किसान रैली मे राहुल बाबा ने फ़रमाया कि "मोदी तो उस खन्डर की लिपाई पुताई मे लगे हुये है जो भीतर से बिल्कुल जर्जर हो चुका हो आखिर कब उसे भीतर से ठीक करने का काम शुरू करेंगे"पर शायद वे यह भूल गये कि विगत ६७ मे से ५ साल केवल एन०डी०ए० थी बाकी देश की दुर्गति,किसानो की ख्स्ता-माली हालात,करोडों का कर्ज़ा,कर्ज़े के नाम पर स्थानीय सूद्खोरों की सामन्त शाही पृवॄत्ति सब उन्ही के पूर्वजों की देन है,जिसके वजह से आज उन्हे आत्म हत्या करनी पड रही है! मनी लैन्डिग एक्ट पास कर दिया काम ख्त्म उसका पालन हुआ? आज हर मुह्ल्ले मे लाटरी के नाम पर लाखों लुट रहे है कितनो पर कार्य्वाही हुई कितने इस कानून का उल्ल्घँन पर जेल गये?कानून बनाना और भूल जाना काँगेस के डीएनए मे है,उसका अनुपालन कराने वाली मशीनरी पर कभी उन्का कोई अँकुश नही था,परिणामतः किसी भी कानून का २%या५%लाभ जन सधारण तक पहुँचता था और उद्देश्य की इतिश्री!
किसान के लिये वो आँसू बहा रहा है जिसका बाप-दादा,नाना-नानी कोई भी किसान नही थे और न ही उसकी समस्याऒं को समझते है!जो किसान के बॆटे है,जो उनके वोट से ही सत्ता पाकर घर मे मैडीकल कालेज खोल लेते है डिग्री कालेज खोल लेते है हैली पैड बनवा लेते है वे सूबे के बाकी किसानों की इस हालात के लिये भी कम ज़िम्मेवार नही है आज वो भी कितने संवेदन शील है,यह जग जाहिर हो गया है!८५%किसान स्वतंत्रता के बाद ६७% रह गया है जबकि जनसंख्या का घनत्व दुगने से भी ज़्यादा हो चुका है! किसी भी सरकार ने कॄषि को उद्द्योग घओषित करने की पहल नही की,परिणमतः आज भी प्राकृतिक आपदा का सामना करने का साहस
भारतीय किसान मे नही है और वो सरकार के अनुदान,मुआवजो की बाट देखता रहता है!वो भी ५०-१००रु० मिलती है बाकी रसूखदारो की बँजर ज़मीन पर भी लेखपाल/पट्वारी का हाथ गरम कर पा जाते है! अब आप ही बताईये १७ राज्यों उ०प्र०,पंजाब,म०प्र०,बिहार,उडीसा आदि (महाराष्ट्र के अलावा) कि्सी ने भी स्वीकार नही किया कि उनके प्रदेश मे किसी किसान ने आत्म हत्या की है,क्या यह संविधान के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता का अपमान नही है जो चीख-चीख कर अप्ने समाचर पत्रों मे नाम और चित्र सहित लिख रहे थे कि अमुक गाँव के अमुक किसान आत्म हत्या की या सदमे से मर गया,जिनकी संख्या अकेले उ०प्र० मे १०० को पार कर गई है! आखिर हम किसान को स्वावलम्वी क्यों नही बनाना चाहते? क्यों आज भी कम्प्यूटर का उप्योग कॄषि के विकास के लिए ब्लाक स्तर पर नही हो रहा ?क्यों कुल भारतीय उत्पादन का १५% ही भन्डारण छमता हो पाई है?क्यों हर जिले मे फ़ूड प्रोसेसिंग या फ़ूड कोर्ट का जाल बिछ पाया? इसका जवाब भी राहुल जी के पास नही है! पर हमारे पास है कि कृषि को उद्द्योग घोषित किया जाय उन्हे वे सभी सुविधायें उपलब्ध हो जो उद्द्योगों को प्राप्त है,बेशक कितना भी विरोध हो लेकिन उनसे भी आयकर कम प्रतिशत लिया जाय और उससे एक कॄषि-कोष की स्थापना हो जिससे न केवल मुआवज़ा/अनुदान दिया जाय बल्कि आधार भूत संरचना की स्थापना हो! ताकि २१ वीं सदी मे भारतीय किसान सरकार के रहम पर नही अपने दुर्दिनों के लिये भी अपने अंशदान से तैय्यार कोष से आहरण कर सके सूद खोरों और बंको के मायाजाल से बाहर निकल सके,जैस!कनाडा,डेन्मार्क, अमेरिका मे हुआ है!
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट/प्रतिनिधि "भास्वर भारत"
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्द्रा आगरा २८२००७
किसान के लिये वो आँसू बहा रहा है जिसका बाप-दादा,नाना-नानी कोई भी किसान नही थे और न ही उसकी समस्याऒं को समझते है!जो किसान के बॆटे है,जो उनके वोट से ही सत्ता पाकर घर मे मैडीकल कालेज खोल लेते है डिग्री कालेज खोल लेते है हैली पैड बनवा लेते है वे सूबे के बाकी किसानों की इस हालात के लिये भी कम ज़िम्मेवार नही है आज वो भी कितने संवेदन शील है,यह जग जाहिर हो गया है!८५%किसान स्वतंत्रता के बाद ६७% रह गया है जबकि जनसंख्या का घनत्व दुगने से भी ज़्यादा हो चुका है! किसी भी सरकार ने कॄषि को उद्द्योग घओषित करने की पहल नही की,परिणमतः आज भी प्राकृतिक आपदा का सामना करने का साहस
भारतीय किसान मे नही है और वो सरकार के अनुदान,मुआवजो की बाट देखता रहता है!वो भी ५०-१००रु० मिलती है बाकी रसूखदारो की बँजर ज़मीन पर भी लेखपाल/पट्वारी का हाथ गरम कर पा जाते है! अब आप ही बताईये १७ राज्यों उ०प्र०,पंजाब,म०प्र०,बिहार,उडीसा आदि (महाराष्ट्र के अलावा) कि्सी ने भी स्वीकार नही किया कि उनके प्रदेश मे किसी किसान ने आत्म हत्या की है,क्या यह संविधान के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता का अपमान नही है जो चीख-चीख कर अप्ने समाचर पत्रों मे नाम और चित्र सहित लिख रहे थे कि अमुक गाँव के अमुक किसान आत्म हत्या की या सदमे से मर गया,जिनकी संख्या अकेले उ०प्र० मे १०० को पार कर गई है! आखिर हम किसान को स्वावलम्वी क्यों नही बनाना चाहते? क्यों आज भी कम्प्यूटर का उप्योग कॄषि के विकास के लिए ब्लाक स्तर पर नही हो रहा ?क्यों कुल भारतीय उत्पादन का १५% ही भन्डारण छमता हो पाई है?क्यों हर जिले मे फ़ूड प्रोसेसिंग या फ़ूड कोर्ट का जाल बिछ पाया? इसका जवाब भी राहुल जी के पास नही है! पर हमारे पास है कि कृषि को उद्द्योग घोषित किया जाय उन्हे वे सभी सुविधायें उपलब्ध हो जो उद्द्योगों को प्राप्त है,बेशक कितना भी विरोध हो लेकिन उनसे भी आयकर कम प्रतिशत लिया जाय और उससे एक कॄषि-कोष की स्थापना हो जिससे न केवल मुआवज़ा/अनुदान दिया जाय बल्कि आधार भूत संरचना की स्थापना हो! ताकि २१ वीं सदी मे भारतीय किसान सरकार के रहम पर नही अपने दुर्दिनों के लिये भी अपने अंशदान से तैय्यार कोष से आहरण कर सके सूद खोरों और बंको के मायाजाल से बाहर निकल सके,जैस!कनाडा,डेन्मार्क, अमेरिका मे हुआ है!
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट/प्रतिनिधि "भास्वर भारत"
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्द्रा आगरा २८२००७

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