मंगलवार, 22 सितंबर 2015

सबका साथ,सबका विकास"

मोदी जी का नारा"सबका साथ,सबका विकास"पूर्णतया मानवतावादी के साथ ही हिन्दुत्व के मूलमंत्र "वसुधैव कुटुम्बकम"पर आधारित है! ओवेसी जैसे क्ट्टरपंथी  नेता बेशक इसे राजनीतिक चालबाज़ी कहे,पर सत्यता यही है कि गुज़रात मे ,मुस्लिम समुदाय ने रोज़ी-रोटी मे जो आत्म निर्भरता पाई है बह उ०प्र०,बिहार जैसे प्रान्तो मे उन्की आर्थिक स्थितिमे कोई आशातीत परिवर्तन ७० वर्षो के काँग्रेस,स०पा०,ब०स०पा० के शासन मे तुष्टीकरण के बाव्ज़ूद  नही हो पाया !देश,काल और समय का पहिया निरन्तर चलता रहता है,देखने की बात यह है कि उसकी गति धीमी,मध्यम अथवा तीव्र कौन सी थी? चिन्तन का विषय यह है कि आर्थिक छेत्र मे इस समुदाय का योगदान नगण्य है,परन्तु जनसंख्या मे गति ती्व्रतम २४% है जबकि बहुसंख्यक हिन्दुओं  की गति१६% है! इसका मुख्य कारण है हिन्दुओ की  उदारवादी पृवृत्ति, विकास की अतृप्त अभिलाषा,एवं हिदू धर्म मे शास्त्रार्थ की परम्परा,जबकि इस्लाम मे इन सबका निषेध है!वे आज २१वीं सदी मे विवाह को आत्माओ का मिलन न मानकर १६वी सदी के उलेमाओं के फ़तवे को कुरान की आयत मान ३ शादियों को ज़ायज़ ,अधिकाधिक बच्चे पैदा करने को  इस्लाम धर्म की मज़्बूती समझते है,बेशक उन बच्चो को दो वक्त रोटी ,पढाई, चिकित्सा उपलब्ध हो या न हो! मज़हब को बढाना उनका काम है जो हज़रत रसूल कह गये है,परन्तु उन्को रोटी,इल्म और नौकरी देने का दारोमदार शासन का है!और यदि उनकी बढती हुई आबादी को शासन सहूलियते नही दे पा रहा है तो यह काफ़िरो की साज़िश है!आज़ भी उनके मदरसो की हालत यह है कि सरकारी सहायता मिलने के बावज़ूद अँगरेज़ी ,कम्प्यूटर और साइंस की शिछा बेमानी मानी जाती है!फ़िर वेकिस गति स अपना विकास चाहते है,खुद बखुद पता चल जाता है! ओवेसी साहब उनकी वकालत इस लिए कर सकते है क्योकि साधन सम्पन्न है विदेश से ज़िन्ना की मानिन्द बार एट ला कर सके !लेकिन उन गरेब गुर्बा मुसल्मानो के हिमायती होते तो सबसे पहले मदरसों के लिये नई शिछाप्रणाली की हिमायत करते, नकी प्रागैतिहासिक काल की तरह आँख के बदले आँख निकालने ,हाथ काटने की  बात करते ,जबकि हम हिन्दू फ़ाँसी जैसे कठोर दंड को भारतीय द्न्ड संहिता से बाहर करने की वकालत
कर रहे है! मै यह नही कह रहा कि हिन्दू क्ट्टर पंथी इस प्रकार की भाषा नही बोलते! मेरा मन्तव्य है कि विकास की बात सुननेमे अच्छी तभी लग सकती है जब सभी अपने स्वयं मे लचीलापन लाकर देश को धर्म और मज़हब से अलग रख इसके विकास मे अपनी उन्नति का सपना संजोये ! स्वच्छता कीबात,झाडू ले फ़ोटो खिंचवाने की बजाय अप्ने घर को रोज़ साफ़ करते है तो गली को और नालियों  को सप्ताह् मे एक बार मु्हल्ले के पार्क और कूडेदान को माह मे एक बार करे! मुहल्ला सुधार समिति बना अपने छेत्र की समस्या,पानी,नाली ,बिज़ली आदि से समब्न्धित अधिकारियो को अवगत कराये!"यह आपका अधिकार और कर्तव्य दोनो है!"मोदी के पास विज़न है स्रोत है ,पर आप्के अपने बिना कुछ भी नही होगा!
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिक्न्दरा आगरा-२८२००७

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

कृषि को उद्द्योग घोषित किया जाय

किसान रैली मे राहुल बाबा ने फ़रमाया कि "मोदी तो उस खन्डर की लिपाई पुताई मे लगे हुये है  जो भीतर से बिल्कुल जर्जर हो चुका हो आखिर कब उसे भीतर से ठीक करने का काम शुरू करेंगे"पर शायद वे यह भूल गये कि विगत ६७ मे से ५ साल केवल एन०डी०ए० थी बाकी देश की दुर्गति,किसानो की ख्स्ता-माली हालात,करोडों का कर्ज़ा,कर्ज़े के नाम पर स्थानीय सूद्खोरों की सामन्त शाही पृवॄत्ति सब उन्ही के पूर्वजों की देन है,जिसके वजह से आज उन्हे आत्म हत्या करनी पड रही है! मनी लैन्डिग एक्ट पास कर दिया काम ख्त्म उसका पालन हुआ? आज हर मुह्ल्ले मे लाटरी के नाम पर लाखों लुट रहे है कितनो पर कार्य्वाही हुई कितने इस कानून का उल्ल्घँन पर जेल गये?कानून बनाना और भूल जाना काँगेस के डीएनए मे है,उसका अनुपालन कराने वाली मशीनरी पर कभी उन्का कोई अँकुश नही था,परिणामतः किसी भी कानून का २%या५%लाभ जन सधारण तक पहुँचता था और उद्देश्य की इतिश्री!
किसान के लिये वो आँसू बहा रहा है जिसका बाप-दादा,नाना-नानी कोई भी किसान नही थे और न ही उसकी समस्याऒं को समझते है!जो किसान के बॆटे है,जो उनके वोट से ही सत्ता पाकर घर मे मैडीकल कालेज खोल लेते है डिग्री कालेज खोल लेते है हैली पैड बनवा लेते है वे सूबे के बाकी किसानों की इस हालात के लिये भी कम ज़िम्मेवार नही है आज वो भी कितने संवेदन शील है,यह जग जाहिर हो गया है!८५%किसान स्वतंत्रता के बाद ६७% रह गया है जबकि जनसंख्या का घनत्व दुगने से भी ज़्यादा हो चुका है! किसी भी सरकार ने कॄषि को उद्द्योग घओषित करने की पहल नही की,परिणमतः आज भी प्राकृतिक आपदा का सामना करने का साहस
भारतीय किसान मे नही है और वो सरकार के अनुदान,मुआवजो की बाट देखता रहता है!वो भी ५०-१००रु० मिलती है बाकी रसूखदारो की बँजर ज़मीन पर भी लेखपाल/पट्वारी का हाथ गरम कर पा जाते है! अब आप ही बताईये १७ राज्यों उ०प्र०,पंजाब,म०प्र०,बिहार,उडीसा आदि (महाराष्ट्र के अलावा) कि्सी ने भी स्वीकार नही किया कि उनके प्रदेश मे किसी किसान ने आत्म हत्या की है,क्या यह संविधान के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता का अपमान नही है जो चीख-चीख कर अप्ने समाचर पत्रों मे नाम और चित्र सहित लिख रहे थे कि अमुक गाँव के अमुक किसान  आत्म हत्या की या सदमे से मर गया,जिनकी संख्या अकेले उ०प्र० मे १०० को पार कर गई है! आखिर हम किसान को स्वावलम्वी क्यों नही बनाना चाहते? क्यों आज भी कम्प्यूटर का उप्योग कॄषि के विकास के लिए ब्लाक स्तर पर नही हो रहा ?क्यों  कुल भारतीय उत्पादन का १५% ही भन्डारण छमता हो पाई है?क्यों हर जिले मे फ़ूड प्रोसेसिंग या फ़ूड कोर्ट का जाल बिछ पाया? इसका जवाब भी राहुल जी के पास नही है! पर हमारे पास है कि कृषि को उद्द्योग घोषित किया जाय उन्हे वे सभी सुविधायें उपलब्ध हो जो उद्द्योगों को प्राप्त है,बेशक कितना भी विरोध हो लेकिन उनसे भी आयकर कम प्रतिशत लिया जाय और उससे एक कॄषि-कोष की स्थापना हो जिससे न केवल मुआवज़ा/अनुदान दिया जाय बल्कि आधार भूत संरचना की स्थापना हो! ताकि २१ वीं सदी मे भारतीय किसान सरकार के रहम पर नही अपने दुर्दिनों के लिये भी अपने अंशदान से तैय्यार कोष से आहरण कर सके सूद खोरों और बंको के मायाजाल से बाहर निकल सके,जैस!कनाडा,डेन्मार्क, अमेरिका मे हुआ है!
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट/प्रतिनिधि "भास्वर भारत"
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्द्रा आगरा २८२००७