गुरुवार, 4 अप्रैल 2013
बलात्कार
प्यार और वासना एक दूसरे के पर्याय भी है और मंजिल भी! युवाओं को प्यार की अभिव्यक्ति करने के लिये कई माध्यम है ,परन्तु एक सीमा के भीतर ! गायन,संगीत आदि के माध्यम से यह अभिव्य्कति आदि काल से चली आ रही है ! प्रश्न यह उठता है कि सीमा कौन निर्धारित करेगा? निश्चित रूप से उसको करनी होगी जो उसके प्रतिफ़ल से प्रभावित होगा ,अर्थात नारी- जिसे समाज की बदनामी, गर्भ-धारण की जिम्मेदारी,शिशु को नाम देने और पालन-पोषण का उत्तर दायित्व भी निभाहना है !सह-शिछा मे साथ-साथ पढने से बालक-बालिकाओं को निश्चित तौर पर एक -दूसरे की भावनाओं को समझने की काबलियत मिलती है,परन्तु यदि वह सीमा के बाहर एके-दूसरे के साथ चोरी-छिपके मिलते है कमरों पर आते जाते है ,देर रात्रि मे एकान्त ढूढते है तो निश्चित तौर पर वासना के करीब पहुँच जायेंगे ! अतः इस मेल-मिलाप को माँ-बाप के अँकुश , निगरानी और मार्ग निर्देशन की आवश्यकता होती है !वैसे यदि हम समाचारों को गौर से देखे तो पायेंगे कि पढे-लिखे लडके -लडकी मर्यादाओं के साथ स्वेछा से यौन समबन्ध स्थापित करते है,लेकिन अनपढ लोग ,दुराचारी, नशेबाज ही बलात्कार करते है और वह यह समाज मे नही परिवार मे निजी सम्बन्धों से लेकर पत्नी तक को इसका शिकार रोज़ बनाते है,जिससे उन्के भीतर के पुरुष को तुष्टि मिलती है कि स्त्री उस्की ज़ायदाद है वह उसका जैसे चाहे जब चाहे प्रयोग कर सकता है! परन्तु शिछित समाज मे नारी अपने पति को भी मन से राजी न होने पर सम्भोग की इज़ाज़त नही देती है ! बलात्कार एक सामाजिक बुराई से ज़्यादा दिमागी दीवालियापन है ,जिसमे वासना का सुख कम क्रूरता अधिक होती है!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें