पर्यावरण को प्रदूषित करने,और सामाजिक वानिकी की उपेछा करने का परिणाम है "उत्तराखन्ड की आपदा"! हम अपनी प्रक्रति को को खोते जारहे हैं ,जो कभी दैव तुल्य मानी जाती थी ,जिसकी ना केवल हम उपासना करते थे बल्कि उन्को संरछण प्रदान करते थे,चाहे पेड हों,नदी या पर्वत श्रंखला,परन्तु बदलती संस्क्रति एवं आधुनिकी करण ने वो मा्पद्ण्ड बदल के रख दिये है! एक दिन प्रयावरण दिवस मनाया ,एक दिन ग्लोबल वार्मिंग दिवस मनाया,स्कूली बच्चों को हरे पीले कपडे पहनाकर जुलूस निकाला,शपथ ली कि "अपनी धरती को माँ की तरह धरोहर के रूप मे संजोकर, संवार कर रखेंगें"! कुछ फ़ोटो समाचार पत्रों मे छपे,कुछ लेख पत्रिकाओं मे छपे ,कुछ नाटक चैनल पर दिखा दिये और इतिश्री !दूसरे दिन ही उस शपथ को भुला-बिसरा देते हैं,क्योंकि यह संस्क्रति का परिवर्तन है,या फ़िर परिवर्तित संस्क्रति ,कि हम चिन्तन-मनन और अनुसरण की शैली को भुलाकर प्रदर्शन को महत्व देने लगे हैं ! जबकि चिन्तन-मनन पश्चाताप और शुद्धी करण को जाग्रत कर मानवीय भूलो मे सुधार और समस्या का समाधान ढूँढने का प्रयास करता है ! संवेदनाओ का समूल नाश हो चुका है इसीलिये माननीय मंत्री हों या विधायक केवल अपने छेत्र की पहरेदारी कर वोट बटोरने की राजनीति करने के लिये छेत्रीयता के लिये नंगा-नाच कर रहे है ओर चैनल वाले उस पर परिचर्चा करवा रहे है !इस त्रासदी से निबटने के लिये सारा देश सह्योग के लिये दौड पडा है ,लेकिन वितरण प्रणाली मे खामियों के कारण राशन -पानी,कपडे -लत्ते पीडितों तक आज भी नही पँहुच पा रहे है !अपना बर्चस्व और एकाधिपत्य समाप्त न हो जाय इसीलिए उत्तराखण्ड सरकार न तो स्व्यं िसके लिये अधिकारियॊ का संगठन तैय्यार कर पाई है और ना ही स्वयंसेवी संस्थाओं को वितरण का कार्य सौंप रही है नतीजतन खाद्द सामग्री रिलीफ़ कैम्प के स्थान पर हरिद्वार और जोशीमठ मे पडी हुई सड रही है और आपदा प्रब्न्धन का कोई नामोनिशान ही नही है ,जैसके लिये स्ड्कों के अभाव्मे हैलीकाप्टर ही एक माधय्म है ,जिस्को चाहे रैस्क्यू आपरेशन मे लगा लीजिये या फ़िर वितरण कार्य मे ! सेना का कार्य अवश्य सराहनीय रहा और वे बधाईए के पात्र है ,जब्कि स्थानीय प्रशासन और पुलिस की कअर्य शैली अत्यन्त अमानवीय ! चिन्तन का विषय यह है कि क्या इस त्रासदी के बाद किसी दीर्घ कालीन कार्य योजना की आवश्यकता कया केवल पहाडी छेत्र मे ही है या फ़िर मैदानी छेत्र मे भी है, जहाँ हज़ार्त लाखों हैक्टेयर उपजाऊ कॄषि-भूमि को विकास के नाम पर फ़ोर लेन, सिक्स लेन एट लेन की भेंट चढाया जा रहा है और कॄषक को मुआवज़ा देकर अंगेजों की तरह चिढाया जा रहा है कि भूमि पर काश्त्कार का नही सरकार का अधिकार है जो जब चाहे उस्की रोजी-रोटी ओ जनहित के नाम पर ,विकास के नाम पर छीन सकती है,और मन मानी मुआवज़ा देकर लूट सकती है !क्या उपजाऊ कॄषि-भूमि के अधिग्रहण के बदले उसके दस गुनी ऊसर भूमि को उपजाऊ बनाने की योजना है ?क्योंकि जन संख्या के बढते घनत्व को देखते हुये आने वाले वर्षों मे अधिक खाद्दान्न की आवश्यकता होगी और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी !क्या इन्फ़्रास्ट्र्क्चर बढाने के नाम पर जो सड्कों के किनारे लगे लाखों पेडों की बलि चढाई जा रही है,उसके लिये कया यह आवश्य्कीय नही है कि जितने पेड कटै ,उसके दस गुना अधिक पेड स्थानीय ठेकेदार या स्थानीय सरकार लगा दे तब कार्य प्रारम्भ होगा क्योंकि आधे तो वैसे ही रख-रखाव के अभाव मे समाप्त हो जाते है !इसी प्रकार नदियॊ के किनारे बनने वाले मकान दुकान ,होटल आश्रम ,गैस्ट हाउस आदि प्रतिबन्धित हो, जिससे इस प्रकार की धन एवं जन हानि की पुनरावॄत्ति न हो !
बोधिसत्व कस्तूरिया
एड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
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