शुक्रवार, 23 सितंबर 2011
योजना आयोग का देश के साथ क्रूर मज़ाक
योजना आयोग द्वारा हलफ नामे सहित प्रस्तुत यह आकड़े कि कौन गरीबी रेखा से नीचे है और सरकारी सुविधाओं का पात्र हो सकता है? अत्यंत हास्यास्पद चित्रण खीच रहा है ! इस प्रकार की प्रस्तुति से यह निकल कर साफ़ तौर से सामना गया कि भारतवर्ष में अधिकारी गन देश की जनता के साथ,बजट और भारतीय सुविधाओं की परिकल्पनाओ की गलत तस्वीर प्रस्तुत कर विशवास घात कर रहे है ,क्योकि यही आधार होता है देश की आने वाली पञ्च वर्षीय योजनाओं की ! यदि हमारे पास मौजूद आकडे ही गलत है तो अगली नीति का निर्धारण कैसे हो सकता है ? यह एक चितनीय विषय है कि महगाई की बढ़ती हुई दरे भारतीयों की मूलभूत सुविधाओं रोटी ,कपड़ा और मकान को निम्नतम किस स्तर पर गरीबी रेखा से नीचे के मानक पर तय कर रहा है ? शिछा और स्वास्थ के प्रश्न की बात ही नहीं उठती है क्योकि जब तन पर कपड़ा न हो पेट भर भोजन न हो और सर छुपाने के लिए छत नहो तो शिछा और स्वास्थ भी अभिजात्य वर्ग की वस्तुए मानी जायेगी !हम बड़ी-बड़ी समस्याओं पर आन्दोलन करते है और उपवास कर रहे है कि "विदेशो से काला धन वापस लाओ", "भ्रष्टाचार मिटाओ अन्ना हम तुम्हारे साथ है" "पर्यावरण प्रदूषण समाप्त हो " आदि-आदि ! कभी क्या यह आन्दोलन नहीं होना चाहिए कि "प्रजातात्रिक गणराज्य में जो लोग इस तरह से अरबो रुपये तनखाह में लेते है ,सरकारी अधिकारी और नेता जो मनमाने तरीको से भारतीय पूजी का दुरूपयोग बेरोक टोक करते है उन्हें फासी दो !" क्यों कि यही लोग भारतीय पूजी में दीमक की तरह व्याप्त है और विकास की गति को अवरुद्ध कर रहे है ! समयबद्ध तरीके कभी कोइ योजना पूरी नहीं होती है परन्तु दोषी अधिकारियों को न तो छाता जाता है और न ही कोइ दंड का प्रावधान है,धीरे से बज़ट बढ़ा दिया जाता है ! जैसा कि कामन वैल्थ गेम्स में हुआ !
मंगलवार, 20 सितंबर 2011
उपवास
’उपवास’शब्द की विभक्ति उप+वास अर्थात वासना की उपेछा है ! दूसरे शब्दो मे उपवास का अर्थ भौतिक वस्तुओ का परित्याग है - जैसे भोजन,जल आदि का परित्याग ! परन्तु आज नये संदर्भो मे पारिभाषा को परिमार्जित करना पड रहा है ! ’उपवास’ सुगन्ध का उपवन हो गया है अर्थात सारे उपवन मे आप की सुगन्धि फ़ैले !
उपवास तीन प्रकार के हो गये है ! धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक ! उपवास पुरुष कम और महिलाये ज़्यादा करती है ! इन उपवासो को देखे वर्ष मे कम से कम १०० -१५० अर्थात माह १०-१५तक ! आखिर इन उपवासो का उद्देश्य क्या होता है?पहले इनका उद्देश्य वासना की उपेछा था ,परन्तु अब इनका उद्दे्श्य वासना की प्राप्ति है !शायद आप नही समझे ? वासना की प्राप्ति से मन्त्व्य यह है कि स्लिम और ट्रिम दिखने कीचाह मे यह किये जाते है ताकि ज़ीरो फ़िगर बरक्रार रह सके और अधिक से अधिक पुरुष आपकी ओर आकर्षित होसके और आप्की मर्किट वैल्यु बढती रहे !
सामाजिक उपवास समाज मे व्याप्त कुरीतीयो पर अंकुश लगाने हेतु सामाजिक कार्य कर्ताओ द्वारा किये जाते रहे है !जैसे अभी हाल मे बाबा राम देव ने काले धन को स्विस बैकों से वापिस लाने हेतु अथवा अन्ना हज़ारे जी ने भ्रष्टाचार उन्मुक्ति हेतु किया अथवा गाँधीजी ने हिन्दू मुस्लिम एकता हेतु किया था !
तीसरा "उपवास" राजनैतिक होता है जैसा अभी हाल मे ही गुज़रात मे समपन्न हुये ! एक तरफ़ प्रदेश के मुख्य मत्री महोदय नरेन्द्र मोदी और उनके विरोध मे काँग्रेस के भू०पू० मुख्य मंत्री शंकर सिंघ वाघेला ने किया ! नरेन्द्र मोदी जी का "सदभावना मिशन" गुजरात विश्व्व विद्यालय के एयर कन्डीशन्ड हाल मे किया गया ,जहाँ एक साथ ७००० लोगो के बैठने की व्यवस्था थी ! सभी प्रमुख समाचार पत्रो और टी०वी० चैनल पर प्रसारण पर मात्र १८ करोड का खर्चा आया जो कि एक गरीब राष्ट्र के भावी प्रधान मंत्री के लिये शायद अप्रयाप्त भी हो?
इसीलिये शंकर सिघ्ह वाघेला जी के मुताबिक ७२ घण्टे का उपवास ५४ मे ही निबटा लिया गया ,परन्तु उन्होने दावा किया कि वे इस तरह के फ़्राड के आदी नही है इसलिये पूरे ७२ घण्टे बैठे रहे -शायद निरुद्देश्य? इस प्रकार का उपवास केवल जनतंत्र मे ही होता है क्योंकि-
"जनता का पैसा,जनता की मर्ज़ी के विरुद्ध ,जनता के सामने ही खर्च किया जाता है और जनता देख कर मिसमिसाती रह जाये!"
उपवास तीन प्रकार के हो गये है ! धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक ! उपवास पुरुष कम और महिलाये ज़्यादा करती है ! इन उपवासो को देखे वर्ष मे कम से कम १०० -१५० अर्थात माह १०-१५तक ! आखिर इन उपवासो का उद्देश्य क्या होता है?पहले इनका उद्देश्य वासना की उपेछा था ,परन्तु अब इनका उद्दे्श्य वासना की प्राप्ति है !शायद आप नही समझे ? वासना की प्राप्ति से मन्त्व्य यह है कि स्लिम और ट्रिम दिखने कीचाह मे यह किये जाते है ताकि ज़ीरो फ़िगर बरक्रार रह सके और अधिक से अधिक पुरुष आपकी ओर आकर्षित होसके और आप्की मर्किट वैल्यु बढती रहे !
सामाजिक उपवास समाज मे व्याप्त कुरीतीयो पर अंकुश लगाने हेतु सामाजिक कार्य कर्ताओ द्वारा किये जाते रहे है !जैसे अभी हाल मे बाबा राम देव ने काले धन को स्विस बैकों से वापिस लाने हेतु अथवा अन्ना हज़ारे जी ने भ्रष्टाचार उन्मुक्ति हेतु किया अथवा गाँधीजी ने हिन्दू मुस्लिम एकता हेतु किया था !
तीसरा "उपवास" राजनैतिक होता है जैसा अभी हाल मे ही गुज़रात मे समपन्न हुये ! एक तरफ़ प्रदेश के मुख्य मत्री महोदय नरेन्द्र मोदी और उनके विरोध मे काँग्रेस के भू०पू० मुख्य मंत्री शंकर सिंघ वाघेला ने किया ! नरेन्द्र मोदी जी का "सदभावना मिशन" गुजरात विश्व्व विद्यालय के एयर कन्डीशन्ड हाल मे किया गया ,जहाँ एक साथ ७००० लोगो के बैठने की व्यवस्था थी ! सभी प्रमुख समाचार पत्रो और टी०वी० चैनल पर प्रसारण पर मात्र १८ करोड का खर्चा आया जो कि एक गरीब राष्ट्र के भावी प्रधान मंत्री के लिये शायद अप्रयाप्त भी हो?
इसीलिये शंकर सिघ्ह वाघेला जी के मुताबिक ७२ घण्टे का उपवास ५४ मे ही निबटा लिया गया ,परन्तु उन्होने दावा किया कि वे इस तरह के फ़्राड के आदी नही है इसलिये पूरे ७२ घण्टे बैठे रहे -शायद निरुद्देश्य? इस प्रकार का उपवास केवल जनतंत्र मे ही होता है क्योंकि-
"जनता का पैसा,जनता की मर्ज़ी के विरुद्ध ,जनता के सामने ही खर्च किया जाता है और जनता देख कर मिसमिसाती रह जाये!"
गुरुवार, 15 सितंबर 2011
नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गाँधी
अमेरिकी कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी जी को २०१४ के संसदीय चुनावके लिये भा०ज०पा० की ओर से प्रधान मंत्री पद के रूप मे प्रस्तुत करने की संभावना और राहुल गाँधी का काँग्रेस मे उच्चीकरण की संभावना व्यक्त कर देश मे नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गाँधी का मुद्दा खडा कर दिया है ! चिन्तन का विषय यह है कि यदि तुलनात्मक अध्ध्यन किया जाय तो राहुल गाँधी के पछ मे काँग्रेसी बेशक युवा पीढी का नेत्रत्व,नई सोच एवं २१वी सदी का नायक की संञा प्रदान कर दी हो, परन्तु उनकी झोली मे राजनैतिक अनुभव का अभाव सबसे बडी कमी है! किसी विशेष परिवार का वंशज़ होने की व्यवस्था केवल सामन्त वादी समाज मे संभव है न कि समाजवादी प्रजातंत्र मे ! इस प्रकार की व्यवस्थाओ ने ही भारत के प्रजातंत्र को कमज़ोर किया है! यदि किसी पार्टी के भीतर ही प्रजातंत्र नही हो ,तो वह कैसे देश मे उसके स्थापन की परिकल्पना करसकती है ! आज भी किसी वरिष्ठ से वरिष्ठ काँग्रेसी मे हिम्मत नही है कि वह अपने राजनैतिक अनुभव के आधार पर प्रधान मंत्री पद की दावेदारी पेश कर सके !
दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी जैसा कुशल ,योग्य और अनुभवी प्रशासक जिसने न केवल गुजरात बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष मे सफ़ल प्रशासक के नये मान दंड स्थापित कर दिये है! अतः राहुल बनाम नरेन्द्र मोदी की बहस केवल बौद्धिक विकलांगता की परिचायक है !
बोधिसत्व कस्तूरिया
ऎड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी जैसा कुशल ,योग्य और अनुभवी प्रशासक जिसने न केवल गुजरात बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष मे सफ़ल प्रशासक के नये मान दंड स्थापित कर दिये है! अतः राहुल बनाम नरेन्द्र मोदी की बहस केवल बौद्धिक विकलांगता की परिचायक है !
बोधिसत्व कस्तूरिया
ऎड्वोकेट
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)
