०प्रधान मंत्री के पंच्शील के सिद्धान्त पर अमल कर उसी तरह के कार्य कलापों की पुनरावॄत्ति कर रहे है! चीन के ड्रैगन ने भारत को आर्थिक, सामरिक और आतंक वाद सभी दॄष्टि से डसा है  !चीन की नियत मे खोट यह है कि तिब्बत पर उसने कब्ज़ा कर अपने मानचित्रों मे उसे अपना अभिन्न अंग चित्रित कर दिया है, भारत की  विवादित भू्मि पर भी अपना आधिपत्य  दिखाया है ! एक तरफ़ वह हाथ तो मिलाना चाहता है ताकि मध्य एशिया मे उस्का बाज़ार वाद हावी रहे ,दूसरी तरफ़ भारत  इस छेत्र मे किसी तरह की शक्ति बन कर ना उभर पाये!
चिन्तन का विषय यही है कि भारत कब तक आँखे मूंद कर इस आर्थिक और सामरिक आक्रमण को बर्दाश्त करता रहेगा?
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

रविवार, 7 अप्रैल 2013

प्रजातंत्र और समाजवाद का सपना


समय और सत्ता परिवर्तन के साथ ही नेताओं की सोच संकुचित होती जा रही है ! देश की आज़ादी के लिये न्यौछावर होने की सामर्थ्य रखने वाले नेताओं की कमी ने इस देश के प्रजातंत्र की जडों को खोखला कर दिया है,धर्म निर्पेछ समाज वादी समाज की अवधारणा को ध्व्स्त कर दिया है ! अब धर्म निर्पेछता की चादर ओढ जातिवाद, भाई-भतीजावाद का खूनी खेल खेला जा रहा है,परिणामतः टिकट के आवंटन से लेकर मंत्री-पद आवंटन भी इससे अछूता नही रहा है !
जान की बाजी लगाने वाले नेतांओ का स्थान ऐसे नेताओ ने ले लिये है जो सी०बी०आई०और जेल जाने  के भय से सत्ता पछ को स्वार्थ भाव से समर्थन दे रहे है,क्यों कि अपने काले कारनामो के कारण उनमे इतना मनो बल ही नही है कि वे जन हित की सोच सही निर्णय ले सकें! समाज्वाद का बिगुल बेशक बजाते हों ,दलितों की मसीहा,धरती पुत्र बेशक कहलाते हो परन्तु उन्का समाज केवल उन्का परिवार और ज़्यादा से ज़्यादा उनकी बिरादरी तक ही सीमित है! नेता इतने संकीर्ण विचार-धारा के हो गये है कि जन हित मे लगने वाले धन को किसी वर्ग विशेष मे बाँट ,किसी राज्य को विशेष पैकेज देकर घाटे का बज़ट पेश करने से भी नही डरते परिणामतः हर भारतीय पैदा होने से पहले ही हज़ारो रुपयों के कर्ज़ के तहत ही इस धरा पर अवतीर्ण होता है !राज्य सरकार का कर्ज़ अलग और केन्द्र सरकार का अलग क्योंकि संविधान मे भी तो अलग -अल्ग विषयो की अलग सूची है! हाँ राज्य सकार का कर्ज़ा रुपयों मे और केन्द्र का डालर मे हो जाता है ! अभी उ०प्र० मे क्न्या विद्द्या धन बँटा,लैप-टाप बँटा,"मेरी बेटी उसका कल"मे एक -एक मुस्लिम बालिका को ३०००० हज़ार बँटे परन्तु जन सामान्य के गले पर टैक्स की रेती चला कर ! कोई सरकार चाहे वो विकास  के लिये , सड्को की बात करे,गरीबो के लिये सस्ते भवनो की बात करे,उसका प्रतिफ़ल नेताओं को ही मिलता है परिणामतः ४-५ वर्षों मे ही उनकी पूजी ४००-५०० गुना तक बढ जाती है और सकार का घाटा बढ कर दूना हो जाता है ,तो फ़िर विकास कैसे हो रहा है यही चिन्तन का विषय है! अरबो रुपया तो माननीयों के भवन और सुरछा पर खर्च हो रहा है यदि वही समाप्त कर दिया जावे तो घाटे की राज्नीति समाप्त हो सकती है,लैकिन आज वे जन सेवक की परिभाषा भूल कर राजा भैया बन गये है!यदि वे जनता के नुमाइन्दे है तो जनता से इअतने भयाक्रान्त क्यो हैकि उनकी सुरछा के लिये दिन रात लाखों पुलिस वाले तैनात है और प्रजातंत्र मे प्रजा के लिये अपराअधियों की धर-पकड के लिये पुलिस का अकाल पड जाता है!
सताधारी कोई भी नेता भूखा-नंगा नही है ,फ़िर उन्हे इतनी मोटी-मोटी तन्खाह, भत्ते, रेल,हवाई किरायॊ मे छूट,बसों मे फ़्री पास क्यों?क्या यह धन जनता पर लगाये जाने वाले टैक्स की बर्बादी नही है ? क्या इसी प्रजातंत्र और समाजवाद का सपना गाँधी और संविधान निर्माताओं ने देखा था?
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

बलात्कार


प्यार और वासना एक दूसरे के पर्याय भी है और मंजिल भी! युवाओं को प्यार की अभिव्यक्ति करने के लिये कई माध्यम है ,परन्तु एक सीमा के भीतर ! गायन,संगीत आदि के माध्यम से यह अभिव्य्कति आदि काल से चली आ रही है ! प्रश्न यह उठता है कि सीमा कौन निर्धारित करेगा? निश्चित रूप से उसको करनी होगी जो उसके प्रतिफ़ल से प्रभावित होगा ,अर्थात नारी- जिसे समाज की बदनामी, गर्भ-धारण की जिम्मेदारी,शिशु को नाम देने और पालन-पोषण का उत्तर दायित्व भी निभाहना है !सह-शिछा मे साथ-साथ पढने से बालक-बालिकाओं को निश्चित तौर पर एक -दूसरे की भावनाओं को समझने की काबलियत मिलती है,परन्तु  यदि वह सीमा के बाहर एके-दूसरे के साथ चोरी-छिपके मिलते है कमरों पर आते जाते है ,देर रात्रि मे एकान्त ढूढते है तो निश्चित तौर पर वासना के करीब पहुँच जायेंगे ! अतः इस  मेल-मिलाप को माँ-बाप के अँकुश , निगरानी और मार्ग निर्देशन की आवश्यकता होती है !वैसे यदि हम समाचारों को गौर से देखे तो पायेंगे कि पढे-लिखे लडके -लडकी मर्यादाओं के साथ स्वेछा से यौन समबन्ध स्थापित करते है,लेकिन अनपढ लोग ,दुराचारी, नशेबाज ही बलात्कार करते है और वह यह समाज मे नही परिवार मे निजी सम्बन्धों से लेकर पत्नी तक को इसका शिकार रोज़ बनाते है,जिससे उन्के भीतर के पुरुष को तुष्टि मिलती है कि स्त्री उस्की ज़ायदाद है वह उसका जैसे चाहे जब चाहे प्रयोग कर सकता है! परन्तु शिछित समाज मे नारी अपने  पति को भी मन से राजी न होने पर सम्भोग की इज़ाज़त नही देती है ! बलात्कार एक सामाजिक बुराई से ज़्यादा दिमागी दीवालियापन है ,जिसमे वासना का सुख कम क्रूरता अधिक होती है!

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

तुष्टीकरन

आज हमारे बीच अजीब सी बेबसी छाई हुई है कि यासीन मलिक ने हाफ़िज़ सईद के साथ पाकिस्तान मे एक मंच साझा किया कि अफ़्ज़ल गुरू को फ़ाँसी देने मे भारत सरकार ने कोताही की है कि उसके परिवार को आखिरी समय पर उसे मिलने नही दिय गया !सरकार ने इस पर कडा रुख करते हुये उसका पास्पोर्ट जो २८ तारीख को ख्त्म हो रहा है ,उसकी अवधि बढाने से इन्कार कर दिया ! परन्तु दूसरी ओर अलीगढ मुस्लिम यूनीवर्सिटी मे कश्मीरी छात्रो ने हाथ मे तख्ती लेकर पर्द्शन किया "एक अफ़्ज़ल मार दिया तो १०० अफ़ज़ल पैदा होंगे" पर कोई कार्य्वाही नही की ! चिन्तन का विषय है कि तुष्टीकरन की राज्नीति कही भारत के दूसरे विभाजन का बीज़ तो नही बो रही है?

शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

"गॄह मंत्री जी की बुद्धि की बलिहारी , जो कही पडे न उन पर ही भारी !"


तहरीक-ए-तालिबान के अहसानुल्ला खाँ ने "दी डान " अखबार मे एक भडकाऊ ब्यान ज़ारी कि्या है कि यदि कश्मीर मे मुस्लिमों के विरुद्ध भारत द्वारा प्रायोजित आतंक्वाद खत्म नही होता है तो वे कश्मीरी मुस्लिमों की हत्या के लिये सरकार समर्थित हिन्दू आतंक वादी कैम्पों (जिनकी पुष्टि भारत के गॄह मंत्री ने की है) पर हमला करेगे !"चिन्तन का विषय यह है कि यदि भा०ज०पा०और आर०एस०एस० आतंक वाद को प्रश्रय दे रहे है ,तो भारत सरकार इन्हे प्रतिब्न्धित क्यों नही कर रही या फ़िर उन्के खिलाफ़ आज तक कार्य्वाही क्यॊ नही की ? श्री सुशील कुमार शिन्दे के ब्यान से जहाँ सीमा-पार के आतंकवादियों को बल मि्ला है वही भारत के भीतर बैठे घुस्पैठियों को भी शै मिल गई कि मन्मौन जी की अछम सरकार भारत के कोने कोने से आतंक्वाद को समूल नष्ट करने की बात को करती है, परन्तु संसद के भीतर आतंक्वदियों की घुस पैठ ज़ारी है !उन्के इस वक्तव्य से किसका भला हुआ ,इसका फ़ैसला आपको करना है कि क्य एक इतने गैर ज़िम्मेवार व्यक्ति का गॄह मंत्री के पद पर रहना भारत के हित मे है या अहित मे?साथ ही काँग्रेस के दिग्गज़ नेता प्रधान मत्री को उन्हे हटाने की सलाह देने के बजाय उनके समर्थन मे आ गये है!मै तो केवल इतना  ही कह सकता हूँ कि
"गॄह मंत्री जी की बुद्धि की बलिहारी ,
जो कही पडे न उन पर ही भारी !"
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दर आगरा २८२००७

रविवार, 13 जनवरी 2013

कब तक भारत मे घुस कर क्रिकेटर और सैनिक भारतीयॊ को पीटते रहेंगे


२६/११ का मास्टर माइन्ड हफ़ीज़ सईद को जिस तरह से पाकिस्तान सरकार की शै मिली हुई है कि वो बार्डर पर आकर पाकिस्तानी सैनिकों के बीच भडकाऊ भाषण देता है और दो दिन बाद १० घुस पैठिये कुहरे की आड मे पुन्छ सैक्टर से सरहद पार कर आते है और भारतीय सैनिकों को न केवल मार डालते है ,बल्कि उन मे से एक शहीद हेम राज का सर काट कर ले जाते है!मथुरा जनपद मे उसके शव की अन्त्येष्टि अर्ध रात्रि मे ही सरकारी दबाब मे बिन किसी बडे अधिकारी / मत्री के कर दी जाती है कि कही जनता ,बिना सिर के शहीद को देख भडक न जाये ! बदले मे भारत सरकार पाकिस्तानी उच्चायुक्त को बुला कर कडा विरोध प्रदर्शित करती है और वो तुरन्त मीडिया को बुला कर पाकिस्तान की इस हरकत की पैरवी करते हुये कहते है कि किसी अन्तराष्ट्रीय एजेन्सी से इस्की तफ़्तीश करवा ली जाये ! ताकि यह एक अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बन कर संयुक्त राष्ट्र संघ तक चला जाय! दूसरे ही दिन पाकिस्तान सरकार भारतीय उच्चायुक्त को बुला कर यह कहती है कि "भारतीय जवानो ने पुन्छ सैक्टर मे गोली बारी की और उनका एक जवान शहीद हो गया है"  इस घटना की अन्तराषट्रीय समुदाय ने तीव्र भर्त्सना की और हेम्राज के परिवारी जन आज भी उस सिर के लिये भूख हडताल पर बैठे  हुये है ,परन्तु भारत सरकार ने विपछ की माँग कि " भारतीय राजदूत को कठोर कदम उठाते हुये  तुरन्त बुला लीजिये"सिरे से नकार दिया ! आखिर पाकिस्तान कब तक भारत मे घुस कर क्रिकेटर और सैनिक भारतीयॊ को पीटते रहेंगे और हम गाँधीवादी बने अगले आक्र्मण का इन्तज़ार करेगे और कारगिल की तरह हज़ारो हैक्टेयर भूमि छोडते रहेंगे ?
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७