सोमवार, 7 मार्च 2016

असहिष्णुता


राष्ट्र भक्ति और असहिष्णुता को लेकर देश  मे काफ़ी दिनो से विवाद चल रहा
है! असहिष्णुता शाब्दिक अर्थ कुछ भी हो,परन्तु विवाद यह तब ज़्यादा रंगीन
हो गया जब कुछ चाटुकारिता से सरकारी पारितोष पाने वाले साहित्यकारो ने
अपने सरकारी पदक वापिस करनी की होड लग गई! सहिष्णुता का विलोम असहिष्णुता
पर गर्मागर्म बहस चली कि जब से भा०ज०पा० की सरकार आई असहिष्णुता बढ गई
है! आमिर खान की पत्नी ने तो भारत छोडने का मन बना लिया,वो तो भला हो
आमिर साहब का’सत्य मेव जयते’ का टेली कास्ट उन्हे रोके था! सहिष्णुता का
अर्थ सहनशीलता से है इसका ज़िक्र वो करे जिसने असहनशीलता के कारण पहली
पत्नी को तलाक दे दिया,तो बात गले से नही उतरती !पति-पत्नी के रिश्तों मे
जितनी आवश्यक्ता सहनशीलता की होती है किसी और मे शायद कम! 
चलिये छोडिये क्या आज आने वाली
पीढी के आगे इतने नत मस्तक नही हो चुके कि माँ बेटी से नही कह सकती कि
बेटी टाइट ज़ीन्स ,छोटी स्कर्ट,बिकनी मत पहनो या बनियान-टाप मत पहनो इससे
तुमहारे अंग-प्रत्यंग साफ़ चमकते है ,इससे पुरुष वर्ग को वासना का डोज़
मिलेगा,तो माता-पिता सहन शील नही है! रात १२ बजे ब्याय फ़्रेड के साथ
सुन्सान सडक पर फ़िल्म देख कर आते मे शराबी ड्राईवर-क्लीनर का ईमान डोल
जाये तो भी आफ़त ! आखिर घूमने-फ़िरने ,कैन्डल मार्च की आज़ादी हास्ट्ल मे रह
कर पढने वालियों को मिली हुई है!हाँ परिवार मे समाज मे रहने की मर्यादा
सहनशीलता से प्रतिबद्ध है! शायद इसी देश को "भारतवर्ष" कहा गया था,जहाँ
इतनी सहन्शीलता है कि मुसल्मानो ने शासन किया और इसे नाम "हिन्दोस्तान"
दे दिया किसी ने नही कहा असहिष्णुता हो रही है, अंग्रेज़ आए उन्होने इसे
"इन्डिया" बना दिया और हमने "भारतवर्ष" उसकी सभ्यता और संस्कृति को भी
भुला दिया ! यह सब सहिष्णुता का परिचायक है! हमारे वैदिक हिन्दू धर्म  मे
सहनशीलता और शास्त्रार्थ की अनुमति है ,जिसके परिणाम स्वरूप ही
बौद्ध,जैन,और सिख धर्म का प्रादुर्भाव हुआ ! आज बेटा -बेटी से कोई समाज
या सस्कार की बात करे तो बच्चे कहते है"इतनी तो मै अपने बाप की भी नही
सुनता/सुनती"तो असहिष्णुता का बीज परिवार से आता है क्योंकि "परिवार ही
नागरिकता की प्रथम पाठ शाला है!"

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

सबका साथ,सबका विकास"

मोदी जी का नारा"सबका साथ,सबका विकास"पूर्णतया मानवतावादी के साथ ही हिन्दुत्व के मूलमंत्र "वसुधैव कुटुम्बकम"पर आधारित है! ओवेसी जैसे क्ट्टरपंथी  नेता बेशक इसे राजनीतिक चालबाज़ी कहे,पर सत्यता यही है कि गुज़रात मे ,मुस्लिम समुदाय ने रोज़ी-रोटी मे जो आत्म निर्भरता पाई है बह उ०प्र०,बिहार जैसे प्रान्तो मे उन्की आर्थिक स्थितिमे कोई आशातीत परिवर्तन ७० वर्षो के काँग्रेस,स०पा०,ब०स०पा० के शासन मे तुष्टीकरण के बाव्ज़ूद  नही हो पाया !देश,काल और समय का पहिया निरन्तर चलता रहता है,देखने की बात यह है कि उसकी गति धीमी,मध्यम अथवा तीव्र कौन सी थी? चिन्तन का विषय यह है कि आर्थिक छेत्र मे इस समुदाय का योगदान नगण्य है,परन्तु जनसंख्या मे गति ती्व्रतम २४% है जबकि बहुसंख्यक हिन्दुओं  की गति१६% है! इसका मुख्य कारण है हिन्दुओ की  उदारवादी पृवृत्ति, विकास की अतृप्त अभिलाषा,एवं हिदू धर्म मे शास्त्रार्थ की परम्परा,जबकि इस्लाम मे इन सबका निषेध है!वे आज २१वीं सदी मे विवाह को आत्माओ का मिलन न मानकर १६वी सदी के उलेमाओं के फ़तवे को कुरान की आयत मान ३ शादियों को ज़ायज़ ,अधिकाधिक बच्चे पैदा करने को  इस्लाम धर्म की मज़्बूती समझते है,बेशक उन बच्चो को दो वक्त रोटी ,पढाई, चिकित्सा उपलब्ध हो या न हो! मज़हब को बढाना उनका काम है जो हज़रत रसूल कह गये है,परन्तु उन्को रोटी,इल्म और नौकरी देने का दारोमदार शासन का है!और यदि उनकी बढती हुई आबादी को शासन सहूलियते नही दे पा रहा है तो यह काफ़िरो की साज़िश है!आज़ भी उनके मदरसो की हालत यह है कि सरकारी सहायता मिलने के बावज़ूद अँगरेज़ी ,कम्प्यूटर और साइंस की शिछा बेमानी मानी जाती है!फ़िर वेकिस गति स अपना विकास चाहते है,खुद बखुद पता चल जाता है! ओवेसी साहब उनकी वकालत इस लिए कर सकते है क्योकि साधन सम्पन्न है विदेश से ज़िन्ना की मानिन्द बार एट ला कर सके !लेकिन उन गरेब गुर्बा मुसल्मानो के हिमायती होते तो सबसे पहले मदरसों के लिये नई शिछाप्रणाली की हिमायत करते, नकी प्रागैतिहासिक काल की तरह आँख के बदले आँख निकालने ,हाथ काटने की  बात करते ,जबकि हम हिन्दू फ़ाँसी जैसे कठोर दंड को भारतीय द्न्ड संहिता से बाहर करने की वकालत
कर रहे है! मै यह नही कह रहा कि हिन्दू क्ट्टर पंथी इस प्रकार की भाषा नही बोलते! मेरा मन्तव्य है कि विकास की बात सुननेमे अच्छी तभी लग सकती है जब सभी अपने स्वयं मे लचीलापन लाकर देश को धर्म और मज़हब से अलग रख इसके विकास मे अपनी उन्नति का सपना संजोये ! स्वच्छता कीबात,झाडू ले फ़ोटो खिंचवाने की बजाय अप्ने घर को रोज़ साफ़ करते है तो गली को और नालियों  को सप्ताह् मे एक बार मु्हल्ले के पार्क और कूडेदान को माह मे एक बार करे! मुहल्ला सुधार समिति बना अपने छेत्र की समस्या,पानी,नाली ,बिज़ली आदि से समब्न्धित अधिकारियो को अवगत कराये!"यह आपका अधिकार और कर्तव्य दोनो है!"मोदी के पास विज़न है स्रोत है ,पर आप्के अपने बिना कुछ भी नही होगा!
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिक्न्दरा आगरा-२८२००७

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

कृषि को उद्द्योग घोषित किया जाय

किसान रैली मे राहुल बाबा ने फ़रमाया कि "मोदी तो उस खन्डर की लिपाई पुताई मे लगे हुये है  जो भीतर से बिल्कुल जर्जर हो चुका हो आखिर कब उसे भीतर से ठीक करने का काम शुरू करेंगे"पर शायद वे यह भूल गये कि विगत ६७ मे से ५ साल केवल एन०डी०ए० थी बाकी देश की दुर्गति,किसानो की ख्स्ता-माली हालात,करोडों का कर्ज़ा,कर्ज़े के नाम पर स्थानीय सूद्खोरों की सामन्त शाही पृवॄत्ति सब उन्ही के पूर्वजों की देन है,जिसके वजह से आज उन्हे आत्म हत्या करनी पड रही है! मनी लैन्डिग एक्ट पास कर दिया काम ख्त्म उसका पालन हुआ? आज हर मुह्ल्ले मे लाटरी के नाम पर लाखों लुट रहे है कितनो पर कार्य्वाही हुई कितने इस कानून का उल्ल्घँन पर जेल गये?कानून बनाना और भूल जाना काँगेस के डीएनए मे है,उसका अनुपालन कराने वाली मशीनरी पर कभी उन्का कोई अँकुश नही था,परिणामतः किसी भी कानून का २%या५%लाभ जन सधारण तक पहुँचता था और उद्देश्य की इतिश्री!
किसान के लिये वो आँसू बहा रहा है जिसका बाप-दादा,नाना-नानी कोई भी किसान नही थे और न ही उसकी समस्याऒं को समझते है!जो किसान के बॆटे है,जो उनके वोट से ही सत्ता पाकर घर मे मैडीकल कालेज खोल लेते है डिग्री कालेज खोल लेते है हैली पैड बनवा लेते है वे सूबे के बाकी किसानों की इस हालात के लिये भी कम ज़िम्मेवार नही है आज वो भी कितने संवेदन शील है,यह जग जाहिर हो गया है!८५%किसान स्वतंत्रता के बाद ६७% रह गया है जबकि जनसंख्या का घनत्व दुगने से भी ज़्यादा हो चुका है! किसी भी सरकार ने कॄषि को उद्द्योग घओषित करने की पहल नही की,परिणमतः आज भी प्राकृतिक आपदा का सामना करने का साहस
भारतीय किसान मे नही है और वो सरकार के अनुदान,मुआवजो की बाट देखता रहता है!वो भी ५०-१००रु० मिलती है बाकी रसूखदारो की बँजर ज़मीन पर भी लेखपाल/पट्वारी का हाथ गरम कर पा जाते है! अब आप ही बताईये १७ राज्यों उ०प्र०,पंजाब,म०प्र०,बिहार,उडीसा आदि (महाराष्ट्र के अलावा) कि्सी ने भी स्वीकार नही किया कि उनके प्रदेश मे किसी किसान ने आत्म हत्या की है,क्या यह संविधान के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता का अपमान नही है जो चीख-चीख कर अप्ने समाचर पत्रों मे नाम और चित्र सहित लिख रहे थे कि अमुक गाँव के अमुक किसान  आत्म हत्या की या सदमे से मर गया,जिनकी संख्या अकेले उ०प्र० मे १०० को पार कर गई है! आखिर हम किसान को स्वावलम्वी क्यों नही बनाना चाहते? क्यों आज भी कम्प्यूटर का उप्योग कॄषि के विकास के लिए ब्लाक स्तर पर नही हो रहा ?क्यों  कुल भारतीय उत्पादन का १५% ही भन्डारण छमता हो पाई है?क्यों हर जिले मे फ़ूड प्रोसेसिंग या फ़ूड कोर्ट का जाल बिछ पाया? इसका जवाब भी राहुल जी के पास नही है! पर हमारे पास है कि कृषि को उद्द्योग घोषित किया जाय उन्हे वे सभी सुविधायें उपलब्ध हो जो उद्द्योगों को प्राप्त है,बेशक कितना भी विरोध हो लेकिन उनसे भी आयकर कम प्रतिशत लिया जाय और उससे एक कॄषि-कोष की स्थापना हो जिससे न केवल मुआवज़ा/अनुदान दिया जाय बल्कि आधार भूत संरचना की स्थापना हो! ताकि २१ वीं सदी मे भारतीय किसान सरकार के रहम पर नही अपने दुर्दिनों के लिये भी अपने अंशदान से तैय्यार कोष से आहरण कर सके सूद खोरों और बंको के मायाजाल से बाहर निकल सके,जैस!कनाडा,डेन्मार्क, अमेरिका मे हुआ है!
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट/प्रतिनिधि "भास्वर भारत"
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्द्रा आगरा २८२००७

शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014

स्वच्छ भारत

देश को २०१९ तक ’स्वच्छ भारत’बनाने के लिये हमे अपनी अगली पीढी को स्वावलम्बी बनाने की आवश्यकता है! आज नई पौध को हम इतना अधिक लाड-प्यार का खाद और पानी दे रहे है कि वह स्वार्थी और अकर्मण्य होती जा रही है! हम बेटा हो या बेटी उसे घर-परिवार,संस्कार की शिछा के बजाय,तथाकथित मार्डन बनने पर ज़ोर दे रहे है! घर मे बेटाहो या बेटी केवल पढो वही टेबल पर पानी ,चाय,दूध पहुँचा रहे है,वो सो कर उठ रहे है,तो उनका बिस्तर ठीक कर रहे है! इन छोटी-छोटी बातों को वो अपना अधिकार समझने लगे है और परावलम्बी होते जा रहे है! यही कारण आगे चलकर उन्के दुख के कारण बन जाते है,क्योकि आजकल लडका-लड्की एक समान के कारण लडकियाँ अपने घर मे जाकर भी उसी प्रकार के व्यवहार की अपेछा बूढे सास-ससुर से करती है,जो कि दाम्पत्य जीवन मे किट-किट् बढा देता है और परिणामतः तलाक की नौबत आ जाती है! अभी हाल मे एक दिन फोटो खिंचवा कर स्वच्छ भारत के सहभागी दार बन गये,लेकिन दूसरे दिन ही दीवाली पर लाखो रुपये के रात भर पटाखे चलाते रहे ,वातावरण मे पोल्यूशन ही नही सड्कों पर गन्द भी फ़ैलाते रहे किसी ने भी सुबह उठ्कर झाडू नही उठाई क्योकि यह काम उनके नही माँ-बाप या ज़मादार अन्कल के है ! क्या इस पीढी से आप स्वच्छ्ता की  अपेछा कर सकते है !एक बार आगरा नगर निगम के मेयर को हमने अपने छेत्र की समस्याओं के लिये आमत्रित किया !जब उन्से कहा कि यहाँ डलाव घर या कूडा दान नही है तो उन्होने बताया यदि लगवा भी दिया जाय तो लोग उस्के अन्दर नही फेकते है,मरे हुये कुत्ते,बिल्ली डाल देते है,जो सडाँध और बीमारी फ़ैलाते है ! फ़िर बताया "मै एक बार कनाडा गया वहँ सडक चलते कोई बच्चा टाफ़ी-चाकलेट खाता है तो उसका रैपर ज़ेब मे रखता है,नकि हम भारतीयो की तरह  मूँगफ़ली खाकर छिलके सडक पर डाल देते है, क्योकि सफ़ाई उनका कर्तव्य न घर मे था न समाज मे है!" घर मे झाडू लगाकर कूडा या तो सडक पर या फ़िर नालियों मे डाल देते है,जहाँ सफ़ाई करना सरकार का दायित्व है! घर मे शौचालय का जहाँ तक प्रश्न है , सरकार ने जिस दुर्बल समाज के लिये भवन या शौचालय दिये है,वे उसमे इस लिये नही जाते क्योकि सीवर टैंक भर जायेगा तो पैसे देकर साफ़ करवाना पडेगा ! मेरा विशवास है कि हमे अभी १०वर्ष इस मानसिकता को दूर करने मे लग जायेंगे या फ़िर इसके कठोर कानून बनाने की आवशयकता है ताकि सडक चलते गन्दगी न करें,घर का कूडा थैलों मे रखे न कि सडक या नालियों मे भर दे जिससे वो चोक होती है! नदियों पर भी यही बात लागू होती है जहाँ साल भर त्यौहारों के बाद कभी मूर्तियाँ विसर्ज़न के कारण कभी मनुष्य विसर्ज़न के कारण!  यहाँ तक कि जिस नदी को माता कहते है वही पर मल त्याग कर शौच क्रिया से निवॄत हो जाते है,जिसके दर्शन कैला माँ के मदिर पर हुये,प्रयागराज मे कुम्भ मेले मे हुये !आखिर मानसिकता बदलने कि लिये भी कानून की आव्श्यकता है क्योकि हम अपनी हठधर्मिता को अपनी आस्था और धर्म का चोला पहना देते है!जब कानून का ड्न्डा पडता है तो सब ठीक हो जाता हैलिकिन उस्के  अनुपालन के लिये इतनी बडी पुलिस व्यव्स्था कहाँ है?और लगा भी दी जाये तो अपनी ज़ेब भरने के लिये सामने ऐक्सीडैन्ठोता है,मार-पीट,गुन्डागर्दे हओती हओ तो वह मूक दर्शक सी निहारती रहती है और इन्त्ज़ार करती है कि थाने से फ़ोर्स आ जाये अथवा अधिकरियॊ के आदेश ,फ़िर तो वो भी भूल जाती है कि देश अब स्वतंत्र है देश के सभी नागरिक सम्मा्नीय है ,जानवर नही!
यछ प्रस्न इस समस्या के शीघ्रातिशीघ्र विकल्प का है तो वह यहे है कि आज से घर मे बच्चो को उनके कर्तव्यों  की शिछा दें क्योकि "नागरिकता की प्रथम पाठ्शाला घर है!" 

मंगलवार, 30 सितंबर 2014

"केम छो मिस्टर प्रेसीडैन्ट ?"

मोदी जी की अमरीका यात्रा वॄतान्त को टी०वी० चैनल पर जिसने देख लिया ,यदि भा०ज०पा० का समर्थक है तो निश्चित रूप से उनका दीवाना हो चुका है और गैर भा०ज०पा० का है तो पगला गया होगा कि आखिर एक आदमी को इतना समर्थन विदेशों मे कैसे मिल सकता है ? अब तो वो सभी भी चुप है जो कहते थे कि बनारस मे मोदी के लिये पैसे देकर भीड इक्ठ्ठी की गई थी, हाँ अब यह शिगूफ़ा छोड दिया है कि न्यू योर्क मे तो गुज़राती अधिक है इसीलिये पहले वहाँ मोदी जी गये,जब कि आज वही दीवानगी वाशिंग्टन मे  भी भारतीय लोगों मे मौज़ूद थी,जब वो भारतीय दूतावास के सामने महात्मा गाँधी की मूर्ति पर श्रद्धा सुमन चढाने गये थे ! अब गैर भा०ज०पा० वालों को इस सर्व मान्य सत्य को झुठलाने की कोई वजह नही है कि यह वो शख्सियत है जो अप्नी जगह खुद बनाता है वर्ना चाय बेचने वाला ओबामा के बाद सोशल साईट्स पर खोजा जाने वाला दुनिया का दूसरा राजनेता नही बन जाता! जिस व्यक्ति की इच्छाशक्ति इतनी दॄढ है कि वो दुनिया के सबने ताकतवर देश के राष्ट्र्पति को ९ साल बाद उसी के देश मे आने के लिये वीज़ा देने के लिये बाध्य करदे! इसीलिये कहते है कि
"खुद को कर बुलन्द इतना कि खुदा खुद तुझसे पूछे- बता तेरी रज़ा कया है?"खुदा ने पूछा मोदी तेरी रज़ा कया है? तो मोदी बोले कि"जिस आदमी ने उन्हे अपने देश मे आने से किसी के कहने पर आने से रोक दियाहै उस आदमी की आँखो मे आँखे डाल कर पूँछू "केम छो मिस्टर प्रेसीडैन्ट?"
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

गुरुवार, 17 जुलाई 2014

जुविनाइल जस्टिस ऐक्ट मे संशोधन

श्रीमती मेनका गाँधी ,महिला एवं बाल विकास मंत्री महोदया ने  बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के मामले मे नाबालिग अपराधी को भी बालिग घोषित करने की जुविनाइल जस्टिस ऐक्ट मे संशोधन की संस्तुति की है !क्या आप जानते है कि इस सोच और संस्तुति के पीछे मूलभूत कया कारण है?नैशनल क्राइम व्यूरो के नवीन्तम आँकडों के अनुसार केवल राजधानी छेत्र मे ही नाबालिगों के द्वारा रेप की घट्नाओं मे अप्र्त्याशित रूप से १५८% की वॄधि इस वर्ष हुई है !वर्ष २०१२  मे दिल्ली मे केवल ६३ मामले प्रकाश मे आये थे,जबकि वर्ष २०१३ मे १६३ एग०आई० आर० दर्ज़ हुई है! जब कि अन्य अपराधों मे ३०% की ही वॄद्धि हुई ! चिन्तन का विषय यह है कि हम आने वाली अगली पीढी को किस प्रकार के संस्कार और संसकॄति सौंप कर जा रहे है? यह पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण का ही नतीज़ा है कि भारतीय वेष-भूषा को त्याग कर लड्के -लडकियाँ फ़िल्म और टी०वी० से प्रेरणा लेकर धोती-साडी , सलवार -कमीज़ पहन कर ’बहन्जी’ कहलाने के स्थान पर जीन्स टाप और बिकनी पहन कर मैडम कहलाने मे फ़ख्र महसूस करती है! यह परिवर्तन हमने पिछले एक दशक मे ही देखा है कि रिकशे-आटो वाले अब किसी को ’बहिन जी, माता जी’ के सम्बोधन के स्थान पर ’ मैडम’का प्रयोग करने लगे है! अर्थात उन्की भी सोच मे कही पच्छिम का प्रभाव परिलछित होने लगा है कि नारी केवल मेरे घर की हई माँ,बहन या बेटी है बाकी सारे शहर मे घूम रही नारी उप्भोग की वस्तु भोग्या है ! यही लोग सिग्रेट शराब को फ़ैशन ही नही अभिजात्य वर्ग का प्रारूप समझते है,जिसका परिणाम है कि जन्म दिन शादी विवाह ही नही ,गणेश या देवी विसर्जन भी इस उप्भोग के बिना अधूरा माना जाने लगा है!रही कसर मोबाईल मे ब्लू फ़िल्मो को डाउन लोड कर देखते-दिखाते है, जिस पर भारत वर्ष मे कोई पाबन्दी अब तक भारत सरकार नही लगा सकी ! देश के कर्ण-धार संसद मे बैठ कर देखते है फ़िर जनता -जनार्दन का तो अधिकार बनता ही है !यदि कोई मंत्री (गोवा) के कह देते है कि कम कपडे पहन कर पब मे जाना हमारी संस्कॄति नही है तो ब्बाल खडा हो जाता है! माननीय ममता शर्मा जी अधय्छा महिला विकास आयोग  ने महिलाओ के कपडो को सही तरीके से पहनने का ब्यान दिया तो सो काल्ड मार्डन महिलायें  कहने लगी कि यह स्वतंत्र भारत वर्ष है न कि तालिबान ! हमारी स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन करने की साजिश रची जा रही है! अलबत्ता सिगरेट या शराब का उपभोग फ़िल्मो मे दिखाई जाता है तो कैपशन चला दिया जाता है कि" सिगरेट -शराब हानिकारक है यह जान लेवा भी हो सकता है!" गाली-गलोज को म्यूट आपशन मे डाल कर सरकार के उत्तरदायित्व की इतिश्री हो जाती है, फ़िर चाहे "बीडी जलैले,जिगर मे  बडी आग है"पास करवा  लीजिये या फ़िर’मै चिकन तन्दूरी",बैड्रूम सीन,स्विम्सूट मे हीरो के साथ गल्बहियाँ डाल लीजिये !अर्थात सरकार भी कोई ठोस कदम उठाना नही चाहती है,केवल दिखावा करती है !आज विड्म्बना यह  है कि माँ-बाप न केवल साथ बैठ कर बच्चो के साथ देखते है,बल्कि इन सैक्सी गानो पर बच्चो को डान्स कराती है! वूगी-वूगी शो मे आयोजको ने माँ से कहा कि ’बच्चो को हाव-भाव दिखाना पडता है अतः इस प्रकार के गाने ४-५ साल के ब्च्चो को नही करवायें"पर अपनी टी०आर०पी० बरकरार रखने के लिये प्रसारित भी कर दिया ! प्रश्न यही है कि उत्तर दायित्व कौन निभाना चाह रहा है?टी०वी० पर बीडी सिगरेट के विघ्यापनो पर तो रोक है पर सनी लियोनी चाकलेट फ़्लेवर का मैन्फ़ोर्स कम्पनी का कन्डोम  बेच सकती है! आज सभ्यता और संस्कृति मे उप्भोक्तावाद के नाम पर मीठा ज़हर घोला जा रहा है ,जो हमारी आने वाली पीढी को यह शिछा दे रही है " बद अच्छा बदनाम बुरा "! मुँह पर कपडा लपेटो किसी भी बाय्फ़ैन्ड के साथ ,जो मोबाईल की पेमेन्ट करता हो अच्छे रेस्ट्राँ मे लन्च-डिनर करा सके बेशक वो उसके बदले आपका उप्भोग कर ले ! फ़िर कन्डोम से लेकर अन वान्टेड ७२ की गोलियाँ खुले आम बिक रही है! सम्भोग का आनन्द लो और ७२ घन्टे मे गोली खा कर मुक्ति पाओ ना मिले तो रेप और बलात्कार का मुकदमा पंजीकृत करा दो ! फ़िर  नैशनल कमीशन फ़ार चाइल्ड राइट्स तो
जुविनाइल जस्टिस ऐक्ट मे संशोधन का विरोध करने उतर ही आया है!
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट,२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

बुधवार, 21 मई 2014

मान्द्ण्ड

माननीय नरेन्द्र मोदी जी तो संविधान के मन्दिर को प्रणाम कर नये मान द्ण्ड स्थापित करने चाहते है दूसरी तरफ़ अरविन्द केज़री्वाल क्रिमिनल प्रोसीज़र कोड का उल्लघन कर भारतीयों को अनीति और उद्ण्डता का पढा रहे है ! अब वक्त आ गया है कि पुनः नई सोच से नया दायित्व प्रारम्भ किया जाय कि हर भारतीय को यही सोचना चाहिये कि उसकी कार्य-शाला उसका मन्दिर है उसे उसी भाव और समर्पण से कर्तव्यनिष्टा का पालन करना चाहिये जैसे वह मन्दिर जाता है!  यदि सभी लोग जिस कानून को मानना चाहे माने और जिसे चाहे न माने तो फ़िर समाज का पतन अवशम्भावी है! अतः समय आ गया है कि जिस श्रधा और भक्ति भाव से नमो-नमो किया है उसी भाव से उनकी राह का अनुसरण करिये देश और समाज का उज्ज्वल भविष्य आपका और आने वाली पीढी का इन्त्ज़ार कर रहा है ! हमे अपनी संस्कॄति और संविधान पर गर्व करना चाहिये ! नये मान्द्ण्ड नरेन्द्र मोदी जी की तरह स्थापित कीजिये न कि अरविन्द केज़रीवाल की तरह ! धन्ववाद !
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७