आज राजनीति को इतनी हेय द्रष्टि से देखा जाता है कि कि युवा वर्ग इसमे अपनी भागीदारी के प्रति अत्यन्त उदासीन हो गया है! भारतीय प्रशासन युवाओं की भागीदारी के लिये प्रतिबद्ध है कि सरकार ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम मे संशोधन कर मताधिकार की आयु २१ वर्ष से घटा कर १८ वर्ष कर दी है ! परन्तु खेद का विषय कि युवा वर्गचुनाव के दिन को मौज़-मस्ती मे पिक्चर देखने ,पिकनिक मनाने मे गुज़ारता है और मताधिकार का प्रयोग नही करता है,परिणाम मत प्रतिशत ३५-४० से अधिक नही बढता ! यह स्थिति विषेश रूप से शहरी छेत्र मे है ! प्रसन्नता का विषय यहहै कि ग्रामीण छेत्र मे युवक मताधिकार को एक पर्व के रूप मे देखता है और अपनी प्रतिभागिता को सुनिश्चित रखता है! परन्तु वहां एक युवा एक नही चार -चार गलत नाम से मताधिकार का प्रयोग कर ना केवल मताधिकार का दुरुपयोग करता है,बल्कि प्रजातंत्र का उपहास करता है ! प्रजातंत्र की नीव एक व्यक्ति एक वोट पर आधारित है !यदि समाज का अशिछित अथवा गुंड्डा वर्ग इस प्रकार मताधिकार करता है तो उसका प्रतिकार भी युवा वर्ग चौकसी कर सकता है !राजनीति मे प्रत्येक दल अपना चुनावी घोषणा-पत्र प्रकाशित करता है जो कि उस दल की भावी कार्य योजना का प्रतिबिम्ब होता है ! अशिछित वर्ग बिना उसे जाने ही मताधिकार का प्रयोग धन अथवा बल के प्रभाव मे आकर करता है,ऐसी परिस्थिति मे युवा वर्ग का दायित्व है कि अशिछित वर्ग को मौखिक रूप से उस घोषणा-पत्र का मनतव्य समझाये! यदि इस दायित्व से युवा वर्ग अपने को विमुख रखता है तो निश्चित रूप से अच्छे राष्ट्र या सरकार की कल्पना बेमानी है ! युवाओं को राजनीति मे आने की आवश्यकता इस लिये भी अधिक है कि विगत वर्षो मे राजनीति का अपराधी करण हुआ है,जो कि प्रजातंत्र के लिये घातक है ! धन या बल पर यदि सरकार का निर्माण होगा तो उस समाज मे क्राइम-ग्राफ़ ऊंचा रहेगा और सर्कार मूक दर्शक की तरह उसको अनदेखा करती रहेगी ! राजनीति को धनाड्यो की दासी बनने से रोकने के लिये भी युवाओ को सस्ते और पारदर्शी चुनाव की पहल करनी होगी !धनाडय वर्ग वोट का भी व्यापारीकरन करता है और मन्चाही सरकार चुनने के बाद घूसखोरी ,जमाखोरी को बधावा प्रदान करता है,जिसका प्रभाव प्रमुख रूप से सर्वहारा वर्ग पर ही पडता है,जो कि समाजवाद को घुन की तरह चाट जाता है ! युवा वर्ग की भागीदारी ही इस समस्या का अन्त कर सकती है ! जिस देश मे गरीबी रेखा से नीचे ३३% जनता रहती हो वहाँ चन्द रुपयों या दारू के लिये मतदाता का बिक जाना सामान्य सी बात है,परन्तु ऐसी स्थिति समाज का नीव को खोखला बना देती है! यदि युवा वर्ग आगे आकर धर्म,नीति और आस्था का वास्ता देकर उन्हे प्रेरित करें तो अच्छे समाज और राष्ट्र का निर्माण संभव है! अतः प्रजातंत्र को चिरस्थाई बनाने के लिये युवाओ का राजनीति मे आगमन आवश्यकीय एवं स्वागत योग्य है !
बोधि सत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
गुरुवार, 30 सितंबर 2010
शनिवार, 25 सितंबर 2010
बाढ़ और सरकार
बाढ़ की विभीषिका से सम्पूर्ण उत्तर भारत काल के गाल में ग्रसित है !उधर बिभिन्न बांध धडाधड लाखों क्यूसेक पानी बिना जनहानि,धन-हानि,फसल हानि की चिंता किये हुए तबाही कर रहे हैं ! हमारी सरकार मूक दर्शक की भांति केवल पानी के प्रवाह,जन हानि और फसल हानि के आंकडे हमें गिनवा रही है और हम राम भरोसे अगले
मंज़र का इंतज़ार कर रहे हैं !स्वतन्त्रता के ६६ वर्षों के बाद अपने को अपनी बर्बादी अपनो के हाथों देख दुःख कम और अकर्मण्यता पर घराना और विछोभ अधिक हो रहा है !क्या यह चिंतन का विषय नहीं है कि जब सरकार बड़े -बड़े बांध बनाती है तो साथ ही ऐसी विषम परिस्थितियों के लिए कोई दूरगामी उपाय भी सोच कर कदम उठा लेती,
ताकि इतनी बड़ी जन-हानि और धन-हानि प्रतिवर्ष नहीं होती !लेकिन सरकार राम भरोसे बैठी है कि कोई चमत्कार
स्वत: होगा और इस प्रकार की बरबादी रोकने के लिए जापान ,अमेरिका ,रूस या फिर यूं.एन.ओ. से कोई मदद का प्रोजेक्ट लेकर आयेगा खुद पैसा लगाएगा या दान कर जाएगा ! आखिर हम स्वावलंबी बनाने के बारे में क्यों नहीं सोचते ?क्या सरकार को बांध बनाने साथ ही नदियों की गहराई बढाने का कार्यक्रम नहीं चलना चाहिए ?उलटे सरकार ने नदियों से बालू खनन पर प्रतिबन्ध क्यों लगा रखा है?
मंज़र का इंतज़ार कर रहे हैं !स्वतन्त्रता के ६६ वर्षों के बाद अपने को अपनी बर्बादी अपनो के हाथों देख दुःख कम और अकर्मण्यता पर घराना और विछोभ अधिक हो रहा है !क्या यह चिंतन का विषय नहीं है कि जब सरकार बड़े -बड़े बांध बनाती है तो साथ ही ऐसी विषम परिस्थितियों के लिए कोई दूरगामी उपाय भी सोच कर कदम उठा लेती,
ताकि इतनी बड़ी जन-हानि और धन-हानि प्रतिवर्ष नहीं होती !लेकिन सरकार राम भरोसे बैठी है कि कोई चमत्कार
स्वत: होगा और इस प्रकार की बरबादी रोकने के लिए जापान ,अमेरिका ,रूस या फिर यूं.एन.ओ. से कोई मदद का प्रोजेक्ट लेकर आयेगा खुद पैसा लगाएगा या दान कर जाएगा ! आखिर हम स्वावलंबी बनाने के बारे में क्यों नहीं सोचते ?क्या सरकार को बांध बनाने साथ ही नदियों की गहराई बढाने का कार्यक्रम नहीं चलना चाहिए ?उलटे सरकार ने नदियों से बालू खनन पर प्रतिबन्ध क्यों लगा रखा है?
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