गुरुवार, 17 जुलाई 2014

जुविनाइल जस्टिस ऐक्ट मे संशोधन

श्रीमती मेनका गाँधी ,महिला एवं बाल विकास मंत्री महोदया ने  बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के मामले मे नाबालिग अपराधी को भी बालिग घोषित करने की जुविनाइल जस्टिस ऐक्ट मे संशोधन की संस्तुति की है !क्या आप जानते है कि इस सोच और संस्तुति के पीछे मूलभूत कया कारण है?नैशनल क्राइम व्यूरो के नवीन्तम आँकडों के अनुसार केवल राजधानी छेत्र मे ही नाबालिगों के द्वारा रेप की घट्नाओं मे अप्र्त्याशित रूप से १५८% की वॄधि इस वर्ष हुई है !वर्ष २०१२  मे दिल्ली मे केवल ६३ मामले प्रकाश मे आये थे,जबकि वर्ष २०१३ मे १६३ एग०आई० आर० दर्ज़ हुई है! जब कि अन्य अपराधों मे ३०% की ही वॄद्धि हुई ! चिन्तन का विषय यह है कि हम आने वाली अगली पीढी को किस प्रकार के संस्कार और संसकॄति सौंप कर जा रहे है? यह पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण का ही नतीज़ा है कि भारतीय वेष-भूषा को त्याग कर लड्के -लडकियाँ फ़िल्म और टी०वी० से प्रेरणा लेकर धोती-साडी , सलवार -कमीज़ पहन कर ’बहन्जी’ कहलाने के स्थान पर जीन्स टाप और बिकनी पहन कर मैडम कहलाने मे फ़ख्र महसूस करती है! यह परिवर्तन हमने पिछले एक दशक मे ही देखा है कि रिकशे-आटो वाले अब किसी को ’बहिन जी, माता जी’ के सम्बोधन के स्थान पर ’ मैडम’का प्रयोग करने लगे है! अर्थात उन्की भी सोच मे कही पच्छिम का प्रभाव परिलछित होने लगा है कि नारी केवल मेरे घर की हई माँ,बहन या बेटी है बाकी सारे शहर मे घूम रही नारी उप्भोग की वस्तु भोग्या है ! यही लोग सिग्रेट शराब को फ़ैशन ही नही अभिजात्य वर्ग का प्रारूप समझते है,जिसका परिणाम है कि जन्म दिन शादी विवाह ही नही ,गणेश या देवी विसर्जन भी इस उप्भोग के बिना अधूरा माना जाने लगा है!रही कसर मोबाईल मे ब्लू फ़िल्मो को डाउन लोड कर देखते-दिखाते है, जिस पर भारत वर्ष मे कोई पाबन्दी अब तक भारत सरकार नही लगा सकी ! देश के कर्ण-धार संसद मे बैठ कर देखते है फ़िर जनता -जनार्दन का तो अधिकार बनता ही है !यदि कोई मंत्री (गोवा) के कह देते है कि कम कपडे पहन कर पब मे जाना हमारी संस्कॄति नही है तो ब्बाल खडा हो जाता है! माननीय ममता शर्मा जी अधय्छा महिला विकास आयोग  ने महिलाओ के कपडो को सही तरीके से पहनने का ब्यान दिया तो सो काल्ड मार्डन महिलायें  कहने लगी कि यह स्वतंत्र भारत वर्ष है न कि तालिबान ! हमारी स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन करने की साजिश रची जा रही है! अलबत्ता सिगरेट या शराब का उपभोग फ़िल्मो मे दिखाई जाता है तो कैपशन चला दिया जाता है कि" सिगरेट -शराब हानिकारक है यह जान लेवा भी हो सकता है!" गाली-गलोज को म्यूट आपशन मे डाल कर सरकार के उत्तरदायित्व की इतिश्री हो जाती है, फ़िर चाहे "बीडी जलैले,जिगर मे  बडी आग है"पास करवा  लीजिये या फ़िर’मै चिकन तन्दूरी",बैड्रूम सीन,स्विम्सूट मे हीरो के साथ गल्बहियाँ डाल लीजिये !अर्थात सरकार भी कोई ठोस कदम उठाना नही चाहती है,केवल दिखावा करती है !आज विड्म्बना यह  है कि माँ-बाप न केवल साथ बैठ कर बच्चो के साथ देखते है,बल्कि इन सैक्सी गानो पर बच्चो को डान्स कराती है! वूगी-वूगी शो मे आयोजको ने माँ से कहा कि ’बच्चो को हाव-भाव दिखाना पडता है अतः इस प्रकार के गाने ४-५ साल के ब्च्चो को नही करवायें"पर अपनी टी०आर०पी० बरकरार रखने के लिये प्रसारित भी कर दिया ! प्रश्न यही है कि उत्तर दायित्व कौन निभाना चाह रहा है?टी०वी० पर बीडी सिगरेट के विघ्यापनो पर तो रोक है पर सनी लियोनी चाकलेट फ़्लेवर का मैन्फ़ोर्स कम्पनी का कन्डोम  बेच सकती है! आज सभ्यता और संस्कृति मे उप्भोक्तावाद के नाम पर मीठा ज़हर घोला जा रहा है ,जो हमारी आने वाली पीढी को यह शिछा दे रही है " बद अच्छा बदनाम बुरा "! मुँह पर कपडा लपेटो किसी भी बाय्फ़ैन्ड के साथ ,जो मोबाईल की पेमेन्ट करता हो अच्छे रेस्ट्राँ मे लन्च-डिनर करा सके बेशक वो उसके बदले आपका उप्भोग कर ले ! फ़िर कन्डोम से लेकर अन वान्टेड ७२ की गोलियाँ खुले आम बिक रही है! सम्भोग का आनन्द लो और ७२ घन्टे मे गोली खा कर मुक्ति पाओ ना मिले तो रेप और बलात्कार का मुकदमा पंजीकृत करा दो ! फ़िर  नैशनल कमीशन फ़ार चाइल्ड राइट्स तो
जुविनाइल जस्टिस ऐक्ट मे संशोधन का विरोध करने उतर ही आया है!
बोधिसत्व कस्तूरिया एड्वोकेट,२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७