"राज नीति और धर्मनीति"
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राज नीति और धर्म नीति दो अलग अलग सिधान्त है ! धर्म नीति के अनुसार "अत्याचार ,भ्रष्टाचार और पाप को सहने वाला सबसे बडा अत्याचारी,भ्र्ष्टाचारी और पापी होता है" अत:हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि धर्मानुसार उसका विरोध करे !और वही करने की चेष्टा अन्ना हज़ारे जी कर रहे थे ! पहली बार अनशन पर बैठे तो लोगों ने समझा बडा भारी परिवर्तन आने वाला है,चलो बहती गंगा मे हाथ धोकर स्वयं भी आदर्शवादी का तमगा ले आओ! लगा देश की आधी जनता परिवर्तन और भ्र्ष्टाचार के खिलाफ़ है ,पर शायद उसमे से एक भी व्यक्ति किरन बेदी और केज़रीवाल सहित कोई भी कहीं न कही भ्र्ष्टाचार का आनंद भोग चुका था ! जन लोक पाल आयेगा ,प्रधा्न मत्री को भी उसकी परिधि मे रखा जाये ,सुनने और पढने मे बडा अच्छा लगा !जन साधारण तो विधि से अनभि्ग्य है विधि वेत्ता जो भारत ही नही वरन सम्पूर्ण विश्व मे भ्र्ष्टाचार के प्रणेता है,वे भी इस महा कुम्भ मे गोते लगाने से नही चूके! विधिवेत्ता होने के कारण मै तो जानता था कि लो्कपाल या जनलोक पाल विध्येक को कानून मे परिणत करने के लिये संविधान के अनुसार ही चलना पडेगा,जिसे समझने मे आदर्णीय अन्ना जी एण्ड को को ४-५ माह का समय लगा ,पर फ़िर भी दुबारा उसी दबाव की राज्नीति को करने के लिये मैदान मे कूदे और मुँह की खानी पडी ! जनता जुटाना मुश्किल हो गया क्योकि वह तो समझ गई कि भ्र्ष्टाचार मे ले दे काम तो होता है पर यदि ईमानदार अधिकारी आ जाता है ,तो काम काज ठ्प्प पड जाता है ,हाँ बाबुओं का रेट अवश्य कुछ बढ जाता है! नतीजतन वो खिसक लिया फ़िर केवल धर्म का सहारा रह गया था जो बाबा राम देव को तारण हार बन कर देना पडा !अन्ना एण्ड को ने पैंतरा बदला कि राजनीतिक दल गठित कर यह कार्य किया जा सकता है जिसे केज़रीवाल या किरण बेदी प्रमाण्पत्र प्रदान कर दें कि यह ईमान्दार है उसे टिकट मिल जायेगा !परन्तु शायद यह कोई नही जानता कि राज्नीति तो धर्म नीति का दूसरा पहलू है, जिसका प्रादुर्भाव धन,धमक और धौंस से होता है, जिसमे यह सब नही है वो माननीय टी०एन० शेषन की तरह मुँह की ही खायेगा ! यह सर्व विदित तथ्य है कि जाति गत समीकरण पर टिकट बँटते है यादव बाहुल्य छेत्र है तो सभी दल उन्हे ही टिकट देंगे और मुस्लिम बाहुल्य छेत्र है तो सभी दल अल्प संख्यकों के हिमायती बनने की दौड मे कूद पडते है ! फ़िर यदि आपके पास धन-सम्पदा नही है तो सायं कलीन सभा मे दारू नही होगी और अगर वो नही होगी तो कार्य कर्ता भी नही होंगे ,जो कम से कम इलैक्शन तक तो भीड जुटाकर ,नेता जी को इस मुगालते मे रखते है कि जीत उन्ही की सुनिश्चित है ! बाद मे तो जिसकी लाठी मे दम होगी बूथ तो वो ही कैप्चर कर पायेगा ! अब ढूढिये कि राज्नीति मे धर्म नीति कहाँ खो जाती है ? और २०१४ के चुनाव मे कहाँ होगी अन्ना एण्ड को ?
बोधिसत्व कस्तूरिया
एड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २


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