शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012
गुजरात का चुनाव
नरेन्द्र मोदी ने गुजरात का चुनाव तीसरी बार जीत कर यह सिद्द कर दिया कि भारतीय जनता पार्टी को साम्प्रादायिक कहने वाली स्व्यंभू धर्म निरपेक्छ दल जन् मानस मे अपनी क्या सख रखते है? काँग्रेस, सपा, बसपा या साम्य वादी दल भाजपा का आँलिगन इस लिये नही करते क्योंकि वह एक हिन्दू वादी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का प्रतिनिधित्व करती है !आर०एस०एस० का कार्य कर्ता,मुख्य प्रचारक जिसने चाय की एक- एक प्याली के लिये दौड लगाई थी, आज प्रधान मंत्री पद की दौड मे पँहुच गया है,तो उसे समर्थन केवल हिन्दूओं का नही ,अपितु हिन्दुस्तानी सम्पूर्ण जन मानस का समर्थन प्राप्त है! केवल नरेन्द्र मोदी ही ऐसा व्यक्तित्व है, जो मुस्लिम अल्प संख्यकों के बीच भी कमल खिला सकता है ! गुजरात् विधान सभा की डेढदर्जन सीटे मुस्लिम बाहुल्य (जहाँ१५-२०%) छेत्र मे भी भाजपा ,काँग्रेस और गुजरात नव निर्माण पार्टी से आगे रही है ! काँग्रेस के दिग्गज मुस्लिम नेता अहमद पटेल के गॄह्जनपद भ्रूच की पाँचों सीटें भाजपा ने जीती है ! अहमदाबाद व आसपास के २१ मेसे १७ सूरत की १६ मे से १५,और वडोदरा की १३ मे से ११ सीटों पर भाजपा को भारी सफ़लता मिली है और कच्छ की ३ सीटें भी उसी के पाले मे रहीं! जिन सीटों पर जहाँ मुस्लिम मतदाताओं की नि्र्णायक भूमिका होती है जैसे ज़माल पुर, लिम्बायत, दरियापुर या अब्डासा, वह भी भाजपा के खाते मे रही ! अतः अब किसी दल को यह प्रमाण-पत्र देने की आवशयकता नही रह गई भाजपा धर्म निर्पेक्छ दल है अथवा नही ! भाजपा भारतीय जनता की पार्टी है अथवा किसी वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करती है ? दूसरी तरफ़ धर्म निर्पेक्छ का मुखौटा लगाकर राहुल गाँधी, और पटेल समुदाय के रहनुमा बनकर केशूभाई पटेल भी कोई करिश्मा नही कर सके ! अतः परिवार वाद ,जातिवाद के आधार पर एसी कमरों ,होटलों मे बैठ कर राजनीति का भविष्य तै नही होगा, उसके लिये एक चाय पिलाने वाले की तरह दौड् लगानी होगी विकास का मुद्दा हर धर्म और वर्ग को स्वतः ही जोड लेता है ! आज विकास की दर भारत से ज्यादा गुजरात की है तो उसे पचाने के लिये अन्य दलों को उदार वादी दॄष्टिकोण जनहित मे अपनाना होगा !
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012
पदोन्नति मे आरक्छण
बहन मायावती जी ने जिस वोट बैंक को पाने की लालसा मे पदोन्नति मे आरक्छण बिल को पारित करने के लिये राज्य सभा मे हँगामा कियाऔर काँग्रेस ने तुष्टीकरण की राजनीति के लिये देश और समाज को दाँव पर लगाया है, अत्यन्त दुखदायीहै, एवम अदू्रदरशी निर्णय लिया है !आरकछण के नाम पर जिस प्रकार गन्दी राजनीत की जा रही है वो वैमन्स्यता का भयावह चित्रण प्रस्तुत कर रहा है !उ०प्र० मे १८ लाख कर्म्चारी अनिश्चित कालीन हड्ताल पर चले गये है,सकारी कामकाज ठप्प पडा हुआ है और भविष्य मे सारे देश मे ३ करोड कर्मचारियों के भी इस आन्दोलन मे कूदने के आसार बन चुके है ! देश एक गम्भीर त्रासदी से गुजरने वाला है ,क्योंकि किसी परिवार का कोई सदस्य यह बर्दाश्त नही कर सकता कि उसका बुज़ुर्ग एक ऐसे मानसिक अवसाद का रोगी बने जिसका कोई उपचार नही हो !२० वर्ष नौकरी करने के बाद जब उसका पदोन्नति का नम्बर आये तब एक ५-७ वर्ष जूनियर उसकी तपस्या का प्रतिफ़ल उससे छीन ले, वो भी इस आधार पर कि वह अनुसूचित जाति या वर्ग का प्राणी है ! इस बिल के पास होने से न केवल देश और समाज की बोद्धिक सम्पदा का छ्य होगा बल्कि अन्तरराष्ट्रीय जगत मे इस देश की साख को भे बट्टा लगेगा,जिस प्रका चीनी उत्पाद ने बाज़ार मे कब्ज़ा बेशक कर लिया हो परन्तु उसकी गुण्वत्ता संशय मे आ चुकी है !इस बिल के दूरगामी परिणाम होंगे यातो बोद्धिक सम्पदा का विदेशों को पलायन(ब्रेन द्रेन) होगा या फ़िर बैमन्स्यता का नँगा- नाच, एक वर्ग संघर्ष के रूप मे ! प्रवेश मे आरक्छण को तो लोग अपने छोटे भाई को आगे लानेका एक प्रयास मान लेते है और थोडी अधिक मेहनत से अच्छा प्रतिशत लाकर प्रवेश पा लेते है ,लेकिन पदोन्नति मे आरक्छण को तो अपने "पेट पर लात पडने" के समान समझेंगे और उसका या तो पुरज़ोर विरोध करेंगे या कर्मठता से काम करना ही बन्द कर देगे,क्योंकि प्रमोशन लिस्ट मे कही उनका नाम होगा ही नही ! यह दोनो ही स्थितियाँ घर -परिवार, समाज मे मान्सिक अवसाद रोगियों की फ़ौज़ तैयार कर देगी!
एक सभ्य और सुसंस्क्रत समाज की कल्पना ही बेमानी हो जायेगी जहाँ योग्य और कर्मठ प्रबुद्ध लोगो का सर्वथा अभाव हो !
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
मंगलवार, 27 नवंबर 2012
"जै हो प्रजातंत्र जै हो भारत गणतंत्र !"
भारतीय गणतंत्र गैस सिलैन्डर की विभीषिका से उबर भी नही पाया था कि ममता दीदी ने एलान कर दिया कि कम से कम २४ सिलैन्डर एक वर्ष मे प्राप्त होंगे तभी संसद चलेगी वरना त्रणमूल काँग्रेस के पदाधिकारी संसद पर धरना देते रहेंगे ! उअन्का कहना भी काफ़ी हद तक सही है क्यंकि हम तो चूल्हे की रोटी जो कन्डे/उपले और लकडी पर बनती थी उसकी सोंधी खुशबू उसे अभी हम भुला भी नही पाये थे कि सरकार ने जो लकडी कटान को रोकने के लिये गैस का विकल्प दिया था ! अब उसकी भी राशनिंग कर वर्ष मे ६ सिलैन्डर पर सीमित कर दिया ,यानी माह मे केवल ७ किलो गैस ही उपलब्ध होगी और प्रतिदिन ०.२३ ग्राम !यह बात ओबामा को तो पता है कि "भारतीय भोजन बहुत करते है जिससे विश्व मे खाद्य संकट गम्भीर स्थिति पर पहँच गया है!" परन्तु माननीय सोनिया जी और मन मौन जी को नही पता कि इतना भोजन पकाने के लिये गैस भी कितनी खच होगी?आम आदमी रोटी ,दाल, चावल,सब्ज़ी खाता है ,जिसे पकाने के लिये कम सेकम १/२ किलोग्राम गैस तो चाहिये ही और फ़िर हमारे समाज की संरचना संयुक्त परिवार की है, जहाँ कम से कम ५-७ प्राणी तो माँ-बाप,बेटा -बहू ,बेटी एकाध नाती भी होता ही है ,फ़िर तो तकरीबन १ किलो गैस एक दिन लगेगी ! मैडम तो केवल दो प्राणी माँ और एक बेटा है,बहू,नाती वगैरह कुछ है नही तो गैस कैसे खर्च हो जाती है वो क्या जाने?विदेशों मे और मैट्रो सिटी मे तो "हम दो हमारे दो "से ज़्यादा होते ही नही गैस कम करने की अव्धारणा वहाँ तो फ़िट बैठती है,पर गरीब के घर मे तो एक नया कलेश शुरू हो गया है माँ-बाऊजी कह रहे हैं कि "हमारे ज़िन्दा रहते घर-आँगन मे दो चूल्हे नही जलेंगे ,उधर सरकार कह रही है कि गैस कम्पनी सत्यापन करे एक घर मे एक ही सिलैन्डर रहे ,नतीजतन अब तक तकरीबन ६ करोड कनैक्शन रद्द कर दिये गये हैं!अर्थात "इधर कुआँ उधर खाई,मारा गया गरीब भाई!" दूसरी तरफ़ एक समस्या किराये दारो के लिये हो गई कि किराया -रसीद मकान मलिक नही दे रहा है,कहता है कि साले क्या सर्विस-टैक्स लगवायेगा? गैस कम्पनी वाले निवास का प्रमाण-पत्र माँग रहे है,फ़िर इधर भी वही दशा "एक तरफ़ कुआँ दूजी तरफ़ खाई,मारा गया गरीब भाई!"लगता है सरकार एक तीर से कई निशाने साध रही है न०१ गैस की सब्सिडी बचेगी,न०२ संयुक्त परिवार समाप्त होंगे तो एच०यू०एफ़० का रेबेट भे कम लोगों को देना पडेगा, न०३ कोई मकान मालिक किरायेदार रखता है तो सर्विस टैक्स मिलेगा! यानी कि सरकार की चाँदी ही चाँदी, जनता तो है ही साली हमरी बाँदी ,जैसे चाहो वैसे नचाओ ! "जै हो प्रजातंत्र जै हो भारत गणतंत्र !"
बोधिसत्व कस्तूरिया ऎड्वोकेट २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
गुरुवार, 15 नवंबर 2012
काँग्रेस तुम्हारी पुश्तैनी समपत्ति
आज शाम २०१४ के लोक सभा चुनाव हेतु काँग्रेस पार्टी ने समन्वय समिति के घोषणा की ,जिसका अधय्छ राहुल गाँधी को नामित किया गया ! ३ उप समिति भी गठित की गई ,जिनमे चुनाव प्रचार समिति का अधय्छ माननीय दिगविजय सिह को बनाया गया ! माता जी की पार्टी है बेटा तो कुछ भी बन सकता है आखिर वो नेहरू-गाँधी परिवार का वंशज़ है, जिसे केवल भारत वर्ष का प्रधान मंत्री देने की छमता प्राप्त है ! यह् मेरे अलावा सभी काँग्रेसीयो की सोच है,अर्थात राजा का बेटा ही राजा हो सकता है ! संविधान निर्माताओं मे बेशक काँग्रेस का ही बाहुल्य था और उन्होने इस देश को राजतंत्र के स्थान पर प्रजातंत्र देने का मन्तव्य भी स्पष्ट रूप से अंकित भी किया, पर व्याव्हारिक रूप से काँग्रेस पार्टी राज्तंत्र के भँवर-जाल मे ही फ़ँसी हुई है! सभी भारतीय नागरिक प्रबुद्ध् वर्ग का (चाहे काँग्रेसी हो या अन्य किसी दल का) राजतंत्र को धिक्कारता है और प्रजातंत्र को स्वीकारता है,कारण है कि राजतंत्र कभी सर्वजन हिताय की सोच ही पैदा नही कर सकता,जब कि " प्रजातंत्र जनता का शासन,जनता के द्वारा,जनता के लिये "होता है ! हाँ यह बात दीगर है काँग्रेस पार्टी का इतिहास है कि जब-जब उसमे किसी ने प्रजातंत्र का झन्डा उठाया, इसका तभी विभाजन हुआ ! अन्तोगत्वा अब केवल दिग्विजय सिह (दिग्गी राजा),ज्योतिरादित्य सिन्धिया,अर्जुन सिंह जैसे राजघरानों ने एक परिवार को राजतंत्र दिलवाकर अपने अपने राज्यं मे राज्तंत्र कायम रख्नने की साजिश की है और विगत ७०-७५ वर्षो से भारत के जनसाधारण की उपेछा कर सारे कानून -नियम राज घरानो के हित् मे या व्यापारिक घरानो-टाटा,बिरला,अम्बानी के आदेशानुसार उनके हित मे(जो पार्टीयों को करोडो-अरबों रुपया दान मे देते है) बनाये है! गरीब किसान जो स्वतंत्रता के समय अपनी ८५ % की भागीदारी रखता था आज या तो खुद कुशी कर रहा है या अपनी ज़मीन-ज़ायदाद पूँजी पतियॊं को बेचकर शहरो मे जीवन यापन के साधन ढूँढ रहा है! दूसरी तरफ़ सत्ताधारी दल और सामन्त वादी लोगों की समपत्ति ५००० गुना से भी अधिक हो चुकी है ! आज मुकेश अम्बानी,अनिल अम्बानी दुनिया के १०० पूँजीपतियों की लिस्ट मे आते है और किसान आमरण अनशन के लिये एक-एक महीने घर द्वार छोड,तीज़-त्योहार छोड ,मेरठ ,मुज़फ़्फ़र् नगर मे सरकार के खिलाफ़ मोर्चा लगाये बैठे होते है ! चलिये इस प्रजातंत्र को और काँग्रेस की सामन्तवादी सरकार को प्रणाम करते है और चिन्तन को आगे बढाकर इस पर दष्टिपात करते है कि माताजी ने इस दायित्व के लिये अपने इस सुयोग्य बेटे और चाटुकार सिपह्सालार दिग्विजय सिंह को ही योग्य क्यों समझा ?जबकि एडी से चोटी तक के प्रयास लगाकर उत्तर प्रदेश के चुनाव मे भारी हार दिलवाई थी ! सम्भवतः आदरणीय माता जी या तो ध्रतराष्ट्र जो अन्धा तो था ही पुत्र प्रेम मे जनहित और सदचार भी भूल गया था ,बन गई है अथवा गान्धारी की तरह आँख पर पट्टी बाँध चुकी है कि अब काँग्रेस की नय्या उबारो या डुबाओ यह तुम्हारी पुश्तैनी समपत्ति है !
बोधिसत्व कस्तूरिया ऎड्वोकेट २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
शुक्रवार, 28 सितंबर 2012
सीएज़ी की रिपोर्ट
२००८ से लेकर आज तक एफ़ सी आई के गोदामों मे ३६ हज़ार टन गेंहू सड गया,चूहे खागये, बारिश या बाढ की भेंट चढ गया! यदि प्रति व्यक्ति ४४० ग्राम की खपत ही मान ली जाय तो,लगभग ८ करोड भारतीयों का पेट भर सकता था! इस कुप्रबन्धन के लिये कौन ज़िम्मेदार है और किनको सरकार ने उत्तर्दायी पाया और उनके विरुद्ध कौन सी द्ण्डात्मक कार्यवाही की गई?यदि नही की गई तो कया इसमे भ्र्ष्टाचार की बू नही आती कि वाकई सडा या इधर उधर कर दिया गया और अधिकरियों ने अपना घर भर लिया और गरीब के लिये दे दिये चन्द नये टैक्स का बोझ ! आज सभी राजनैतिक दल सीएज़ी की रिपोर्ट के आधार पर कोल्गेट की संभावित भ्र्ष्टाचार का पुर्वाकलन कर संसद को रोक सकते है लेकिन उपरो्क्त बरबादी के लिये सरकार प्र लगाम लगाने के लिये ,द्ण्डात्मक कानून लाने के लिये दवाब नही बनाते है ,आखिर क्यों जनता के पैसे का दुरुप्योग हो रहा है , खाद्य विभाग मे खाने की वस्तु बरबाद हो रही है और यहाँ महगाई की सुरसा भ्र्ष्टाचार के गल्बहियाँ डाल गरीबों का ज़ीना हराम किये हुये है ! हाँ सरकारी अधिकारियों को उनके इस पुनीत कार्य के लिये ७% का मँहगाई भत्ता अवश्य प्रदान कर दिया, लेकिन गरीब वर्ग जो इस राशन के दाने पर ही चूल्हा फ़ूंकता है उसके हिस्से मे तो चूल्हे का सिलिन्डर भी त्याज्य वस्तु हो गया है !हम डा० एपीजे अब्दुल कलाम साहब की २०२० के स्व्प्न को मँहगाई के तराज़ू के भारी पलडे के झुकाब से तौलेंगे जब १०० रुपये दूध,५० रुप्ये गेहूं,दाले ३०० रुपये प्रति किलो, चावल २५० रुपये किलो हो जायेगा ! गरीब खुद ब खुद भूख और ज़िल्लत से मर जायेगा , सन्सैक्स ज़रूर ४०००० और निफ़्टी ३०००० पर होगा ,जिसके आधार पर माननीय वित्त मंत्री और अर्थ -शास्त्री प्रधान-मंत्री भारत को विश्व पटल पर इण्डिया बन कर उभरते हुये देखना चाहते है ! यह समस्या कि किसी भी बरबादी या समय बद्ध सीमा मे ना हो पाने पर कोई उत्तदायी नही है बेशक बज़ट और प्रोजैक्ट २५%से ५०%अधिक हो जाये! केवल खाद्द्य बिभाग ही नही पीड्ब्लूडी, सेतु निगम, रेल, वाणिज्य,परिवहन सभी विभागो मे कठोर द्ण्डात्मक कानून बना दिये जाये तो ना बार बार अन्तर राष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज़ लेने की आवश्यकता पडेगी और नाही विदेशी निवेश से उस कर्ज़ को चुकाने की !
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
गुरुवार, 6 सितंबर 2012
संविधान की धारा १६ मे ११७ वाँ संशोधन बिल
संविधान की धारा १६ मे ११७ वाँ संशोधन बिल राज्य सभा मे पेश किया गया ,जिसका उद्देश्य सरकारी नौकरियों मे प्रमोशन मे भी आरक्छण का रास्ता साफ़ करना है! पेश होते ही सपा सासंद माननीय नरेश अग्रवाल और बसपा सासंद अवतार सिह के बीच विरोध और समर्थन मे हाथापाई हुई ! अभी तो यह हाथापाई माननीयों के बीच हुई,परन्तु वह दिन दूर नहीं जब यह सभी सरकारी महक्मों मे भी आम हो जायेगी ! कल्पना कीजिये कि एक कर्मचारी १५-२० वर्ष के इन्तज़ार कर प्रमोशन के लिये अधिक्रत हुआ तब तक पीछे से एक जूनियर आरक्छण के आधार पर उस पद को हथिया लेता है ! इस मानसिक उत्पीडन और आर्थिक सदमे की परिणति से उत्पन्न होगा आक्रोश ,अपमान और नफ़रत (दलित वर्ग के प्रति), जिसके लिये उत्तरदायी होगा आज का जन मानस और शासक वर्ग ! अभी सवर्ण और दलितों के बीच नफ़रत का बीज संविधान -निर्माताओं ने बोया था,जिसे प्रमोशन मे आरक्छण की खाद देकर फ़ल्ने -फ़ूलने का कार्य कर रही है कांगेस सरकार वो भी २०१४ के चुनाव के लिये ओछे हथकण्डे अपनाकर( वोट बैंक की राजनीत कर) इसका परिणाम होगा सामाजिक विग्रह एवं वित्र्ष्णा ! साथ ही तॆयार हो्गा अकुशल और अयोग्य लोगो का अधिकारी तंत्र, सुयोग्य तक्नीशियनो और कार्मिको का विदेशों को पलायन ,जहाँ नही होती है जातिगत आधार पर आरक्षण की भरमार प्रवेश से लेकर प्रमोशन तक ! कया इसे लागू करके विदेशो मे भारत की कार्य कुशलता को हेय द्र्ष्टी से नही देखा जायेगा ? आज भी विदेशी निवेशको को यहाँ की लाल फ़ीताशाही और भ्र्ष्टाचार के कारण निवेश मे संकोच होता है और तब निश्चित रूप से यहाँ से उन्हे अपना बोरिया बिस्तर समेटना पडेगा !
विगत ६५ वर्षो का इतिहास साछी है कांग्रेस के शासन काल(जो सर्वाधिक समय रहा) मे दलितों को कोई मूलभूत सुविधा जैसे रोटी,कपडा, मकान, शिक्षा,स्वास्थ तक प्राप्त नही हो सकी है ! आज भी उन्हे शौच के लिये खेत मे अद्ध्य्यन के लिये जीर्ण-शीर्ण भवन ,जहाँ अध्यापक् नही होते है,अस्पताल जहाँ डाक्टर नही होते हैं, डाक्टर होते भी होते हैं तो दवायें नही होती हैं राशन की दूकाने है तो राशन नही है ! आखिर आरक्षण की बैसाखी देकर दलितो को इतना असहाय कर दिया कि वे बिना इसके न तो विद्द्यालयों मे प्रवेश पा सके ना नौकरी ! धन्य है काँग्रेस की खोखली विचार-धारा जिसने अपने ही समाज के एक अंग को काटकर सदैव के लिये अपाहिज़ बना दिया और वो भी अन्तररा्ष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख को ताक पर रख कर!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा २८२००७
सोमवार, 6 अगस्त 2012
"राज नीति और धर्मनीति"
"राज नीति और धर्मनीति"
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राज नीति और धर्म नीति दो अलग अलग सिधान्त है ! धर्म नीति के अनुसार "अत्याचार ,भ्रष्टाचार और पाप को सहने वाला सबसे बडा अत्याचारी,भ्र्ष्टाचारी और पापी होता है" अत:हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि धर्मानुसार उसका विरोध करे !और वही करने की चेष्टा अन्ना हज़ारे जी कर रहे थे ! पहली बार अनशन पर बैठे तो लोगों ने समझा बडा भारी परिवर्तन आने वाला है,चलो बहती गंगा मे हाथ धोकर स्वयं भी आदर्शवादी का तमगा ले आओ! लगा देश की आधी जनता परिवर्तन और भ्र्ष्टाचार के खिलाफ़ है ,पर शायद उसमे से एक भी व्यक्ति किरन बेदी और केज़रीवाल सहित कोई भी कहीं न कही भ्र्ष्टाचार का आनंद भोग चुका था ! जन लोक पाल आयेगा ,प्रधा्न मत्री को भी उसकी परिधि मे रखा जाये ,सुनने और पढने मे बडा अच्छा लगा !जन साधारण तो विधि से अनभि्ग्य है विधि वेत्ता जो भारत ही नही वरन सम्पूर्ण विश्व मे भ्र्ष्टाचार के प्रणेता है,वे भी इस महा कुम्भ मे गोते लगाने से नही चूके! विधिवेत्ता होने के कारण मै तो जानता था कि लो्कपाल या जनलोक पाल विध्येक को कानून मे परिणत करने के लिये संविधान के अनुसार ही चलना पडेगा,जिसे समझने मे आदर्णीय अन्ना जी एण्ड को को ४-५ माह का समय लगा ,पर फ़िर भी दुबारा उसी दबाव की राज्नीति को करने के लिये मैदान मे कूदे और मुँह की खानी पडी ! जनता जुटाना मुश्किल हो गया क्योकि वह तो समझ गई कि भ्र्ष्टाचार मे ले दे काम तो होता है पर यदि ईमानदार अधिकारी आ जाता है ,तो काम काज ठ्प्प पड जाता है ,हाँ बाबुओं का रेट अवश्य कुछ बढ जाता है! नतीजतन वो खिसक लिया फ़िर केवल धर्म का सहारा रह गया था जो बाबा राम देव को तारण हार बन कर देना पडा !अन्ना एण्ड को ने पैंतरा बदला कि राजनीतिक दल गठित कर यह कार्य किया जा सकता है जिसे केज़रीवाल या किरण बेदी प्रमाण्पत्र प्रदान कर दें कि यह ईमान्दार है उसे टिकट मिल जायेगा !परन्तु शायद यह कोई नही जानता कि राज्नीति तो धर्म नीति का दूसरा पहलू है, जिसका प्रादुर्भाव धन,धमक और धौंस से होता है, जिसमे यह सब नही है वो माननीय टी०एन० शेषन की तरह मुँह की ही खायेगा ! यह सर्व विदित तथ्य है कि जाति गत समीकरण पर टिकट बँटते है यादव बाहुल्य छेत्र है तो सभी दल उन्हे ही टिकट देंगे और मुस्लिम बाहुल्य छेत्र है तो सभी दल अल्प संख्यकों के हिमायती बनने की दौड मे कूद पडते है ! फ़िर यदि आपके पास धन-सम्पदा नही है तो सायं कलीन सभा मे दारू नही होगी और अगर वो नही होगी तो कार्य कर्ता भी नही होंगे ,जो कम से कम इलैक्शन तक तो भीड जुटाकर ,नेता जी को इस मुगालते मे रखते है कि जीत उन्ही की सुनिश्चित है ! बाद मे तो जिसकी लाठी मे दम होगी बूथ तो वो ही कैप्चर कर पायेगा ! अब ढूढिये कि राज्नीति मे धर्म नीति कहाँ खो जाती है ? और २०१४ के चुनाव मे कहाँ होगी अन्ना एण्ड को ?
बोधिसत्व कस्तूरिया
एड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २
सोमवार, 23 अप्रैल 2012
पावनी गगां और यमुना
आज यमुना और गंगा नदी के शुद्धीकरण हेतु रोज़ अनेकानेक स्वयंसेवी सस्थायें कभी पौलीथीन बीनो अभियान,कभी कूडा -करकट हटाओ अभियान चलाकर जन जागरण कम और अपनी पब्लीसिटी अधिक करते है! गाहे बगाहे यह भी सिद्ध करने की कोशिश करते है कि सरकार सो रही है और यदि हम न जगाये तो कुछ नही होगा ! यद्दपि केन्द्र और राज्य सरकारें सदैव से प्रयास करती रही है जिसके फ़लस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से प्राप्त धन से जापान सरकार के सहयोग से "यमुना एक्शन प्लान"के तहत सीवर ट्रीटमैन्ट ,फ़िल्टर कर नालों का पानी शुद्धीकरण १५-२० वर्ष पहले हुआ था,पर नतीज़ा वही "ढाक के तीन पात"!
चि्न्तन का विषय यह है कि इन पवित्र नदियों को अपवित्र कर नालों का रूप किसने प्रदान किया? दूसरा जिन्होने किया ,उन्हे रोकने का कोई उपाय किया गया ?और यदि किया गया तो सफ़ल क्यों नही हुआ?इन सभी प्रश्नो का एक ही उत्तर है कि सरकार के प्रयास असफ़ल इसलिये हुए क्योंकि हमने तन मन धन से सहयोग नही किया! प्र्यावरण प्रदूषण हो, ट्रैफ़िक जाम की समस्या या भूगर्भीय जल का अनावश्य्क दोहन,अथ्वा ट्रैफ़िक नियमो की अवहेलना के कारण हुई आक्स्मिक दुर्घट्ना-घायल हों या उससे म्रत्यु,सब के लिये सरकार उत्तर्दायी है और मुआवज़ा दे वर्ना आगजनी,जाम ,सरकारी सम्पति का विनाश आदि!
अब प्रश्न यह है कि फ़िर इसका निवारण क्या है ?इन सब के लिये हम दोषी है क्योकि हम अप्ने अधिकारो को तो जानते है परन्तु सामाजिक कर्तव्य या उत्तर्दायित्व से अन्भिग्य! आज से १०-१५ वर्ष पूर्व यदा-कदा देवी देवताओ की प्रतिमाओं का विसर्जन होता था, परन्तु अब हर गली-कूचें लाखो प्रतिमाओ की स्थापना,देवीजागरण,गण्पति पूज़न की स्थापना और मूर्ति विसर्ज़न करना अब फ़ैशन्बन गया है और मौज़ -मस्ती करने वालों के लिये खाने-पीने का साधन,बेशक उसके ही परिणाम स्वरूप लाखो मूर्ति की मिट्टी,फ़ूल और पूज़न सामिग्री टनो नदियों मे ही प्रवाहित कर दी जाती है,जिसके लिये कोई नियमावली नही है अतः नदियों की गहराई शनेःशनेः कम हो रही है और प्रदूषित हो रही है !हम गुटका खाते है पौलीथीन का प्रयोग करते है उसका अवशिष्ट नालो में नदियों में फेंक देते है या फिर बह कर आते है ,परिणाम आपके सामने है कि फिर पवित्र नदी अपवित्र भी हम ही कर रहे है कारण हमारी आने वाली पीढी पर्यावरण प्रदूषण का पाठ पढ़ा रहे है आत्मसात नहीं कर रही है और नहीं अभिवावक ऐसा न करने के लिए प्रेरित कर रहे है बल्कि अपने को धार्मिक पवित्र सिद्ध करने के लिए धर्म की पर्याय पावनी गगां और यमुना को प्रदूषित कर रहे है !
बोधसत्व कस्तूरिया
एडवोकेट २०२ नीरव निकुंज सिकंदरा आगरा २८२००७
9412443093
गुरुवार, 1 मार्च 2012
प्रजातन्त्र पार्टी के भीतर
उत्तर प्रदेश का मतदान अन्तिम चरण मे पँहुच गया है ,मतदान का प्रतिशत भी अच्छा रहा !कहते है कि युवा वर्ग ने बढ -चढ कर हिस्सा लिया !चिन्तन का विषय यह है कि क्या हम प्रजातान्त्रिक प्रणाली के लिये सछम हो पाये है? या फ़िर अभी उतने ही अयोग्य है जितने आज से ६५ वर्ष पूर्व जब स्वतन्त्रता प्राप्त की थी और संघात्मक प्रजातन्त्र की स्थापना हुई थी ! मेरे विचार से हाँ हम आज भी अपने मानस पटल से राज तन्त्र को नही मिटा पाये है ,जहाँ राजा- शासक वर्ग और प्रजा- शासित वर्ग भेद मे होता है ! दूसरा शासन का दैवी सिधान्त लागू होता है,कि राजा देवता का स्वरूप है उसका विरोध नही किया जा सकता और उसके बाद उसका सबसे बडा पुत्र ही राजा बनने का अधिकारी है! सबसे अन्तिम कि राजा का कथन वह देव वाक्य है जो सर्व मान्य होता है!
आज हम देखते है कि सभी दलो मे लगभग ऐसी ही व्यवस्था है ! कांग्रेस मे नेहरू-गाँधी परिवार के अलावा कोई शासन करने के योग्य होता ही नही है ! वरिष्टतम नेता मन्त्री भी यह कहने मे संकोच नही करते कि "राहुल जी चाहें तो अर्ध रात्रि मे प्रधान मंत्री बन सकते है ! सता मे बेशक कोई प्रधान मंत्री बनाकर बैठा दिया जाये परन्तु उसका रिमोट १० जनपथ मे ही रहता है!"और चिरन्तन काल से उस परिवार को ही राजा बनने का अधिकार प्राप्त है !
एक दल अपने को समाजवादी पार्टी (सपा) कहता है,जहाँ मुलायम सिंह और उनके पुत्र के अलावा शासन करने के लिये कोई योग्य नही है,बेशक उनके भाई राम गोपाल यादव व शिव पाल सिंह यादव, अखिलेश यादव से अधिक राज्नैतिक अनुभव और परिपक्वता रखते हों !
तीसरे को लीजिये वह दल उत्तर प्रदेश मे पूर्ण बहुमत से विजयी होकर ५ वर्षों तक सता भोग चुका है,यानी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ! वहाँ बहन मायावतीजी के अलावा कोई भी किसी कद का बडे से बडा नेता हो ,तभी तक पार्टी मे रह सकता है जब तक उनके अनुकम्पा है वर्ना चुनाव से एक पख्वाडे पहले उनके अन्दर की देवी जाग्रत हो १४ मत्रियों को भ्रष्ट कर बाहर का रास्ता दिखा सकती है! सम्भवतः उनके साथ ही यह दल भी समाप्त हो जावेगा !
यही हाल अपना दल ,समानता दल का है ! महाराष्ट्र मे शिव सेना हो बाला सहब ठाकरे के बाद सत्ता की बाग डोर सभालने के लिये भतीजे राज ठाकरे को हटा कर उन्के पुत्र उद्धव को लाना पडा या तमिलनाडु मे द्रविण मुनेत्र कड्गम या जया ललिता ! हाँ अपवाद के रूप मे भारतीय जनता पार्टी और जनता दल अवश्य है जहाँ प्रजातन्त्र पार्टी के भीतर न हो लकिन निर्णय संग्ठन समिति के द्वारा ही तय होते है,बेशक विरोधों मे घिरी रहती है क्योंकि प्रजातन्त्र का अर्थ ही सब को अपनी बात कहने का हक है ! शायद आप इस मत से सहमत होगे कि जो दल अपने स्वयं के अन्दर प्रजातन्त्र स्थापित करने मे डरते हैं ,वह देश मे उसकी कल्पना कैसे कर सकते है? आज भष्टाचार अपने चरम पर है क्योंकि भाई -भतीजावाद ही भ्र्ष्टाचार की जननी है ! आज ५ वर्षो मे राजनैतिक मठाधीशो या धर्माचार्यों की सम्पत्ति ५ वर्षो मे ५० से ५०० गुनी हो जाती है और गरीब सर्वहारा वर्ग दलित की बेटी के ५ वर्षो के शासन के बाद भे खुले मे शौच को जता है उनकी बस्ती के लिय कोई सामुदायिक भवन नही है कि वह अपने बाल-बच्चों के मुन्डन,विवाह आदि जैसे संस्कार ही निःशुल्क अथवा कम पैसे खर्च कर करवा सके! प्राथमिक स्वस्थ केन्द्र,प्राथमिक विद्यालय गाँवो मे यत्र-तत्र देखने को मिल जाते है परन्तु डाक्टर या शिछक के बिना व्यर्थ ! बहिन जी और कांसी राम जी अमर होगये अरबों खर्च कर पार्क निर्माण करवाकर! क्या यह सब बाबर,अकबर ,शाह्जहाँ से कम है !लेकिन याद रहे कि वो भी यह साथ नही ले जा सके ! अब आव्शकता है कि उस राजनैतिक दल को सत्ता मिले जो प्रजातन्त्र को दल और देश दोनो मे लागू कर सके तभी राष्ट्र सम्रद्ध होगा वरना विकास दर८% से ६% पर आ चुकी है, आगे भगवान मालिक है!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २२२००७
आज हम देखते है कि सभी दलो मे लगभग ऐसी ही व्यवस्था है ! कांग्रेस मे नेहरू-गाँधी परिवार के अलावा कोई शासन करने के योग्य होता ही नही है ! वरिष्टतम नेता मन्त्री भी यह कहने मे संकोच नही करते कि "राहुल जी चाहें तो अर्ध रात्रि मे प्रधान मंत्री बन सकते है ! सता मे बेशक कोई प्रधान मंत्री बनाकर बैठा दिया जाये परन्तु उसका रिमोट १० जनपथ मे ही रहता है!"और चिरन्तन काल से उस परिवार को ही राजा बनने का अधिकार प्राप्त है !
एक दल अपने को समाजवादी पार्टी (सपा) कहता है,जहाँ मुलायम सिंह और उनके पुत्र के अलावा शासन करने के लिये कोई योग्य नही है,बेशक उनके भाई राम गोपाल यादव व शिव पाल सिंह यादव, अखिलेश यादव से अधिक राज्नैतिक अनुभव और परिपक्वता रखते हों !
तीसरे को लीजिये वह दल उत्तर प्रदेश मे पूर्ण बहुमत से विजयी होकर ५ वर्षों तक सता भोग चुका है,यानी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ! वहाँ बहन मायावतीजी के अलावा कोई भी किसी कद का बडे से बडा नेता हो ,तभी तक पार्टी मे रह सकता है जब तक उनके अनुकम्पा है वर्ना चुनाव से एक पख्वाडे पहले उनके अन्दर की देवी जाग्रत हो १४ मत्रियों को भ्रष्ट कर बाहर का रास्ता दिखा सकती है! सम्भवतः उनके साथ ही यह दल भी समाप्त हो जावेगा !
यही हाल अपना दल ,समानता दल का है ! महाराष्ट्र मे शिव सेना हो बाला सहब ठाकरे के बाद सत्ता की बाग डोर सभालने के लिये भतीजे राज ठाकरे को हटा कर उन्के पुत्र उद्धव को लाना पडा या तमिलनाडु मे द्रविण मुनेत्र कड्गम या जया ललिता ! हाँ अपवाद के रूप मे भारतीय जनता पार्टी और जनता दल अवश्य है जहाँ प्रजातन्त्र पार्टी के भीतर न हो लकिन निर्णय संग्ठन समिति के द्वारा ही तय होते है,बेशक विरोधों मे घिरी रहती है क्योंकि प्रजातन्त्र का अर्थ ही सब को अपनी बात कहने का हक है ! शायद आप इस मत से सहमत होगे कि जो दल अपने स्वयं के अन्दर प्रजातन्त्र स्थापित करने मे डरते हैं ,वह देश मे उसकी कल्पना कैसे कर सकते है? आज भष्टाचार अपने चरम पर है क्योंकि भाई -भतीजावाद ही भ्र्ष्टाचार की जननी है ! आज ५ वर्षो मे राजनैतिक मठाधीशो या धर्माचार्यों की सम्पत्ति ५ वर्षो मे ५० से ५०० गुनी हो जाती है और गरीब सर्वहारा वर्ग दलित की बेटी के ५ वर्षो के शासन के बाद भे खुले मे शौच को जता है उनकी बस्ती के लिय कोई सामुदायिक भवन नही है कि वह अपने बाल-बच्चों के मुन्डन,विवाह आदि जैसे संस्कार ही निःशुल्क अथवा कम पैसे खर्च कर करवा सके! प्राथमिक स्वस्थ केन्द्र,प्राथमिक विद्यालय गाँवो मे यत्र-तत्र देखने को मिल जाते है परन्तु डाक्टर या शिछक के बिना व्यर्थ ! बहिन जी और कांसी राम जी अमर होगये अरबों खर्च कर पार्क निर्माण करवाकर! क्या यह सब बाबर,अकबर ,शाह्जहाँ से कम है !लेकिन याद रहे कि वो भी यह साथ नही ले जा सके ! अब आव्शकता है कि उस राजनैतिक दल को सत्ता मिले जो प्रजातन्त्र को दल और देश दोनो मे लागू कर सके तभी राष्ट्र सम्रद्ध होगा वरना विकास दर८% से ६% पर आ चुकी है, आगे भगवान मालिक है!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २२२००७
शनिवार, 4 फ़रवरी 2012
कैंसर दिवस
कैंसर दिवस पर चिन्तन का विषय यह है कि इस बीमारी की भयावह्ता केवल एक दिन सरकार को क्यों दिखती है? सरकार तम्बाकू और सिग्रेट से प्राप्त होनी वाली एक्साइज़ की आय से अपने को कब रोक सकेगी ? गाँधी के सपनो का भारत तो नशामुक्त होना था,फ़िर उन्ही की अनुयायी केन्द्र की कांग्रेस शासित सरकार कोई ठोस कदम उनके सपने को पूरा करने का क्यों नही उठाती है? क्या सरकार के पास कोई और साधन या कर उप्लब्ध नही है जो इसकी भरपाई कर सके?जैसे भारत की स्वतंत्रता के ६५ वर्षो के बाद सभी पार्टियों को पता चला कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खा चुका है या घुन की तरह चाट रहा है,तब आधे -अधूरे मन से प्रयास शुरू किये जा रहे है?आज यही स्थिति कैसर रोग की भी हो चुकी है, तम्बाकू और सिग्रेट आज का युवक फ़ैशन परस्ती या स्टेटस सिम्बल की पर्याय मानने लगी है! अत: इस पर पूर्ण प्रतिबन्ध आवश्यकीय हो गया है!
बोधिसत्व कस्तूरिया
एड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
बोधिसत्व कस्तूरिया
एड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012
औसत आय
नये सरकारी आँकडों के मुताबिक एक भारतीय की औसत आय वर्ष २०१०-११ मे ४६,११७ रु० सालाना से बढकर ५३,३३१ रु० हो गई जो कि लगभग १२% प्रतिशत बढ गई ! चिन्तन का विषय गरीब के साथ मधय्म वर्गीय परिवार मँहगाई के मारे रो रहा है, विदर्भ मे किसान आत्म-हत्या कर रह है ,तो फ़िर इस १२ % से लाभान्वित कौन हुआ? यह सर्व विदित सत्य है कि पिछ्ले ५ वर्षो मे अमीर और अमीर ,गरीब और गरीब हुआ है ! बाबा राम देव ४०००० करोड डालर की विदेशी सम्पत्ति को वापिस लाने की बात करते है लेकिन अपनी सम्पत्ति मे ५ गुना व्रद्धि के लिये तनिक भी चिन्तित नही दिखाई देते है ! देश मे सर्वाधिक विकास यदि किसी तबके का हुआ है तो वह हैं राज नेता,बडे व्यापारी,और धार्मिक मठाधीश !
सभी राज नेताओ ने ५ राज्यॊ के चुनाव के पहले अपनी सम्पत्ति घोषित की जो ५ वर्ष पहले घोषित सम्पत्ति २० से ५० गुना बढ गई ! उ०प्र० की मुख्य मंन्त्री सुश्री मायावतीजी हो, ए०राजा हों या करुणाकर की पुत्री कन्नीमोझी !
छोटे व्यापारी जो अपनी पूंजी या बैंक से ब्याज पर लेकर व्यापार करते है उन्की तो किश्ते भी बडी मुश्किल से चुक पा रही है,पर पौन्टी चड्ढा जो कि १०० करोड नम्बर २ से कमाकर अपने शौपिंग माल की बेसमैंट की तिजोरियॊं मे छुपाकर रखते है या फ़िर अम्बानी,टाटा ,बिरला आदि जो आई०पी०ओ० के द्वारा जनता के पैसे पर अपनी सम्पत्ति को ५००-१०००गुना बढा चुके है और वो ही लोग भारतीय की आमदनी का औसत बढाने की ज़िम्मेदारी सँभाले हुये है ! फ़िर सरकार इन आँकडों को चुनाव के समय बताकर नेक नामी क्यों लूटना चाहती है, जब्कि उसने ऐसा कुछ नही किया जिसका श्रेय सत्ताधारी दल को मिल सके !
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीराव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
सभी राज नेताओ ने ५ राज्यॊ के चुनाव के पहले अपनी सम्पत्ति घोषित की जो ५ वर्ष पहले घोषित सम्पत्ति २० से ५० गुना बढ गई ! उ०प्र० की मुख्य मंन्त्री सुश्री मायावतीजी हो, ए०राजा हों या करुणाकर की पुत्री कन्नीमोझी !
छोटे व्यापारी जो अपनी पूंजी या बैंक से ब्याज पर लेकर व्यापार करते है उन्की तो किश्ते भी बडी मुश्किल से चुक पा रही है,पर पौन्टी चड्ढा जो कि १०० करोड नम्बर २ से कमाकर अपने शौपिंग माल की बेसमैंट की तिजोरियॊं मे छुपाकर रखते है या फ़िर अम्बानी,टाटा ,बिरला आदि जो आई०पी०ओ० के द्वारा जनता के पैसे पर अपनी सम्पत्ति को ५००-१०००गुना बढा चुके है और वो ही लोग भारतीय की आमदनी का औसत बढाने की ज़िम्मेदारी सँभाले हुये है ! फ़िर सरकार इन आँकडों को चुनाव के समय बताकर नेक नामी क्यों लूटना चाहती है, जब्कि उसने ऐसा कुछ नही किया जिसका श्रेय सत्ताधारी दल को मिल सके !
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीराव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
सोमवार, 30 जनवरी 2012
आचार संहिता की धज्जियाँ उडा रही है राष्ट्रीय पार्टीयाँ
५ राज्यों के चुनाव हो रहे है ,चुनाव आयोग ने आचार संहिता का कडाई से पालन कराने का संकल्प लिया है ! उ०प्र०मे ही ३५ करोड से अधिक वाहन सहित पकडी जा चुकी है! झण्डे ,बैनर,पोस्टर,लाउड्स्पीकर,जुलूस पर प्रतिबन्ध है,जिससे चुनाव का कोई माहौल लग ही नही रहा है! हाँ हाथी और मायावती की मूर्तियों पर पर्दा डाल दिया गया क्योकि इससे आचार संहिता का उल्लंघन हो रहा था ,परन्तु राजनैतिक दल ऊल -ज़लूल वायदों से मतदाताओ को पथभ्रष्ट कर रहे है ! इधर काँग्रेस के खुर्शीद आलम जी मुस्लिम मतदाताओ को ९ % आरछणका लौलीपाप दिखा रहे है उधर सपा के प्रदेशीय अधय्छ श्री अखिलेश यादव जी इण्टर पास होने पर लैप टाप बाँटने का प्रलोभन देकर युवाओं को लुभा रहे है ! सपा के राष्ट्रीय अधय्छ श्री मुलायम सिंह जी ने तो सभी माप-द्ण्ड तोड कर किसानो को आकर्षित करने के लिये उनके दल को जिताने पर फ़्री पानी बिजली देने का वायदा कर दिया है,जैसे सरकारी खजाना मायावती के बाद उनकी पुश्तैनी ज़ायदाद हो ज़ायेगा ! यही नही सभी बलात्कार की शिकार अबलाओं को पुरस्क्रत करने के लिये सरकारी नौकरी प्रदान करने का वायदा कर दिया ,जैसे सरकारी नौकरी की अनिवार्य योग्यता स्नातक न हो कर बलात्कार की पीड्ता होना हो ! सोचिये जो अबला बलात्कारियो से अपने को नही बचा सकी वह प्रशासन की बागडोर कैसे संभाल सकती है ? दूसरी तरफ़ झूठ पर आधारित केस रजिस्टर करवा कर नौकरी करने की होड लग जायेगी जो कि सामाजिक मान-द्ण्डो को समाप्त कर देगा !वैसे ही ५०% से अधिक आरक्छण प्रदान कर अयोग्य लोगो की फ़ौज़ तैयार की जा चुकी है,पता नही आगे की पीढी इसके लिये हमारी पीढी को कभी मुआफ़ करेगी अथवा नही ?चिन्तन का विषय यह भी है कि इस भीड को खडी करने का विदेशों मे भारत की अपनी साख पर कया प्रभाव पडेगा ? इस प्रकार के भाषणो का अर्थ कया है ,क्या यह आचार संहिता का उल्ल्घन नही है कि सरकारी खज़ाना जो किसी की बपौती नही उसके दुरुप्योग का वक्तव्य दिया जाय ? आज देश और प्रदेशो का बजट अरबो रुपयों के घाटे का बनता है जिसके लिये यही तथ्य और राजनेता दोषी है, जो सरकारी खज़ानो का दुरुपयोग राजाओ -महाराजाओं की तरह तुगलकी आदेश पारित करते है,और सालिसिटर जनरल, औडीटर जनरल केवल रिपोर्ट लगा कर अपने कार्यों की इतिश्री कर देते हैं! परन्तु उस्का परिणाम गरीब जनता को अतिरिक्त कर देकर ,मँहगाई के बोझ के तले दब कर चुकाना पडता है या आत्महत्या या आत्म्दाह जैसा घ्रणित कार्य करने को बाध्य होना पड्ता है !
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
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